विशाल सोनी, चंदेरी ।
भारत वर्ष का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले का शहर चन्देरी पुरातात्विक, धार्मिक विरासतों का नगर है। यहाँ सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए बहुत कुछ दर्शनीय है। गत वर्षों की भाँति इस वर्ष भी हजारों देशी पर्यटक 01 जनवरी 2019 को हमारी शहर हमारी विरासतों का भ्रमण करने आने वाले हैं। इस नगर का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। चारों ओर विन्ध्याचल की पर्वतमालाओं से आच्छादित हरी-भरी वादियाँ पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। भारतीय सांस्कृतिक निधि चन्देरी अध्याय के सहसंयाेजक एवं इतिहासकार और पुरातत्वविद डॉ. अविनाशकुमार जैन ने निम्न ऐतिहासिक धराेहराें की जानकारी देते हुए कहा कि चन्देरी लघु भारत है यहां पर ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक धराेहराें का भण्डार है……
हमारी विरासतें –
माँ जागेश्वरी देवी मन्दिर – नव वर्ष पर देवी-देवताओं के दर्शन कर लोग अपना सम्पूर्ण वर्ष आनन्द के साथ बिताना चाहते हैं। इसके लिए माँ जागेश्वरी देवी जी के मन्दिर में आकर माता के जागृत रूप का दर्शन कर धर्मलाभ लेते हैं। इस स्थल का प्राकृतिक सौन्दर्य प्रत्येक दर्शनार्थी का मन प्रसन्न कर देता है।
कीर्तिदुर्ग – चन्देरी नगर के संस्थापक परवर्ती प्रतिहार वंश के सातवें शासक महाराज कीर्तिपाल हैं। शिलालेखों के अनुसार कीर्तिपाल ने लगभग 11वीं शताब्दी ई. में इस नगर में कीर्तिदुर्ग (चन्देरी का किला), कीर्ति नारायण का मन्दिर और कीर्तिसागर का निर्माण कराया था। इस क्षेत्र पर परवर्ती प्रतिहार वंश की एक शाखा के 13 (तेरह) शासकों का उल्लेख शिलालेखों में प्राप्त होता है। इनका राज्य क्षेत्र थूबोन, चन्देरी, कदवाहा, पचरई आदि का विस्तृत था। उक्त सभी स्थलों से इनकी उपस्थिति के प्रमाण प्राप्त हैं।
खन्दारगिरि जैन क्षेत्र – चन्देरी नगर में एक मात्र गुफा मन्दिर के लिए प्रसिद्ध खन्दारगिरि जी जैन क्षेत्र विख्यात् है। यहाँ पाँच गुफा (गुहा) मन्दिर (13वीं शती ई. से 16वीं शती ई. तक) तथा पाँच तलहटी में मन्दिर विराजमान है। इस क्षेत्र पर प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ की 46 फुट उतुंग कायोत्सर्ग मुद्रा की विशाल प्रतिमा दर्शनार्थियों के आकर्षण का केन्द्र है। जो इस क्षेत्र पर आने वाले प्रत्येक दर्शनार्थी के मन को मोहित कर देती है।
गणपति दरवाजा कटीघाटी – चन्देरी नगर की उत्तर दिशा में खन्दारगिरि रामनगर सड़क मार्ग पर पहाड़ी को काटकार बनाया गया यह दरवाजा जिस पर अंकित फारसी शिलालेख के अनुसार इसे गणपति दरवाजा के नाम से जाना जाता था। इस दरवाजे का निर्माण सन् 1490 ई. में गियासुद्दीन के शासनकाल में जिम्मन खान पुत्र शेर खान ने बनवाया था।
जौहर स्मारक – कीर्तिदुर्ग के समीप स्थित जौहर स्मारक सदैव राजा मैदिनीराय व रानी मणिमाला के शौर्य को प्रदर्शित करता है। 28 जनवरी 1528 ई. में जब बाबर ने चन्देरी पर आक्रमण किया तब राजा मैदिनीराय की पराजय निश्चित होने पर रानी मणिमाला ने अपने सतित्व की रक्षार्थ लगभग 1600 राजपूत वीरांगनाओं के साथ अपने आपको जौहर कुण्ड की अग्नि ज्वालाओं में समर्पित कर दिया था। जिसकी प्रतिकृति के रूप में निर्मित 20वीं शती ई. का यह स्मारक अत्यंत मनोज्ञ व उन वीरांगनाओं को श्रृद्धा सुमन समर्पित करने का एक मात्र स्थान है।
