योग भारतीय संस्कृति एवं परम्परा में अनादिकाल से ईश्वर के द्वारा प्रदत्त एक वरदान : योगी
गोरखपुर। योग जीवन जीने की सम्पूर्ण विधा है। योग में जीवन की समग्रता व समावेशी दृष्टि दिखाई देती है। मनुष्य का जीवन महज एक सत्ता नहीं अपितु परमात्मा का अंश है। योग के माध्यम से अंश रूपी मनुष्य का अपने अंशी परमात्मा से मिलना या साक्षात्कार करना ही योग है। उक्त बातें दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो0 सभाजीत मिश्र ने श्रीगोरखनाथ मन्दिर में अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के अन्तर्गत महायोगी गुरु गोरक्षनाथ योग संस्थान एवं महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद्, गोरखपुर द्वारा आयोजित साप्ताहिक योग प्रशिक्षण शिविर एवं योग-अध्यात्म-शैक्षिक कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में कही ।
प्रो0 सभाजीत मिश्र ने कहा कि योग की जितनी विधायें हैं उनमें सबका लक्ष्य आत्मसाक्षात्कार ही है। शरीर से लेकर आत्मा तक की समग्रता को एक साथ करने की विधा ही योग है। योग दर्शन में देह की वास्तविका को स्वीकारते हुए उसको साधन के रूप में प्रयोग कर आत्मकल्याण की सिद्धि करते है। इसलिए भी इस दर्शन का महत्व भी बढ़ जाता है क्योंकि यह अमरत्व का साधन है। श्रीमद् भगवद् गीता में भी भगवान का संदेश है कि जीवन की साधारण क्रियाओं में भी परमार्थ का दर्शन करना ही योग है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में श्री गोरखनाथ मन्दिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ ने कहा कि योग भारतीय संस्कृति एवं परम्परा में अनादिकाल से ईश्वर के द्वारा प्रदत्त एक वरदान है। जिसके माध्यम से हमारे ऋषियों ने मानव जीवन को सरलता से जीते हुए आत्मसाक्षात्कार का मार्ग बताया है। उन्होनें कहा कि योग मानव जीवन की एक ऐसी तकनीक है। जिसके द्वारा कम खर्च में सुख पूर्वक चिरंजीवी होते हुए मनुष्य अपने परमपुरुषार्थ रूपी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। यह साप्ताहिक योग शिविर इसी उद्देश्य से गोरक्षनाथ पीठ प्रारम्भ से ही प्रति वर्ष आयोजित करती है।
अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति एवं महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रो0 उदय प्रताप सिंह ने एक कहानी के माध्यम से कहा कि कोई भी व्यक्ति मजबूत मन व स्थिर बुद्धि को पाना चाहता है तो उसे योग की शरण में जाना चाहिए। क्योंकि जीवन में बिना मजबूत मन व स्थिर बुद्धि के सुख पाना सम्भव नहीं है। व्यक्ति के शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का समुच्चय ही योग है। योग की क्रियाएं शरीर को शुद्ध करके, मन को मजबूत करके, बुद्धि को स्थिर करके आत्मा के साथ साक्षात्कार कराती हैं। यही उपदेश गीता में भगवान कृष्ण ने भी दिया है।
समारोह का संचालन श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ के दर्शन विभागाध्यक्ष डॉ0 प्रांगेश कुमार मिश्र तथा आभार ज्ञापन योगाचार्य एवं योग शिविर के प्रभारी डॉ0 चन्द्रजीत यादव ने किया। अतिथियों का स्वागत श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ के साहित्य विभागाध्यक्ष डॉ0 रोहित कुमार मिश्र ने किया। उद्घाटन समारोह के आदि में दीप प्रज्ज्वलन एवं गुरु गोरक्षनाथ की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अतिथियों के द्वारा किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ विद्यापीठ के छात्र गोविन्द दूबे के वैदिक मंगलाचरण तथा विकास मिश्र एवं नितिन पाण्डेय के गोरक्षाष्टक पाठ से हुआ। कार्यक्रम में प्रशिक्षुओं के साथ ही महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सभी संस्थाओं के शिक्षक एवं संस्थाध्यक्ष सम्मिलित थे।
इस अवसर पर महाराणा प्रताप महाविद्याय, जंगल धूसड़ के प्राचार्य डॉ0 प्रदीप राव, संस्कृत विद्यापीठ के प्राचार्य डॉ0 अरविन्द कुमार चतुर्वेदी, दिग्विजयनाथ पी0जी0 कालेज के प्राचार्य डॉ0 शैलेन्द्र प्रताप सिंह, पूर्व प्राचार्य, डॉ0 रामजन्म सिंह, डॉ0 अविनाश प्रताप सिंह, डॉ0 दिग्विजय शुक्ल, डॉ0 रोहित कुमार मिश्र, डॉ0 फूलचन्द गुप्त, कलाधर पौडयाल, दीपनारायण, शशि कुमार,पुरूषोत्तम चैबे, नित्यानन्द तिवारी इत्यादि उपस्थित रहे।