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BJP और TMC में पोस्टकार्ड वार, केंद्र सरकार को लग रही भारी चपत

लोकसभा चुनाव के बाद जहां सभी राज्यों में खामोशी है तो बंगाल ऐसा राज्य है जहां अभी भी राजनीतिक हलचल तेज है. राज्य की सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं के बीज जुबानी जंग तेज है. वहीं दोनों दलों के बीच पोस्टकार्ड वॉर भी छिड़ गया है. इन दोनों दलों के बीच इस वॉर में भले ही कार्यकर्तओं पर अधिक बोझ न पड़ रहा हो लेकिन केंद्र सरकार को करोड़ों को नुकसान उठाना पड़ रहा है.

चुनाव के बाद बंगाल में अब पोस्टकार्ड पॉलिटिक्स शुरू हो गई है. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बीच भारतीय जनता पार्टी बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी को उनके आवास पर ‘जय श्री राम’ लिखा 10 लाख पोस्टकार्ड भेज रही है तो पलटवार करते हुए टीएमसी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को ‘वंदेमातरम’ और ‘जय बांग्ला’ लिखकर 20 लाख पोस्टकार्ड भेज रही है. इसके अलावा बीजेपी ममता बनर्जी को गेट वेल सून (Get Well Soon) के कार्ड भी भेजने की तैयारी में है. पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री और आसनसोल से सांसद बाबुल सुप्रियो ने कहा था कि हम अपने क्षेत्र से ममता बनर्जी को Get Well Soon के कार्ड भेजेंगे.

ममता की रोक से शुरू हुई जंग

पूरा विवाद उस समय शुरू हुआ जब 30 मई को नॉर्थ 24 परगना में वायरल हुए एक वीडियो में ममता बनर्जी ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने पर लोगों को ऐसा करने से मना करती हुई दिखीं. नारे से नाराज ममता अपनी कार से उतरती हैं और नारे लगा रहे लोगों को ऐसा करने से मना भी करती हैं. बाद में 7 लोगों हिरासत में लेकर उनसे इस संबंध में पूछताछ की गई. इसके बाद पोस्टकार्ड वॉर शुरू हो गया.

बीजेपी और टीएमसी के बीच पोस्टकार्ड वॉर से 30 लाख से ज्यादा कार्ड का इस्तेमाल किया जाएगा जिसका मकसद सिर्फ राजनीतिक हित साधने का है. इस वॉर के कारण केंद्र सरकार को साढ़े 3 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हो रहा है.

पोस्टकार्ड भारत सरकार का एक ऐसा उत्पाद है जिसे आम जनता की खातिर जनहित में बेहद सस्ते दामों पर बेचा जाता है. भारतीय डाक विभाग की ओर से जारी पोस्टकार्ड महज 50 पैसे में बेचे जाते हैं जबकि एक पोस्टकार्ड बनाने की लागत कहीं ज्यादा होती है. डाक विभाग की 2016-17 की रिपोर्ट के अनुसार, एक साधारण पोस्टकार्ड पर 12.15 रुपए का खर्च आता है, बदले में सरकारी खजाने में 50 पैसे ही आते हैं और यह निर्माण के कुल लागत का महज 4 फीसदी ही है. इस तरह से सरकार एक पोस्टकार्ड पर 11.75 रुपए की सब्सिडी देती है.

संसद में सरकार की ओर से दिए गए जवाब के अनुसार साल दर साल पोस्टकार्ड के निर्माण पर खर्च बढ़ता ही जा रहा है. 2010-11 में जहां एक पोस्टकार्ड बनाने में 7.49 रुपए खर्च होते थे जो 2016-17 में बढ़कर 12.15 रुपए (1215.76 पैसे) तक पहुंच गया. 2015-16 में पोस्टकार्ड बनाने में 9.94 रुपए (994.21 पैसे) की लागत आई. 2003-04 में एक पोस्टकार्ड बनाने में 6.89 रुपए खर्च होते थे. इस तरह से पिछले 13-14 सालों में पोस्टकार्ड बनाने में खर्च में 76 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन दाम वही 50 पैसे ही रहे यानी की सरकार पर खर्च साल दर साल बढ़ता ही चला गया.

