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किसी को डर लगता …….

किसी को डर लगता है यह बताने व इसे सच मानने के लिए क्या उसका 20 वर्ष पूर्व का रिकार्ड देखा जाए कि उसे पहले डर लगा कि नही ?  और यदि कोई चिंतित है अपने देश के मासूम लोगों या अपने परिवार के मासूम बच्चों के लिए मोब लिंचिंग या गुस्सेल भीड़ कि हिंसा से, तो क्या उसे यह बात कहने के लिए किसी विशेष विचारधारा के लोगों कि आज्ञा या स्वीकृति लेने कि आवश्यकता है क्या उसे हर उन घटनाओं पर जो भूतकाल मे घटी उस पर प्रतिक्रिया न दे पाने का दोष मढ़कर शांत रहने के लिए कह देना या उसकी देश भक्ति कि भावनाओं को कटघरे मे खड़ा कर देना उचित है ।

मे बात कर रहां हूँ एक पहलवान के द्वारा एक अभिनेता के ब्यान पर दी गई टीप्पणी कि जिसकी आलोचला तो बहुत हो रही है पर कुछ लोग उसकी सराहना करते भी नजर आ रहे हैं ।
(यहां दोनों के ही नाम लेना उचित नही समझता बस स्थिति का विश्लेषण करने मात्र यह लेख लिख रहा हूँ )

मे इस पहलवान को इतना कहना चाहूंगा कि तुम देश के लिए खेलते हो अपने हुनर और दम का इस्तेमाल तुम देश के लिए मेडल जीतने कि कोशिशों मे बेशक निस्वार्थ रुप से करते होगे पर यहां तुम खुद को बेवकुफ सिद्ध करते हो जब तुम 1984 व 1993 कि घटनाओं को आज कि घटनाओं से जोड़ देते हो तथा हिंसा को सही साबित करते हो और किसी की जायज़ बात को गलत करार दे देते हो यह कहते हुए नकार देते हो कि वह 20 साल या तीस साल पहले घटित हुई घटनाओं पर क्यों नही बोल पाया ।

पहलवान तुम जाहिल और गुस्साई भीड़ कि तरफ से बोल रहे हो भीड़ कि संख्या और आक्रोश देखकर उन्ही के मन बात को अपनी आवाज दे रहे हो जबकि वह अभिनेता उसी जाहिल और गुस्साई भीड़ के खिलाफ अकेला बोल रहा है बिना यह सोचे कि उसके केरियर या परिवार का क्या अंजाम होने वाला है तुम भी यूथ आईकॉन हो तुम्हे भी लाखों युवा फॉलो करते है पर तुम हवा के रुख कि तरफ बोल रहे हो और वह रुख के खिलाफ यही फर्क हे उसमे और तुम जैसे मौका परस्त लोगों मे ।

पहलवान जी क्या आप इस तथाकथित भ्रांति को सही साबित करने कि ओर अग्रसर तो नही जिसमे लोग कहते हैं कि पहलवानो मे दिमाग नही होता या वे दिमाग से काम नही लेते क्योंकि यह कोई तथ्यात्मक बात ही नही जो तुम कह रहे हो कि “जब पहले ऐसा हुआ तब तुम कहा थे”

आपकी और हर इंसान कि जानकारी के लिए यह बात समझना काफी जरुरी है कि इस दुनिया मे इंसान हर पल खुद को इतना मजबूत महसुस नही करता कि हर समय वह किसी के खिलाफ आवाज उठाता फिरे खासकर जब तब सामने वाला इतना ताकतवर हो कि उसका और उसके अपनो का सफाया चुटकियों मे कर सके कभी कभी इंसान चाहते हुए भी कुछ बोल नही पाता कुछ मजबूरीयों के कारण, इसका मतलब यह तो नही कि वर्तमान स्थिती के बारे मे बोलने पर उसे कोई सुने ही न या उसकी गुहार को सिरे से निरस्त कर दें, हर व्यक्ति खुद कि व परिवार कि सुरक्षा को लेकर चिंतित होता है, ऐसे मे वह अपने हिसाब से ही आवाज उठाता है जब उसे सबसे अधिक जरुरी लगता है या उसके पास दूसरा चारा नही होता या फिर वो मोजूदा स्थिती मे विरोध का सामना करने के लिए तैयार होता है,

हर कोई तुम्हारी तरह हवा के बहाव को देखकर नही बोलता जैसे तुमने देखा कि गुस्साई भीड़ उसके खिलाफ है तो तुम भी खिलाफ बोल गए तुम इस वक्त जाहिलों का साथ दे रहे हो ताकि तुम्हे उस भीड़ का क्रोध न झेलना पढ़े साथ ही उनकी नजरों ने तुम उनके अति प्रिय व्यक्ति बने रहे और अधिक प्रसिद्ध हो जाओ शायद इसीलिए तुमने हजारों जाहिल आवाजों के खिलाफ बोलने के बजाय एक सभ्य आवाज के खिलाफ बोलना ज्यादा आरामदायक लगा होगा,

पर बेहतर तब होता जब आप वॉयस ऑफ डिसेंट का साथ देते ताकि गुस्सेलों को भी पता चलता कि एक युवा भी देश मे एेसा है जो भीड़तंत्र ले लड़ने कि हिमम्त रखता है

अंत मे पहलवान जी आपकी टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आपके सवाल का जवाब मे देता हूँ आपने उपरोक्त अभिनेता से सवाल किया कि वह उस समय 1984 व 1993 मे क्या सोच कर चुप रहे वे तब क्यूँ नही कुछ बोले

उसका जवाब यह है जिस बात के डर से आप आज सच के पक्ष मे नही बोल पा रहे शायद उसी बात के डर से वह भी उस समय खामोश रहे होंगे । मे यह तो नही कह रहा कि किसी को वाकई डर लग रहा है या नही पर यह यह जरुर कहूंगा कि भीड़तंत्र कि हिंसा गलत है । इसके खिलाफ बोलनी और रोकथाम जरुरी है ।

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