भुवनेश्वर
ओडिशा में पहले चरण के चुनाव हो चुके हैं। इन दिनों वहां हर ओर मोदी बनाम पटनायक का माहौल नजर आ रहा है। जहां शहरों में लोग, खासकर युवा पीएम मोदी, उनके कार्यों और पुलवामा के बाद हुई एयर स्ट्राइक की बात करते मिल जाएंगे, वहीं गांव अभी भी ‘नवीनमय’ नजर आते हैं। हालांकि राज्य में यह नारा भी खूब चल रहा है – ‘नीचे नवीन, ऊपर मोदी’।
बता दें कि ओडिशा में लोकसभा के साथ-साथ असेंबली के चुनाव भी चल रहे हैं। राज्य में संसद की 21 सीटों और असेंबली की 147 सीटों के लिए लड़ाई जारी है। 2014 लोकसभा में बीजेडी 20 और बीजेपी एक सीट जीती थी। भले ही कांग्रेस लोकसभा में अपना खाता नहीं खोल पाई हो, लेकिन असेंबली में दूसरे नंबर पर रही थी। यहां बीजेडी को 117, कांग्रेस को 15 व बीजेपी को 10 सीटें मिली थीं। इस बार कमजोर संगठन के चलते कांग्रेस तीसरे स्थान पर पिछड़ गई है।
उधर, 19 साल के ‘बीजेडी राज’ के प्रति लोगों में थोड़ी बहुत एंटी इंनकंबेंसी नजर आती है, लेकिन नवीन पटनायकके खिलाफ कहीं कोई नाराजगी नहीं दिखती। यहीं वजह है कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों से नाराजगी के बावजूद लोग पटनायक के हाथों एक बाद फिर राज्य की कमान सौंपने को तैयार हैं। ओडिशा में माना जाता है कि जिसने कोस्टल बेल्ट को जीता, वही राज करता है। कोस्टल में बीजेडी खासी मजबूत है।
बीजेडी बनाम बीजेपी
राज्य में हर ओर बीजेडी बनाम बीजेपी का माहौल बना हुआ है। कुछ सीटों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर सीटों पर सीधा मुकाबला बीजेडी और बीजेपी का है। कांग्रेस नबरंगपुर, बरहमपुर, कालाहांडी जैसी संसदीय सीटों पर जरूर मुकाबला त्रिकोणीय बना रही है। 2014 के बाद योजनाबद्ध और रणनीतिक तरीके से बीजेपी ने ओडिशा में काम किया। इसी का नतीजा है कि बीजेपी यहां कांग्रेस की जगह लेने में कामयाब दिख रही है।
बीजेपी का आक्रामक प्रचार लगातार नवीन पटनायक के व्यापक प्रचार को टक्कर देता दिख रहा है। ओडिशा पंचायत चुनाव में अपना बेहतरीन प्रदर्शन करने के बाद बीजेपी यहां आत्मविश्वास से भरी है। यूं तो बीजेडी हर जगह मजबूत है, लेकिन कोस्टल उसका गढ़ माना जाता है, जबकि वेस्टर्न ओडिशा में बीजेपी ने अपना आधार बनाया है। इन चुनावों में बीजेपी कोस्टल में सेंध मारने की कोशिश कर रही है तो बीजेडी वेस्टर्न ओडिशा में अपना आधार मजबूत करने में जुटी है। सीएम पटनायक के अपनी सीट हिंजली के साथ-साथ बीजेपुर से चुनाव लड़ने के पीछे रणनीति यही मानी जा रही है।
चेहरे हुए अहम
यहां की राजनीति में चेहरे काफी अहम हो उठे हैं। सीएम नवीन पटनायक तो प्रमुख चेहरा हैं ही, उनके अलावा प्रदेश में बीजेपी के दिग्गज नेता धर्मेंद्र प्रधान, हाल ही में बीजेपी में शामिल होने वाले बीजेडी के पूर्व असंतुष्ट नेता बैजयंत पांडा, आदिवासी चेहरा जुएल ओराम जैसे नेता अलग अलग तरीके से चुनाव को प्रभावित कर रहे हैं। मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री प्रधान भले ही चुनाव ना लड़ रहे हों, लेकिन वह राज्य में बीजेपी के अहम रणनीतिकार जरूर माने जा रहे हैं। वहीं बीजेपी से निकले बैजयंत पांडा की कोशिश नवीन पटनायक की सत्ता वापसी को मुश्किल बनाना है। जबकि ओराम आदिवासियों के बीच एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं।
ब्यूरोक्रेट्स का जलवा
ओडिशा की राजनीति में लंबे समय से अफसरशाही हावी है। पूर्व सीएम बीजू पटनायक से लेकर नवीन पटनायक तक के राज में अफसरों का दबदबा रहा है। इसी का असर है कि यहां इस बार आधा दर्जन पूर्व ब्यूरोक्रेट चुनावी मैदान में हैं। भुवनेश्वर में तो असली लड़ाई दो पूर्व ब्यूरोक्रेट्स के बीच ही है। यहां बीजेपी ने पूर्व आईएएस अधिकारी अपराजिता सारंगी को उतारा है तो वहीं उनके सामने मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर अरूप पटनायक बीजेडी के टिकट से मैदान में हैं।
महिलाओं की भागीदारी भी फैक्टर
इस बार नवीन पटनायक ने अपनी पार्टी के टिकट बंटवारे में महिलाओं की 33 फीसदी भागीदारी का पूरा ख्याल रखा है। उन्होंने लोकसभा की 21 सीटों में से सात पर महिला उम्मीदवार दिए हैं। बीजेडी ने जहां आस्का सीट से महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप के लिए काम करने वाली 70 वर्षीया प्रमिला बिसोई को टिकट दिया है, वहीं पूर्व अधिकारी शर्मिष्ठा सेठी को जाजपुर से, सुनीता बिस्वाल को सुंदरगढ़ से, चंद्राणी मुर्मू को क्योंझर से, मंजूलता मंडल को भद्रक से, राजश्री मलिक को जगतसिंहपुर से और कौशल्या हिकाका को कोरापुट से मैदान में उतारा है। तीन दलित, तीन आदिवासी व एक ओबीसी महिला को टिकट देकर नवीन पटनायक ने कहीं ना कहीं दूसरे दलों को यह संकेत देने की कोशिश की है कि समाज के सवर्ण व अगड़े तबके से राजनीति में जिताऊ महिला उम्मीवार आसानी से मिल जाती हैं, लेकिन उन्होंने समाज के पिछड़े वर्ग की महिलाओं को मौका दिया है।
बीजेपी और बीजेपी एक-दूसरे पर आक्रामक
अगर मुद्दों की बात की जाए तो बीजेडी केंद्र सरकार पर सहयोग न करने का आरोप लगा रही है। दूसरी ओर बीजेपी नवीन राज में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर आक्रामक है। वह आरोप लगा रही है कि राज्य में विकास नहीं हो रहा। साथ ही, उसका कहना है कि बीजेडी सरकार केंद्र द्वारा भेजे जा रहे पैसे को खर्च नहीं पा रही है।