नई दिल्ली
दुनियाभर में सामरिक हालात तेजी से बदल रहे हैं. भारत के दो कट्टर दुश्मनों (चीन और पाकिस्तान) के बीच रक्षा सहयोग लगातार बढ़ रहा है. इसे देखते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा को दुरुस्त और अपग्रेड करना समय की मांग है. सेना के तीनों अंगों (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) को मॉडर्न टेक्नोलॉजी से लैस करने के लिए हजारों करोड़ का इन्वेस्टमेंट किया जा रहा है. इसी रणनीति के तहत ही इंडियन एयरफोर्स ने 114 राफेल फाइटर जेट खरीदने के प्रस्ताव को रफ्तार देना शुरू कर दिया है. सबकुछ ठीक रहा तो अगले साल इस मेगा डिफेंस डील को अंतिम रूप दे दिया जाएगा. तकरीबन 2 लाख करोड़ की इस डील के तहत राफेल जेट का एक स्क्वाड्रन फ्लाई-अवे कंडीशन में भारत को मिलेगा. यानी 18 राफेल जेट पूरी तरह से ऑपरेशनल फेज में इंडियन एयरफोर्स को मिलेगा. भारत और फ्रांस के बीच बड़ी डिफेंस डील का स्ट्रक्चर पहली बार सामने आया है. बता दें कि इंडियन एयरफोर्स के बेड़े में पहले से ही 36 राफेल जेट शामिल हैं. ये फाइटर जेट विभिन्न एयरबेस पर तैनात हैं.
दरअसल, भारतीय वायुसेना (IAF) अपनी कॉम्बैट कैपेबिलिटी को मजबूती देने के लिए 114 राफेल विमानों की ऐतिहासिक खरीद प्रक्रिया को तेज कर रही है. अनुमानित 2 लाख करोड़ रुपये (23.8 अरब डॉलर) से अधिक के इस सौदे को अगले फाइनेंशियल ईयर तक अंतिम रूप देने का लक्ष्य है. समझौते के तहत पहले चरण में 18 विमान सीधे फ्रांस से ऑफ-द-शेल्फ मिलेंगे, जबकि 90 से अधिक विमानों का असेंबली भारत में होगी, जिनमें कम से कम 60% स्वदेशी योगदान सुनिश्चित किया जाएगा. IAF की योजना है कि शुरुआती 18 राफेल लड़ाकू विमान फ्रांस की प्रोडक्शन लाइन से सीधे उड़ान भरकर भारत आएंगे. इन्हें तेजी से वायुसेना की अग्रिम पंक्ति में तैनात किया जाएगा. यह रणनीति पारंपरिक रक्षा खरीद प्रक्रिया की देरी को टालकर वायुसेना को तत्काल शक्ति प्रदान करेगी.
खासियत है बेमिसाल
भारत सरकार ने फ्रांस के साथ सीधा करार करने का निर्णय लिया है. इससे MRFA टेंडर प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया गया है. शुरुआती विमान डिलीवरी के साथ ही पायलटों और ग्राउंड स्टाफ को निर्माता कंपनी की ओर से प्रशिक्षण मिलेगा, ताकि जल्द से जल्द इन विमानों को ऑपरेशनल क्षमता में शामिल किया जा सके. पहले 18 राफेल अत्याधुनिक हथियारों से लैस होंगे. ‘इंडिया डिफेंस न्यूज’ की रिपोर्ट के अनुसार, नए राफेल फाइटर जेट में मीटियोर एयर-टू-एयर मिसाइल और SCALP क्रूज़ मिसाइल शामिल हैं. इनमें भारतीय हार्डवेयर अपग्रेड और कुछ स्वदेशी उपकरणों को भी इंटीग्रेट किया जाएगा.
एयरफोर्स की जरूरत
वर्तमान में IAF के पास सिर्फ 29 लड़ाकू स्क्वाड्रन हैं, जबकि दो मोर्चों (पाकिस्तान और चीन) पर एक साथ निपटने के लिए 42.5 स्क्वाड्रन की आवश्यकता है. हाल ही में राफेल ने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन कर चीन के PL-15 मिसाइल को मात दी थी और स्कैल्प मिसाइल से सफल वार किए थे. इससे इन विमानों की तात्कालिक ज़रूरत और भी स्पष्ट हो गई है. बता दें कि डसॉल्ट एविएशन भारतीय साझेदारों (खासकर टाटा) के साथ मिलकर भारत में असेंबली लाइन स्थापित करेगा. भविष्य में बनने वाले राफेल विमानों में मौजूदा F4 स्टैंडर्ड से भी उन्नत क्षमताएं होंगी. साथ ही हैदराबाद में M-88 इंजनों के लिए मरम्मत और मेंटेनेंस सुविधा (MRO) स्थापित की जाएगी.
राफेल का देसीकरण
नई डील के तहत पहले 18 विमान फ्रांस में निर्मित होंगे, लेकिन आगे आने वाले बैचों में लगभग 60% स्वदेशी सामग्री का लक्ष्य रखा गया है. भारत में बनने वाले विमानों में लंबी दूरी की मारक क्षमता वाले हथियार और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम शामिल होंगे. इस सौदे से भारतीय वायुसेना के पास कुल 176 राफेल होंगे, जिनमें पहले से खरीदे गए 36 विमान और नौसेना के लिए ऑर्डर किए गए 36 विमान भी शामिल हैं. इससे वायुसेना के अंबाला और हाशिमारा जैसे प्रमुख बेसों की ताकत बढ़ेगी. बता दें कि फ्रांस सरकार की ओर से सॉवरेन गारंटी दी जाएगी, जिससे डिलीवरी समय पर सुनिश्चित होगी और वाणिज्यिक जोखिमों से बचाव मिलेगा. कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर अगले वित्त वर्ष में होने की उम्मीद है.
5 से 6 साल में बदलेगी तस्वीर
राफेल सौदा न केवल वायुसेना की मौजूदा क्षमताओं को तुरंत मजबूत करेगा, बल्कि लंबे समय तक स्वदेशी रक्षा उत्पादन को गति देगा. स्थानीय असेंबली 2029-30 तक पूरी तरह सक्रिय हो जाएगी. इस बीच, तेजस MK-1A और आने वाले पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों से भारत की आत्मनिर्भरता और सामरिक ताकत को नई ऊंचाई मिलने की उम्मीद है.