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विदेश मंत्री बनने के बाद एस जयशंकर प्रसाद का आया बड़ा बयान, बोले- पड़ोसियों के लिये दिल बड़ा रखना होगा

नई दिल्ली: 

विदेश मंत्री बनने के बाद पहली बार किसी कार्यक्रम में शामिल हुए एस जयशंकर ने कहा है कि दुनिया भर में मुश्किलों में फंसे भारतीयों की मदद ज़िम्मेदारी है और इसने विदेश मंत्रालय की छवि बदल दी है. CII और थिंक टैंक अनंत एस्पेन सेंटर के कार्यक्रम में बोलते हुए जयशंकर ने कहा कि पहले भारतीयों के मन में दूतावासों की ये छवि थी कि जिनकी बड़ी जगहों पर पहचान होती है उन्हीं का काम होता है और वहां काम कराना मुश्किल है. लेकिन पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जो (सोशल मीडिया) के ज़रिए शुरूआत की उससे अब लोगों की उम्मीदें हैं, उन्हें जवाब मिलता है और विदेश मंत्रालय ज़मीन से जुड़ा है. विदेश मंत्री के तौर पर नियुक्ति के कुछ ही घंटों के बाद ये साफ हो गया था कि ट्विटर पर आम लोगों की मदद की सुषमा स्वराज की शुरू की हुई परंपरा जयशंकर भी जारी रखेंगे.

बिम्सटेक और सार्क के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि अधिकतर दक्षिण एशियाई देशों को पता है कि कनेक्टिविटी से दूर रहना उन्हें आगे नहीं बढ़ने दे रहा. सार्क की समस्या सबको पता है. अगर आतंकवाद को परे रखकर भी सोचें तो कनेक्टिविटी वहां पर नहीं हो पा रहा. इससे अलग बिम्सटेक में एक ऊर्जा है और वो आगे बढ़ने को तैयार है. नई सरकार के शपथग्रहण में भी बिम्सटेक देशों के प्रमुखों को आमंत्रण इसी से जुड़ा है.

पड़ोसी देशों के बारे में बात करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा कि इस क्षेत्र में विकास की मुख्य ज़िम्मेदारी भारत की है. इससे यहां बाकियों का भी विकास होगा. पड़ोसियों के लिये दिल बड़ा रखना होगा, तब भी जब वैसा ही व्यवहार उनकी तरफ से न आए. उन्होंने इस पर बांग्लादेश से बेहतर संबंधों का भी उदाहरण दिया.

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विदेश मंत्री के तौर पर कामकाज के बारे में जब उनसे सवाल पूछा गया तो उन्होने कहा कि एक हफ़्ते पहले तक उन्होंने सपने में नहीं सोचा था कि वो विदेश मंत्री बन जाएंगे. मंत्रालयों में समन्वय पर ज़ोर देते हुए जयशंकर ने कहा कि पिछला एक हफ़्ता जितना वक्त उन्होंने अपने मंत्रालय में नहीं बिताया उससे कहीं ज्यादा वक्त वित्त और वाणिज्य मंत्रालयों में बिताया है. लेकिन ये समन्वय ज़रूरी है और अपनी ज़मीन पकड़ कर रखने वाली पुरानी सोच बदलनी होगी. उन्होंने ये भी कहा कि जैसे प्रधानमंत्री मोदी अलग-अलग प्रोजेक्ट का रिव्यू करते हैं वैसे ही वो भी विदेश मंत्रालय के प्रोजेक्ट्स का महीने में कम से कम दो बार रिव्यू करना चाहते हैं.

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