बैजूबाबरा स्मारक – जौहर स्मारक के समीप ही संगीत प्रेमियों के लिए श्रृद्धा सुमन अर्पित करने के लिए महान संगीत सूर्य बैजूबाबरा का स्मारक स्थापित है। कहा जाता है कि बैजू का जन्म चन्देरी में ही हुआ था और उन्हें एक प्रेम भी चन्देरी में हुआ था लेकिन उनका प्रेम शादी के परिणय बंधन में नहीं बंध सका था इस कारण वह बाबरे हो गये थे। इस कारण उनका नाम बैजू बाबरा हो गया था। तानसेन जैसे महान संगीतज्ञ को पराजित करने वाले महान संगीत सम्राट बैजू बाबरा ने पूरा जीवन गुमनामी में जिया। उन्हें कभी भी मान सम्मान की भूख न सता पाई। मानसिंह तोमर के राज दरबार में आपने अनेक रागों की रचना कर संगीत को ऊँचाईयों तक पहुँचाया।
कौशक महल – चन्देरी नगर के फतेहाबाद में स्थित यह महल अपने आप में एक अद्भुत महल है। 15वीं शताब्दी का निर्मित यह भव्य महल दूर से ही पर्यटक को आकर्षित करता है। चारों ओर से लगभग समान लंबाई चौड़ाई और लगभग समान ऊँचाई की प्रत्येक मंजिल का यह महल जिसकी चारों दिशाओं में चार दरवाजे निर्मित हैं। दरवाजों की भव्य उतुंग मेहराबें मूक अपनी उत्कृष्ट कारीगरी को बयान करती हैं।
परमेश्वर तालाब लक्ष्मण जी मन्दिर – चन्देरी नगर का एक मात्र तालाब किनारे स्थित लक्ष्मण जी का मन्दिर जिसका निर्माण लगभग 11-12वीं शती ई. में हुआ होगा लेकिन इस मन्दिर का विकास बुन्देला शासकों के समय का ही दिखलाई देता है। मन्दिर और मन्दिर के सामने तालाब यह कल्पना करने से ही मन मंत्रमुग्ध हो उठता है। दर्शनार्थियों को भ्रमण के साथ भगवान के दर्शन का पुण्य प्राप्त हो जाये। इससे अच्छा कार्य कुछ हो ही नहीं सकता। पर्यटक विभाग द्वारा इस तालाब के सौन्दर्यकरण में चारों ओर काफी कार्य किया है। जिससे इसकी सुन्दरता निखर आई है। संध्याकाल में अस्त होते सूर्य को देखने का दृश्य काफी मनमोहक होता है। इस तालाब के किनारे बुन्देला शासक भरतशाह, देवीसिंह और अनिरुद्धसिंह के स्मारक बने हुए हैं।
शहजादी का रौजा – लक्ष्मण जी मन्दिर के उत्तर दिशा में शहजादी का रौजा अवस्थित है। द्विमंजिला यह मकबरा लगभग 16वीं शताब्दी ई. का निर्मित है। इस इमारत के कंगूरे उन पर मानसिंह महल ग्वालियर के समान रंगीन कार्य चारों ओर से लगभग आयताकार यह संरचना तत्कालीन समय की उत्कृष्ट कारीगरी का उदाहरण है।
पुराना मदरसा – चन्देरी के बायपास रोड़ पर मॉडल स्कूल के सामने एक मकबरा बना हुआ है। जिसे पुराना या बड़ा मदरसा के नाम से जाना जाता है। इस स्थल की जालियों की बारीक नक्काशी चारों दहलान उनकी मेहराबें देखने योग्य हैं। लगभग 16वीं शती ई. की यह संरचना पर्यटकों को आकर्षित करने योग्य है।
कजयाई बावड़ी – 15वीं शती ई. में निर्मित यह बावड़ी चन्देरी नगर की एक मात्र ऐसी बावड़ी है जो हाथ की कलाई घड़ी के समान प्रतीत होती है। मॉडल स्कूल चन्देरी के उत्तर दिशा में स्थित है। इस बावड़ी का निर्माण सन् 1485 ई. में मलिक काजी पुत्र मेहरान द्वारा कराया गया था।
बत्तीसी बावड़ी – पुराना मदरसा की टेकरी के पीछे बत्तीसी बावड़ी स्थित है। यह चन्देरी नगर की सबसे बड़ी चौकोर बावड़ी है। इस बावड़ी में बत्तीसी घाट होने के कारण इस यह नाम दिया गया है। शिलालेखों के अनुसार इस बावड़ी का निर्माण सन् 1485 से 1488 ई. में सुल्तान गियासुद्दीन के शासन काल में कराया गया था।
चौबीसी जैन मन्दिर – नगर में विश्व की एक मात्र शास्त्रोक्त वर्ण के अनुसार भव्य विशाल मुद्रा की प्रतिमा इस मन्दिर जी में विराजमान है। 24 प्रतिमाओं में दो श्वेत, दो कृष्ण, दो हरित, दो लाल सोलह स्वर्ण के रंग की प्रतिमाएँ विराजमान हैं। जिनके दर्शन कर दर्शनार्थी पुण्य अर्जित करते हैं। सन् 1836 ई. में इन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा चन्देरी के जैन जागीरदार सवाई हिरदेशाह के प्रधानमंत्री लाला सवासिंह (सभासिंह) जी ने इन प्रतिमाओं को विराजमान कराया था। इस मन्दिर का प्रथम भाग बड़ा मन्दिर है जो लगभग 13वीं शती ई. का निर्मित है।