प्रिंटेड पोस्टकार्ड पर खर्च 11.74 रुपया, कमाई 6 रुपए  

इसी तरह प्रिटेंट पोस्टकार्ड की बात करें तो 2016-17 में एक प्रिंटेड पोस्टकार्ड पर 11.74 रुपए (1174.45 पैसे) का खर्च आया जबकि 2015-16 में 9.27 रुपए (927.70 पैसे) खर्च हुए. एक प्रिंटेड पोस्टकार्ड की कीमत 6 रुपए है. इसके अलावा सरकार एक और अलग पोस्टकार्ड प्रिंट कराती है जिसे कंपटीशन पोस्टकार्ड कहते हैं और इसके एक कार्ड की छपाई की कीमत 9.28 रुपए आती है जबकि इसकी बिक्री 10 रुपए में की जाती है.

डाक विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, 2016-17 में 99.89 करोड़ पोस्टकार्ड इस्तेमाल किए गए और इसके इस्तेमाल में लगातार गिरावट आ रही है. 2015-16 में 104.70 करोड़ पोस्टकार्ड इस्तेमाल में लाए गए. जबकि 2009-10 में 119.38 करोड़ पोस्टकार्ड खरीदे गए और इस्तेमाल में आए. इस तरह से 2009-10 और 2016-17 की तुलना में 16.32 फीसदी की गिरावट आई.

राजनीतिक जंग में सरकार पर बोझ

डाक विभाग की ओर से छापे जा रहे 3 पोस्टकार्ड में सिर्फ कंपटीशन पोस्टकार्ड में ही सरकार को मुनाफा होता है, हालांकि इस पोस्टकार्ड को चुनिंदा लोग ही खरीदते हैं. जबकि साधारण पोस्टकार्ड में सरकार कुल लागत का महज 4 फीसदी और प्रिंटेड पोस्टकार्ड पर कुल लागत का 51 फीसदी ही मुनाफा कमाती है.

केंद्र सरकार भारी घाटा सहकर साधारण पोस्टकार्ड आम जनता खासकर अल्प आय वाली जनता के लिए पोस्ट ऑफिस में मुहैया कराती है. लेकिन अब बीजेपी और टीएमसी के बीच जो पोस्टकार्ड वार शुरू हुआ है वह सरकारी संसाधनों का बेवजह इस्तेमाल करने जैसा ही है. एक पोस्टकार्ड बनाने पर 12.15 रुपए खर्च आता है और अगर इसे भेजे जा रहे 30 लाख पोस्टकार्ड से गुणा करें तो यह खर्च 3.64 करोड़ से ज्यादा तक पहुंचता है.

बढ़ेगा सरकार का खर्चा

इस तरह से 10 लाख पोस्टकार्ड भेजने वाली बीजेपी 1.21 करोड़ रुपए से ज्यादा और टीएमसी 2.43 करोड़ रुपए का अनावश्यक का खर्च बढ़ाएगी. जिस हिसाब से वार जोर पकड़ रहा है उससे ऐसा लगता है कि पोस्टकार्ड की संख्या 30 लाख को भी पार कर जाएगी. पोस्टकार्ड की संख्या 30 लाख की संख्या को पार कर गई तो सरकार का नुकसान और बढ़ जाएगा. डाक विभाग केंद्र के अधीन है तो सारा खर्च केंद्र को ही वहन करना पड़ेगा.

साथ ही इन दोनों दलों की ओर से 30 लाख से ज्यादा पोस्टकार्ड इस्तेमाल किए जाने का असर उसकी मांग पर पड़ेगा और इसकी भरपाई के लिए ज्यादा पोस्टकार्ड छापने होंगे जिससे बड़ी संख्या में पेड़ कटेंगे और पर्यावरण को नुकसान ही पहुंचाएंगे. वहीं पोस्टकार्ड की कमी होने से रोकने के लिए आनन-फानन में हर जगह उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए खासा संघर्ष भी करना पड़ेगा.

सबसे बड़ी बात जो पोस्टकार्ड दोनों दलों को भेजे जाएंगे वो महज सांकेतिक हैं और बाद में इसे कूड़े में फेंक दिया जाएगा.

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