Saturday , July 27 2024
ताज़ा खबर
होम / धर्म / वट सावित्री पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ

वट सावित्री पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ

वट पूर्णिमा को वट सावित्री के नाम से भी जाना जाता है। अपने पतियों की लंबी उम्र, सलामती और खुशहाली के लिये उत्तर भारत के कई हिस्सों में विवाहित महिलायें इस व्रत का पालन करती है। सावित्री की कहानी पर आधरित यह दिन मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति को वापस लाने की एक पत्नी की दृढ़ की इच्छाशक्ति के बारे में है। यह ज्येष्ठ महीने की त्रयोदशी को शुरू होता है और पूर्णिमा पर खत्म होता है।

वट सावित्री सती की कथा के बारे में बताते हुए, एण्ड टीवी के ‘संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं’ में संतोषी मां की भूमिका निभा रहीं, ग्रेसी सिंह ने कहा, ‘‘महान सती के रूप में ख्यात यह दिन सावित्री के अपने पति के प्रति अगाध समर्पण का है। अश्वपति की बेटी को सत्यवान से प्रेम हो जाता है और यह जानते हुए कि उसका जीवनकाल छोटा है फिर भी उससे शादी कर लेती है। शादी के बाद वह हर दिन अपने पति की लंबी आयु के लिये प्रार्थना करना शुरू कर देती है।

एक दिन जब सत्यवान वट वृक्ष के नीचे आराम कर रहा था, अचानक ही उसकी मृत्यु हो जाती है। जब यम उसकी आत्मा लेने पहुंचते हैं तो सावित्री सामने खड़ी हो जाती है। यम उसके पति की आत्मा के बदले तीन वरदान देते हैं, एक के बाद एक अपने तीसरे वरदान में वह सत्यवान से अपने बच्चे का वरदन मांग लेती है और उसे वह वरदान मिल जाता है। चतुराई भरे जवाब और अपने पति के प्रति प्रेम से हैरान, यमराज जीवनदान दे देते हैं। सत्यवान उसी वट वृक्ष के नीचे जीवित खड़ा हो जाता है और उस दिन से ही उस दिन को ‘वट सावित्री व्रत’ के नाम से जाना जाता है।

इस अवसर पर, महिलायें वट सावित्री कथा कहती और सुनती हैं और वट वृक्ष पर लाल या पीले रंग का धागा बांधकर उसकी पूजा करती हैं। वट वृक्ष के रूप में ख्यात इसे त्रिमूर्ति का प्रतीक माना जाता है; इसकी जड ब्रह्मा, तना भगवान विष्णु और सबसे ऊपरी हिस्से को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। इस व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए, एण्ड टीवी के ‘संतोषी मां सुनाएं व्रत कथाएं’ में स्वाति की भूमिका निभा रहीं तन्वी डोगरा कहती हैं, ‘‘उत्तर भारत में विवाहित महिलायें अपने पति की अच्छी सेहत, सफलता और लंबी आयु के लिये व्रत रखती हैं।

यह व्रत सावत्री का अपने पति सत्यवान को यम के चंगुल से छुडा लाने की लगन और इच्छाशक्ति पर आधारित है। व्रत सावित्री से जुड़ी पूजा और व्रत कम्युनिटी स्तर पर या अकेले घर पर भी रखी जाती है। पत्नियां व्रत रखती हैं और दुल्हन की तरह तैयार होकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं। वट वृक्ष पर जल, अक्षत, धूपबत्ती, दीया, कुमकुम और फूल चढ़ाया जाता है और उसके बाद महिला पेड के इर्द-गिर्द लाल या पीले रंग का धागा बांधती हैं। मंत्रों के उच्चारण के साथ वृक्ष की परिक्रमा के बाद यह समाप्त होता है। यह चार दिनों का व्रत होता है, जिसमें पहले तीन दिन फल खाया जा सकता है और चैथे दिन चांद को जल चढ़ाया जाता है; महिलायें अपना व्रत खोलती हैं और एक साथ मिलकर सावित्री की पूजा करती हैं और सावित्री तथा सत्यवान की कथा सुनती हैं।’’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Enable Google Transliteration.(To type in English, press Ctrl+g)