बुन्देला राजा महल – 17वीं शती ई. में चन्देरी के बुन्देला राजाओं द्वारा चौबीसी जैन मन्दिर के पास यह भव्य विशाल महल का निर्माण कराया था। इस महल की भव्यता को देखकर पर्यटक उनकी आन-वान और शान से परिचित होते है। 17वीं शती ई. के प्रारंभ में ओरछा के बुन्देला शासक रामशाह को समय और परिस्थिति से मजबूर होकर ओरछा का शासन त्यागकर चन्देरी का शासक बनना पड़ा था। तब प्रारंभ में रामशाह ने कीर्तिदुर्ग को अपना रनवास बनाया था। इसके पश्चात् के शासकों ने कीर्तिदुर्ग पर नौखण्ड़ा महल और हवा महल भी बनवाया था। चन्देरी नगर में इस बुन्देला वंश के शासकों ने लगभग 200 वर्षों तक शासन किया और अनेक रचनात्मक निर्माण कार्य कराये।
बादल महल दरवाजा – चन्देरी नगर की पहचान यह बादल महल लगभग 15वीं-16वीं शती ई. में निर्मित हुआ प्रतीत होता है। वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इस दरवाजे के प्रांगण में अत्यधिक सुन्दर उद्यान बनाया गया है जो पर्यटकों का मन मोह लेता है। पर्यटक अपना सम्पूर्ण दिन यहाँ व्यतीत कर सकता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संग्रहालय – इस संग्रहालय का लोकार्पण 14 सितम्बर 2008 को किया गया था। इस संग्रहालय में बूढ़ी चन्देरी के 61 जैन मन्दिरों के भग्नावशेष मूर्तियों आदि वास्तुखण्ड़ों को प्रदर्शित किया गया है। जिनका निर्माण काल लगभग 9वीं शती ई. से 12वीं शती ई. निर्धारित है। इसके अतिरिक्त थूबोन व रामनगर की भी पुरातत्व सामग्री बहुत ही सुन्दर रूप में प्रदर्शित की गई है।
बुनकर पार्क – चन्देरी नगर की वर्तमान नवीन संरचना जिसे देखकर चन्देरी नगर की आधुनिकता का परिचय प्राप्त होता है। हेण्डलूम पार्क के नाम से विख्यात् यह नगर की अत्याधुनिक निर्माण है। जिसे देखकर आप स्वतः कह देंगे कि क्या बात है।
चन्देरी नगर में उक्त दर्शनीय स्थलों के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ है। जिनमें नृसिंह मन्दिर, दुर्जनसिंह का स्मारक, लोहरा ताल, निजामुद्दीन परिवार का कब्रिस्तान, दिल्ली दरवाजा, ढोलिया दरवाजा, जौहरी दरवाजा, मैदान गली दरवाजा, तमरपुरा दरवाजा, चौरासी कोठरी फतेहाबाद, जनाजन बावड़ी प्राणपुर, अर्जुन बावड़ी मुरादपुर, झलाई बावड़ी प्राणपुर, हरसिद्धीदेवी मन्दिर, बड़े गणेश जी का मन्दिर, चकला बावड़ी, रामनगर महल, सिंहपुर महल, मालन खोह, पनख्वाह जी सिद्ध स्थल, हजरत बाजीउद्दीन शाह विलायत, जामा मस्जिद, गोल बावड़ी, किलाकोठी आदि अनेक धार्मिक एवं दर्शनीय स्थल हैं जिनको आप एक दिन में भ्रमण भी नहीं कर पायेंगे। चन्देरी के आसपास भी अनेक स्थल ऐसे हैं जिनका आप भ्रमण कर सकते हैं – आनन्दपुर, थूबोन जी, बूढ़ी चन्देरी, गुरीला पहाड़, भियाँदाँत जी, बीठला, महारानी लक्ष्मीबाई राजघाट बाँध आदि।
प्रशासन और पर्यटक सचेत रहे – 01 जनवरी को आने वाले पर्यटकों, दर्शनार्थियों की ठीक से भेखभाल हो इसके लिए प्रशासन को सचेत रहने की आवश्यकता है। ऐतिहासिक स्मारकों नर काफी जन सैलाव रहता है। जिनमें बच्चे भी बहुत संख्या में रहते हैं। जिन पर नजर रखने की आवश्यकता होती है। एक कहावत है कि ‘‘सावधानी हटी और दुर्घटना घटी।’’ पिछले वर्ष में इस दिन अनेक दुर्घटनाएँ असावधानी और जल्दबाजी के कारण हो गई थीं। इस कारण पर्यटकों को भी सचेत रहने की आवश्यकता है। वह अपने वाहन तेजी से न चलायें, बच्चों का पर पूरा ध्यान दें। प्रशासन को भी समस्त चौराहों व स्मारकों पर आवश्यक इंतजाम करने की आवश्यकता है जिससे इस दिन किसी प्रकार का कोई हादसा (दुर्घटना) न हो और सभी पर्यटक हमारी पर्यटक नगरी चन्देरी को भ्रमण कर हर्षोल्लास के साथ अपने घर लौट सकें।