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मायावती की 11 में से 9 साझा रैलियां सपा के गढ़ में ही, आखिर क्या है माजरा?

लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन के बाद दोनों दलों के शीर्ष नेता जनता को रिझाने के लिए साझा रैलियां भी करने जा रहे हैं. अखिलेश यादव और मायावती एक साथ प्रदेश भर में 11 रैलियां करने जा रहे हैं. हालांकि, इन साझा रैलियों के बारे में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि 11 में से 9 साझा रैली समाजवादी पार्टी के गढ़ में क्यों हो रही है.

गठबंधन की ओर से घोषित कार्यक्रम के अनुसार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती और आरएलडी प्रमुख चौधरी अजित सिंह की साझा रैलियों की शुरुआत नवरात्र के शुभ दिनों में 7 अप्रैल से होगी जो 16 मई तक चलेगी.

गठबंधन की ओर से की जा रही साझा रैलियों में मैनपुरी, कन्नौज, बदायूं, फिरोजाबाद और आजमगढ़ वो सीटें हैं जो फिलहाल यादव परिवार के पास हैं और आधी साझा रैलियां इन्हीं सीटों पर हो रही हैं. 11 साझा रैलियों में से सहारनपुर और आगरा महज दो ऐसी सीटें हैं जो बीएसपी के कोटे में है, लेकिन 80 फीसदी से ज्यादा रैलियां सपा के गढ़ में करने की वजह आखिर क्या है?

कोई मनमुटाव नहीं!

जानकारों का कहना है कि अभी तक यह चर्चा आम है कि समाजवादी पार्टी का वोटबैंक मायावती के लिए इतनी दृढ़ता के साथ नहीं खड़ा होगा, जितना मायावती का वोटबैंक उनके एक इशारे पर समाजवादी पार्टी को वोट कर सकता है. मुलायम सिंह यादव, रामगोपाल यादव, डिंपल यादव, आजम खान जैसे परिवार के लोग और परिवार के करीबियों के लिए रैली कर मायावती यह संदेश देना चाहती हैं कि यादव परिवार से उनके पुराने मतभेद खत्म हो चुके हैं और अब दोनों में रिश्ते मधुर हैं और कोई मनमुटाव नहीं है.

दूसरी ओर, बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी के मुताबिक दरअसल यह अखिलेश यादव की हताशा और चुनाव का खौफ है जो उन्हें मायावती को अपने और परिवार के इलाके में रैलियां कराने को मजबूर कर रहा है. इस बीजेपी नेता के मुताबिक सपा की हालत यह है कि वह हर हाल में कम से कम अपने परिवार की सीट बचाना चाहते हैं और इसीलिए आधी से ज्यादा साझा रैलियां सिर्फ सपा के इलाके में हो रही हैं.

रामपुर, फैजाबाद, गोरखपुर, वाराणसी, सहारनपुर और आगरा ऐसी सीटे हैं जो यादव परिवार से बाहर हैं, लेकिन आखिर सिर्फ सपा के लिए मायावती का कैंपेन करना क्या संदेश देता है?

मायावती का इस्तेमाल!

बीजेपी नेता चंद्रमोहन के मुताबिक पिछली बार मोदी लहर में समाजवादी पार्टी ने अपना कुनबा तो बचा लिया था, लेकिन इस बार पूरे कुनबे की साख दांव पर है चूंकि मायावती खुद नहीं लड़ रही हैं और यादव परिवार एक बार फिर मैदान में है, ऐसे में इस दूसरी मोदी लहर में परिवार का भी चुनाव जीतना मुश्किल दिख रहा है इसलिए समाजवादी पार्टी की पूरी कोशिश सिर्फ परिवार को बचाने की है और इसमें मायावती का इस्तेमाल किया जा रहा है.

हालांकि रैलियों के बारे में समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील साजन का कहना है कि साझा रैली के लिए स्थलों का चयन भौगोलिक परिस्थिति को देखकर तय किया गया है. भले ही 11 में से 9 रैलियां समाजवादी पार्टी के क्षेत्र में की जा रही हों, लेकिन अगल-बगल की सीटों पर बसपा चुनाव लड़ रही है और अगर आगे जरूरत पड़ी तो अलग से भी साझा रैलियां की जा सकती हैं.

बहरहाल, सपा और बसपा की इस साझा रैली को लेकर कार्यकर्ताओं में कितना उत्साह है. यह तो रैली के दौरान पता चलेगा, लेकिन इतना तय हो चुका है कि समाजवादी पार्टी गठबंधन के बाद अब मायावती के ताकत को सबसे पहले अपने ही घर में आजमा लेना चाहती है.

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