झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों ने कई दलों का भ्रम तोड़ दिया. झारखंड में एनडीए खंड-खंड था. बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी और आजसू अलग-अलग होकर चुनाव लड़ रही थी. गठबंधन में फूट का नतीजा वोटों पर दिखा. बीजेपी झारखंड में तो हारी ही, एनडीए के दूसरे सहयोगी दलों का भी हाल बेहाल रहा. बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले जड़ें जमाने की कोशिश कर रहे जेडीयू को झारखंड में करारा झटका लगा. झारखंड में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के हाथ कुछ भी नहीं आया. जेडीयू के हालात इतने बुरे रहे कि पार्टी को 1 प्रतिशत वोट भी नहीं मिले.
.73 प्रतिशत की भागीदारी
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक जेडीयू को .73 प्रतिशत वोट मिले. अगर संख्या में देखें तो पूरे झारखंड में जेडीयू को 1 लाख 10 हजार 120 वोट मिले. झारखंड में जेडीयू 45 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ी. लेकिन पार्टी को कुछ हासिल नहीं हो सका. झारखंड की मझगांव सीट से जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मु खुद भी चुनाव हार गए. उनकी हालत इतनी बुरी रही कि वे 12वें नंबर पर चले गए. इस सीट पर उन्हें मात्र 1889 वोट मिले.
जेडीयू इस बार झारखंड में जोर-शोर से प्रचार कर रही थी. जेडीयू ने अपने घोषणा पत्र में शराबबंदी का वादा भी किया था. इसके अलावा पार्टी ने रोजगार, व्यापार से जुड़ा भी वादा किया और इन्हीं वादों के दम पर नीतीश कुमार की पार्टी झारखंड की जनता के बीच में गई थी. लेकिन नीतीश कुमार की पार्टी जनता को लुभा नहीं सके. हालांकि नीतीश कुमार झारखंड में खुद प्रचार करने नहीं आए.
2014 की कहानी रिपीट हुई
2014 में भी जेडीयू झारखंड में अपने दम पर चुनाव लड़ी थी. उस दौरान भी पार्टी अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में नाकाम रही थी और जेडीयू का यहां पर खाता भी नहीं खुला था.
कम हो रहा है वर्चस्व
झारखंड में जेडीयू का वर्चस्व लगातार कम हो रहा है. 2005 में पहले विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 18 सीटों पर चुनाव लड़ा और लगभग 33 फीसदी का स्ट्राइक देते हुए 6 सीटें जीती थीं, लेकिन 2009 में जेडीयू को जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ा और उसके दो कैंडिडेट ही चुनाव में जीत पाए. 2014 और 2019 में पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई.
बिहार पर असर
झारखंड में बीजेपी और जेडीयू की हार का असर बिहार की राजनीति पर भी पड़ेगा. बीजेपी पहले ही घोषणा कर चुकी है कि बिहार विधानसभा का चुनाव नीतीश के नेतृत्व में लड़ेगी, लेकिन इस हार के बाद दोनों ही पार्टियां सजग हो जाएंगी. बिहार में सीटों के बंटवारे के दौरान दोनों पार्टियों को जिद छोड़कर ऐसा सामंजस्य बनाना पड़ेगा, ताकि स्थानीय समीकरणों का ख्याल रखा जा सके और विपक्ष के सामने तगड़ी चुनौती पेश की जा सके.