उम्र लगभग अस्सी साल और कई सालों से सत्ता से दूरी के बावजूद गुरुजी का जलवा बरकरार है। गुरुजी यानी संथाल आदिवासियों के दिशोम गुरु शिबू सोरेन भले ही अब बुढ़ापे की गिरफ्त में हैं, लेकिन झारखंड के आदिवासियों के बीच उनकी लोकप्रियता अभी भी वही है और आंखों में एक नये झारखंड के निर्माण का सपना भी वही है जो कई दशक पहले था। शिबू सोरेन से मिलना अपने आप में एक यादगार अनुभव है। हालांकि उम्र का दबाव उन पर साफ दिखता है, लेकिन आंखों की चमक और आवाज की कड़क में कोई कमी नहीं आई है।
झारखंड मुक्ति मोर्चे के संस्थापक अध्यक्ष और झारखंड आंदोलन के नायक शिबू सोरेन से दुमका के खिजूरिया स्थित उनके आवास पर मुलाकात होती है। घर के बाहर कम से कम एक हजार लोगों का जनसमूह गुरुजी के दर्शनों के इंतजार में है, जिनमें 90 फीसदी आदिवासी हैं और उनमें भी अस्सी फीसदी संथाल हैं। इस जनसमूह में भारी तादाद में महिलाएं भी हैं और युवा भी। पूछने पर यही कहते हैं कि गुरुजी की एक झलक देखने के लिए यहां आए हैं।
वहीं खड़े झामुमो कार्यकर्ता दुर्गा मुर्मू बताते हैं कि अभी चुनाव हैं इसलिए तादाद कुछ ज्यादा है, लेकिन सामान्य दिनों में भी गुरुजी से मिलने के लिए आने वालों का दिनभर तांता लगा रहता है। लोग आते हैं और गुरुजी के पैर छूकर या दूर से प्रणाम करके चले जाते हैं। कोई कुछ मांगने या कहने नहीं आता बल्कि लोग सिर्फ यही देखने आते हैं कि उनके दिशोम गुरु बढ़ती उम्र के बावजूद उनके बीच ठीक और सेहतमंद हैं।
दिलचस्प यह है कि कई बार शिबू सोरेन किसी को जोर से डांट भी देते हैं, तो वह उसे गुरुजी का आशीर्वाद समझकर हंस देता है। भीड़ को चीरते हुए हम घर के अंदर पहुंचते हैं और एक कमरे में शिबू सोरेन से मुलाकात होती है। वहां भी कई लोग उन्हें घेरे बैठे हैं। वही बड़े बाल बढ़ी हुई दाढ़ी और बड़ी बड़ी चमकती आंखें, जिन्हें हम दशकों पहले से देखते आ रहे हैं। दुआ सलाम के बाद बातचीत शुरू होती है। सोरेन कहते हैं कि उन्होंने आदिवासियों को संगठित करके झारखंड की महाजनी व्यवस्था से लंबी लड़ाई लड़ी और गरीबों को उससे आजाद कराया। लेकिन जिस झारखंड का उन्होंने सपना देखा था, पृथक राज्य बनने के बावजूद वह अभी तक साकार नहीं हुआ है।
महाजनी व्यवस्था तो खत्म हो गई लेकिन सियासत के नए महाजन आ गए और उन्होंने राज्य के विकास को काफी पीछे ढकेल दिया। शिबू सोरेन कहते हैं कि पिछले पांच सालों में भाजपा शासन में झारखंड में सिर्फ संसाधनों की लूट हुई है, इसलिए लोग बदलाव चाहते हैं। वह कहते हैं कि झामुमो, कांग्रेस और राजद महागठबंधन की सरकार बनेगी और सबसे पहला काम राज्य की शिक्षा व्यवस्था को सुधारना होगा।
भगवान वीरसा मुंडा के बाद कभी आदिवासियों के दूसरे मसीहा माने जाने वाले शिबू सोरेन का मानना है कि सारी गड़बड़ी की जड़ आदिवासियों का अशिक्षित होना है। वह कहते हैं कि अपने आंदोलन के प्रारंभिक दिनों में उन्होंने गांव-गांव लालटेन और मशाल जलाकर आदिवासियों में शिक्षा का प्रचार प्रसार किया था। लेकिन पिछले पांच सालों में राज्य की भाजपा सरकार ने प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों को बंद करने का काम किया और गांवों में शिक्षा व्यवस्था पटरी से उतर गई और शराब के ठेके खुल गए।
इससे सामाजिक बुराइयां पैदा हुईं। नौजवान भटक गए और महिलाओं पर अत्याचार भी बढ़ा। इसलिए शिक्षा व्यवस्था सुधारना अगली सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। यह पूछने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झामुमो को बाप-बेटे की पार्टी कहते हैं, इसके जवाब में शिबू सोरेन ने कहा कि क्या बाप बेटा होना कोई गुनाह है।
मोदी जी भी तो किसी के बेटे हैं। राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और नागरिकता कानून जैसे मुद्दों का शिबू सोरेन के मुताबिक झारखंड में कोई असर नहीं है। यहां बेरोजगारी, शिक्षा, गरीबी और पिछड़ापन मुद्दा है जिस पर न मोदी कुछ बोलते हैं न मुख्यमंत्री रघुबरदास ही कुछ कहते हैं। झामुमो अध्यक्ष से जब कहा गया कि भाजपा कहती है कि राज्य में डबल इंजन की सरकार होना जरूरी है, तो शिबू सोरेन का जवाब है कि हमारे पास तो तीन इंजन हैं झामुमो, कांग्रेस और राजद। उनका कहना है कि जल संकट भी एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि झारखंड में पानी की कमी की वजह से किसान साल में सिर्फ एक ही फसल धान की उगाते हैं।
अगर पानी का इंतजाम हो जाए तो किसान कम से कम तीन फसलें उगाएंगे और इससे उनकी गरीबी दूर होगी और गांवों में मजदूरों को भी काम मिलेगा। साथ ही, पानी उपलब्ध होने से उद्योग भी लगेंगे, जिससे शहरी बेरोजगारी भी घटेगी। बातचीत खत्म करने के बाद शिबू सोरेन चुनाव प्रचार पर निकल जाते हैं, जहां गावों में आदिवासियों की भीड़ बेसब्री से अपने गुरुजी को देखने और सुनने को बेताब होती है।