आम सभा, विशाल सोनी, चंदेरी। चंदेरी में चातुर्मास रत संस्कार प्रणेता मुनि श्री पद्म सागर जी महाराज ने पर्यूषण पर्व के सत्य धर्म के उद्वोधन में कहा, मनुष्य अनेक कारणों से असत्य बोला करता है, उनमें से एक तो झूठ बोलने का प्रधान कारण लोभ है। लोभ में आकर मनुष्य अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये असत्य बोला करता है।
असत्य भाषण करने का दूसरा कारण भय है। मनुष्य को सत्य बोलने से जब अपने ऊपर कोई आपत्ति आती हुई दिखाई देती है। अथवा अपनी कोई हानि होती दिखती है। उस समय वह डरकर झूठ बोल देता है, झूठ बोलकर वह उस विपत्ति या हानि से बचने का प्रयत्न करता है।
असत्य बोलने को तीसरा कारण मनोरंजन भी है। बहुत से मनुष्य हंसी मजाक में कोतूहल के लिये भी झूठ बोल देते हैं। दूसरे व्यक्ति को भ्रम में डालकर या हैरान करके अथवा किसी को भय उत्पन्न कराने के लिये या दूसरे को व्याकुलता पैदा करने के लिये झूठ बोल देते हैं। इसी से उनका मनोरंजन होता है। इसके सिवाय क्रोध में आकर मनुष्य ऐसे कुवचन, गाली गलौज मुख से निकाल बैठता है जिनको सुनकर लोगों में क्षोभ फैल जाता है.
अभिमान में आकर भी मनुष्य दूसरों को अपमानजनक असह्म वचन कह डालता है जिससे सुनने वाला यदि शक्तिशाली मनुष्य होता है तो वह भी उत्तर में उनसे भी अधिक अपमानकारक वचन कह डालता है। तलवार का घाव तो मरहम पट्ठी से अच्छा हो जाता है किंतु वचन का घाव अच्छा नहीं होता।
द्रौपदी ने दुर्योधन को व्यंगरूप से इतना कह दिया था कि ‘अंधे का पुत्र भी अंधा ही होता है।‘ यह बात दुर्योधन को लग गई और इसका बदला लेने के लिए उसने जुए में पांडवों से द्रौपदी को जीतकर अपनी सभा में अपमानित किया. इसी असह्म अपमान का बदला लेने के लिए कौरव पांडवों का महायुद्व हुआ जिसमें दोनांे ओर की बहुत जन हानि हुइ.
एक झूठी बात को सत्य सिद्ध करने के लिए मनुष्य को और बीसों असत्य बात बनानी पड़ती हैं, जिससे एक असत्य पाप के साथ अन्य अनेक पाप स्वयँ हो जाते हैं और यदि असत्य का त्याग कर दिया जाय तो मनुष्य से अन्य पाप भी स्वयंमेव छूट जाते हैं। इस कारण सत्य धर्म आत्म हित के लिए बहुत उपयोगी है।
एक बार नगर के बाहर एक साधु आये, नगर के सभी स्त्री पुरुष उनके दर्शन करने के लिये तथा उपदेश सुनने के लिये उनके निकट गये। उपदेश सुन कर प्रायः सभी ने मुनि महाराज से यथाशक्ति व्रत नियम ग्रहण किये। जब सब स्त्री पुरुष वहाँ से चले गये तब वहाँ जो मनुष्य रह गया था बड़े संकोच के साथ वह मुनि महाराज के पास आया और नम्रता के साथ बोला कि महाराज मुझे भी कुछ व्रत दीजिये। मुनि महाराज ने उससेे पूछा कि तू क्या काम करता है।
उसने उत्तर दिया कि मैं-चोर हूँ, चोरी करना ही मेरा काम है
साधु ने कहा कि फिर तू चोरी करना छोड़ दे। चोर ने विनय के साथ कहा कि गुरुदेव! चोरी मुझ से नहीं छूट सकती क्योंकि चोरी के सिवाय मुझे और कोई काम करना नहीं आता। मुनिराज ने कहा कि अच्छा भाई! तू चोरी नहीं छोड़ सकता तो झूठ बोलना तो छोड़ सकता है ? चोर ने कहा में सत्य बोलने का नियम लेता हूं. एक बार उसने राजमहल में चोरी करके आ रहा तो पहरेदारों ने पूछा कहा से आ रहे हो और कौन हो उसने कहा चोर हूँ चोरी करके आ रहा हूँ. उन्होंने सोचा मजाक कर रहा है जाने दो. चोर चला गया. सुबह चोरी का पता चलते ही राजा ने चोर को पकड़ने का आदेश दिया सैनिक चोर को पकडकर राजा के पास ले गए. उसने राजा से कहा कि मैंने पहरेदारो से कहा था कि मै चोर हूँ लेकिन उन्होंने जाने दिया. फिर उसने महाराज जी के समक्ष लिए नियम को बताया जिससे प्रभावित होकर राजा ने उसे अपना प्रमुख मंत्री बना लिया. इसलिए हमें सभी को हमेशा सत्य बोलना चाहिए. कहा भी है कि सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं.
जैन प्रवक्ता प्रवीण जैन जैनवीर ने बताया पर्यूषण पर्व के चौथे दिन जैन धर्म के नौवें तीर्थंकर श्री पुष्पदंत जी भगवान का निर्वाण कल्याणक महाकाल महोत्सव निर्वाण लाड़ू चढ़ाकर एवं पूजन विधान करके मनाया गया. इस शुभ अवसर पर प्रश्न मंच, अंताक्षरी, एक मिनट प्रतियोगिता एवं नाटक का मंचन बच्चों द्वारा किया गया. जिसका संचालन मोनू भैया एवं सम्यक जैन द्वारा किया गया विजयी प्रतियोगियों को पुरस्कृत किया जायेगा.