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मध्यप्रदेश सरकार सुशासन को ध्यान में रखते हुए विभागवार अपने कार्यों को जारी रखे हुए है: डॉ. मोहन यादव

नई दिल्ली/ भोपाल
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार सुशासन को ध्यान में रखते हुए विभागवार अपने कार्यों को जारी रखे हुए है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्येय वाक्य 'विरासत से विकास की ओर' हमारे लिए एक पाथेय की तरह सिद्ध हो रहा है। हम विकास कार्यों में विरासत को महत्वपूर्ण स्थान दे रहे हैं। मध्यप्रदेश में विरासत की बात करें तो 2000 वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का शासन काल सुशासन व्यवस्था के एक आदर्श उदाहरण के रूप में परिलक्षित होता है। विक्रमादित्य की जीवन के विविध पक्षों को देखें तो उनकी एक अलग प्रतिमा बनती है। वे एकमात्र ऐसे शासक थे, जिनके जीवन के विविध प्रसंगों से आज भी लोग प्रेरणा लेते हैं। विक्रमादित्य के शासन काल की तुलना सुशासन से करना सर्वश्रेष्ठ तुलना है। उनके द्वारा किए गए कार्य और प्रयोग आज भी प्रासंगिक हैं।
    आज हमारे पास हिजरी और विक्रम संवत हैं। इसमें विक्रम संवत उदार परंपरा को लेकर चलने वाला संवत है, अर्थात संवत चलाने वाले के लिए शर्त है कि जिसके पास पूरी प्रजा का कर्ज चुकाने का सामर्थ्य है, वो संवत प्रारंभ कर सकता है। यानी कि शासक के पास इतना धन हो कि वह प्रजा को कर्ज मुक्त कर दे और उद्योग-व्यापार के लिए भी इतना धन उपलब्ध कराए कि उद्योगपति इसे चलाने के लिए भविष्य में कर्ज न लें। यह बात दुनिया के लिए अविश्वसनीय हो सकती है। लेकिन सम्राट विक्रमादित्य के कार्यकाल में यह हुआ।
    1 अप्रैल से विक्रम संवत 2082 का शुभारंभ हुआ है। हमारे यहां संवत के भी 60 अलग-अलग प्रकार के नाम हैं। इस तरह से 2082 को धार्मिक अनुष्ठानों के संकल्प में सिद्धार्थ नाम दिया गया है। अगर अंग्रेजी के 2025 को कुछ और बोला जाए तो यह संभव नहीं है, लेकिन विक्रम संवत में वर्ष के नाम के भाव अलग-अलग होते हैं। इन 60 नामों का चक्रीकरण बदलता रहता है।
    पहली बार सम्राट विक्रमादित्य की शासन व्यवस्था में ही नवरत्नों का समूह देखने को मिलता है। उन्होंने नवरत्नों के समूह में प्रत्येक को 5 से 7 मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौंपी थी। विक्रमादित्य ने अपने देश को गुलामी की दास्तां से मुक्त कराया। जब उन्होंने अपने पिता के बाद शासन संभाला तो उनके नवरत्नों में सभी अलग-अलग विषयों के विशेषज्ञ थे।
    उन्होंने सुशासन की व्यवस्था स्थापित की। उनके मंत्रि-परिषद में शामिल नवरत्न इनते सक्षम थे कि किसी कारण से विक्रमादित्य उपस्थित न हो तब भी शासन व्यवस्था सुचारू रूप से चलती थी। 300 साल पहले शिवाजी महाराज के अष्ट प्रधान की पद्धति में यही व्यवस्था नजर आती है। उनके राज्य में नहीं होने पर भी शासन व्यवस्था चलती रही।
    सम्राट विक्रमादित्य दानशीलता, वीरता, प्रजा का ध्यान रखने में अग्रणी थे। विक्रम-बेताल पच्चीसी और सिंहासन बत्तीसी की कहानियां हम सभी ने सुनी हैं। विक्रमादित्य ने शासन की इनती अच्छी व्यवस्था स्थापित कर ली थी कि हर राजा उनके जैसा शासन करना चाहता था।
    विक्रमादित्य का मूल नाम सहशांक था, लेकिन जो उल्टे क्रम को सूत्र में बदल दे, वो विक्रम और जो सूर्य के समान प्रकाशमान रहे वो आदित्य। विक्रमादित्य एक उपाधि है, जो उन्हें मिली थी। कई राजाओं ने स्वयं को विक्रमादित्य से जोड़ा है, लेकिन आदि विक्रमादित्य एक ही हैं और उनकी राजधानी उज्जैन थी।
    विक्रमादित्य की शासन व्यवस्था सुशासन का आधार है। वे एक आदर्श, वीर, जनकल्याणकारी, जनहितैषी सम्राट थे। जिन्होंने कभी खुद को राजा कहलाना पसंद नहीं किया। उन्होंने अपने राज्य में 2000 साल पहले गणतंत्र की स्थापना की थी।
    विक्रमादित्य के विराट व्यक्तित्व को सबके सामने लाने के लिए महानाट्य की कल्पना की गई है। जब इसका मंचन दिल्ली में 12, 13 और 14 अप्रैल को लालकिले पर होगा तो इसमें हाथी, घोड़ा, पालकी के साथ 250 से ज्यादा कलाकार अभिनय करते नजर आएंगे।
    महानाट्य में शामिल कलाकार निजी जीवन में अलग-अलग क्षेत्र के प्रोफेशनल्स हैं। महानाट्य में वीर सर समेत सभी रस देखने को मिलेंगे। यह गौरवशाली इतिहास को विश्व के सामने लाने का मध्यप्रदेश सरकार का एक प्रयास है। इस कालजयी रचना को सबसे सामने रखने में दिल्ली सरकार का भी सहयोग मिल रहा है। इससे पूर्व हैदराबाद में विक्रमादित्य महानाट्य का आयोजन हो चुका है।
    विक्रमादित्य ने अपने जीवनकाल में मथुरा और अयोध्या जैसे 300 से अधिक स्थानों पर मंदिरों का निर्माण उन्होंने कराया था। विक्रमादित्य काल के जैसे प्रधानमंत्री श्री मोदी के कार्यकाल में गरीबों को मकान बनाने में मदद की जा रही है। देश की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत हुई है। भारत प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सक्षम और सशक्त बन रहा है। यही तो रामराज्य है, जो विक्रमादित्य काल में था।

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