आम सभा, भोपाल : भारत में सुरक्षित पेयजल की मांग और आपूर्ति में व्यापक अंतर है। हमारे देश में लगभग 68 करोड़ लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित पानी नहीं मिल रहा है। महिलाओं और बच्चों को पानी लाने के लिए कई मील पैदल चलना पड़ता है, जिसके कारण वे स्कूल नहीं जा पाते हैं और नौकरी नहीं कर पाते हैं। इससे देश की आर्थिक वृद्धि पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। नीति आयोग द्वारा प्रकाशित समग्र जल प्रबंधन सूचकांक रिपोर्ट (2018) के अनुसार, भारत में हर साल लगभग
दो लाख लोग पर्याप्त सुरक्षित पानी नहीं मिलने के कारण मर जाते हैं। मध्य प्रदेश को अपनी आबादी के बड़े प्रतिशत को सुरक्षित पानी न मिलने के कारण बड़ी चुनौती का
सामना करना पड़ रहा है। ऐसा मुख्य रूप से भूजल के स्तर में गिरावट, टीडीएस (टोटल डिसॉल्व्ड सॉलिड्स) का अत्यधिक असामान्य स्तर और फ्लोराइड और आर्सेनिक जैसे दूषित पदार्थों की उपस्थिति के कारण है। अगस्त 2018 में पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा प्रकाशित टीओए रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश में केवल 64 प्रतिशत घरों में सुरक्षित पीने के पानी की पहुंच है, जो कि राष्ट्रीय औसत 85 प्रतिशत से काफी कम है। यह चिंता का विषय है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के पास उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भोपाल में (भोजताल और कोलार डैम) दोनों स्रोतों से कुल केवल 232 एमएलडी जल आपूर्ति होती है जबकि यहां 350 एमएलडी पानी की जरूरत है। इस प्रकार, यहां लगभग 120 एमएलडी जल की कमी है।
भारत के प्रमुख स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल सेवा कंपनी, जनजल के संयुक्त प्रबंध निदेशक प्रवीण कुमार ने इसके समाधान के बारे में बात करते हुए कहा, “जल प्रबंधन के लिए ईमानदारी से योजना बनाने और समन्वित प्रयासों की जरूरत है। सरकारी हस्तक्षेप से अलग स्वतंत्र जल निकायों के गठन की आवश्यकता है, जहां काम करने वाले प्रोफेशनल को अनुबंध के आधार पर नियुक्त किए जाने और कार्य कुशलता के अनुसार भुगतान किये जाने की जरूरत है। मध्य प्रदेश में, न केवल नए जल उपचार संयंत्रों को स्थापित
करने की जरूरत है, बल्कि सभी मौजूदा जल उपचार संयंत्रों की मरम्मत और पुनरुद्धार पर भी ध्यान देना जरूरी है जिन्हें अधिक क्षमता वाले उपयोग के उद्देश्य से पिछले दशकों में स्थापित किया गया था। अब सरकारी एजेंसियों, धर्मार्थ फाउंडेशनों और सीएसआर पहलों द्वारा स्थापित सभी विकेन्द्रीकृत जल | अवसंरचना को एकीकृत प्रौद्योगिकी आधार के साथ सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
जिसके तहत सभी मौजूदा संयंत्रों को वास्तविक समय में दूरस्थ निगरानी और पर्यवेक्षण के लिए जोड़ा जाएगा।” ‘राइट टू वॉटर’ पर कानून के प्रति राज्य सरकार की हालिया पहल की सराहना करते हुए, जनजल के वैश्विक रणनीति के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सुधीर शर्मा ने कहा, “हमारा मानना है कि यह सही दिशा में एक साहसिक कदम है जो राष्ट्रीय नीति स्तर पर और संविधान में एक मौलिक अधिकार के रूप में सुरक्षित पानी का अधिकार’ को शामिल करने का मार्ग प्रशस्त करेगा। हालाँकि पानी राज्य का विषय है, लेकिन हमें लगता है कि ‘राइट टू वॉटर एक्ट’ को केंद्र सरकार द्वारा कानून के माध्यम से
राष्ट्रीय स्तर पर अनिवार्य किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, नागरिकों को उपलब्ध पानी की गुणवत्ता के मामले में भारत 122 देशों में 120वें पायदान पर है। ‘राइट टू वॉटर’ को मौलिक अधिकार के रूप में घोषणा करना पूरे देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।”
अद्वितीय क्लाउड-आधारित प्रौद्योगिकी मंच जनजल ने हमेशा जल के उपचार के लिए प्रौद्योगिकी आधारित दृष्टिकोण को बनाए रखा है क्योंकि पानी
से संबंधित अलग- अलग समस्या को हल करने के लिए उपचार की अलग- अलग प्रक्रिया की जरूरत होती है। यह जल संरक्षण और लंबे समय में अधिक जल उपलब्ध कराने का एकमात्र तरीका है। कंपनी ने अपना विशिष्ट आईपी विकसित किया है जिससे क्लाउड सर्वर के माध्यम से वास्तविक समय पर जल शोधन संयंत्रों पर दूर से निगरानी रखना और इनका प्रबंधन करना संभव हो गया है। यह प्लेटफार्म सभी वॉटर एटीएम को क्यूआर कोड्स, आरएफआईडी कार्ड के माध्यम से और डिजिटल टच स्क्रीन यूजर इंटरफेस का उपयोग कर 122 ई-वॉलेट के माध्यम से कैशलेस ट्रांजेक्शन क्षमता से भी लैस करता है। गुणात्मक (टीडीएस स्तर, तापमान, कठोरता, फ्लोराइड, लोहा, आर्सेनिक और पीएच) और मात्रात्मक (प्रति दिन निकलने वाले लीटर पानी) पर क्लाउड-आधारित सर्वरों का उपयोग करके निगरानी कर रियल टाइम खपत के आंकड़ों का पूरा उपयोग करने से प्रारंभिक रखरखाव संभव हो पाता है और इनका । संचालन दक्षता बढ़ जाती है। क्लाउड-आधारित प्लेटफॉर्म से जुड़े विश्व स्तर पर अद्वितीय विश्व स्तरीय । आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) आधारित नियंत्रकों को कंपनी ने अपने आईपी के रूप में विकसित किया है और यह संचालन की कुंजी बनी हुई है।