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मध्‍यप्रदेश में सरकारी अस्‍पतालों का बुरा हाल, मरीजों के बिस्‍तर पर कुत्ते फरमाते हैं आराम

भोपाल: 

मध्यप्रदेश में सरकार तो बदल गई लेकिन एक चीज जो नहीं बदली वो है स्वास्थ्य व्यवस्था. कहीं अस्पताल में मरीजों के हाथ में खाना परोस दिया जा रहा है तो कहीं कुत्ते मरीज़ों के बिस्तर पर आराम फरमा रहे हैं. मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राजधानी भोपाल के अस्पताल में घूम घूमकर अव्यवस्था का जायज़ा ले रहे हैं लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की बीमारी बहुत गंभीर है, हर ज़िले में फैली है. सागर के बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सेवाएं इतनी बेहतर की मरीज़ों के साथ, कुत्तों को भी आराम फरमाने का मौका मिलता है. आज़ादी इतनी कि आवारा कुत्ते मरीजों के तीमारदारों की थाली में भी मुंह मार देते हैं. खैर तंज एक तरफ, कुछ लोगों ने बताया कि अस्पताल में ही पिछले साल 6 लोगों को कुत्तों ने काट खाया. ये हालात तब हैं जब सागर से पिछली सरकार में 2 कद्दावर कैबिनेट मंत्री थे, इस सरकार में भी. स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट को जब हमने इस बारे में बताया तो उन्होंने कहा, ‘ये गंभीर मामला है, मेरी छोटी बहन अभी भर्ती है, उनसे बात करके इस समस्या का समाधान अति शीघ्र करेंगे.’

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वहीं, सागर से ही ताल्लुक रखने वाले नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा, ‘जब सरकारें बदलती हैं तो इस तरह से जो नये-नये मंत्री बनते हैं, वो घूमते हैं, दिखाने की कोशिश करते हैं. अभी वो समझ नहीं पाएंगे लोगों की समस्या, स्वागत सत्कार कराएंगे, बंगले पुतवाएंगे अगले साल तक रहे तो काम शुरू करेंगे.’ गुना कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया का इलाका है. यहां के सरकारी अस्पताल में मरीज़ों को थाली की जगह हाथ में खाना परोसा जा रहा है. मरीजों और उनके तीमारदारों की शिकायत है कि बर्तन मांगों तो जिल्लत मिलती है. एसएएस सर्वे के मुताबिक मध्यप्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मौत के आंकड़े लगभग 38 फीसद हैं, प्रदेश के 51 जिलों के 250 अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है. प्रथम श्रेणी के विशेषज्ञों के स्वीकृत पद 3266 हैं, 2044 ख़ाली पड़े हैं.

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चिकित्सा अधिकारियों के स्वीकृत पद-4860, 1926 ख़ाली हैं. एनेस्थेटिस्ट 70 फीसदी पद खाली हैं. गायनॉकोलॉजिस्ट के 54 फीसदी पद खाली हैं, जबकि शिशु रोग विशेषज्ञों के 40 फीसदी पद खाली हैं. वैसे पुराने मंत्रीजी अब नेता प्रतिपक्ष हैं वो फिलहाल तंज कस रहे हैं, ये भूलकर कि इसमें उनकी सरकार के भी 15 सालों का रिपोर्ट कार्ड है, सरकार भी तमाम लोकलुभावन वायदों में जुटी है, लेकिन स्वास्थ्य पर किसी गंभीर विमर्श तक की शुरुआत नहीं हुई है जबकि पिछले 5 सालों में मध्‍यप्रदेश का स्वास्थ्य सूचकांक लगातार गिरता गया है.

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