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क्या है महामृत्युंजय जाप ? इस प्रकार जाने मन्थन उपाय रोग उपचार

– पंडित देवकीनन्दन जोशी

सावन के महीने में महामृत्युंजय करने से समस्त नवग्रह की शांति हो जाती है भविष्य में आने वाली सभी समस्या का समाधान हो जाता है जिनके घर महामृत्युंजय की पूजा होती है उस घर में भगवान शिव का वास होता है इस कारण उस घर में भूत-प्रेत कभी नहीं आते दुख दरिद्र कभी नहीं आते भगवान शिव की कृपा से घर में शांति बनी रहती है !!

घर का कोई सदस्य किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और समझती इलाज कराने के बाद में भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है तो भगवान मृत्युंजय का जाप घर में कराना चाहिए

जिन घर में आर्थिक तंगी चल रही है प्रयास करने के बाद में भी नौकरी नहीं लग पा रही जॉब के लिए परेशान हो रहै है वह व्यक्ति कहीं मृत्युंजय का जाप करा ले तो उसके घर में धन धान्य की वृद्धि होगी

रुद्राभिषेक- विधान-एक सम्पूर्ण जानकारी-

रूद्र अर्थात भूत भावन शिव का अभिषेक शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।

शिव को ही रुद्र कहा जाता है क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।

हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं।

रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र:*

सर्वे देवा: शिवात्मका:

अर्थात् :- सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।

हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है।

साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं।

किसी खास मनोरथ कीपूर्ति के लिये तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक की जाती है।

रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार

 जल से अभिषेक करने ?पर वर्षा होती है।

 असाध्य रोगों एवं बाधा दोष एवं ऐसी बीमारी जो पकड़ में नही आ रही हो को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।

भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।

•? लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।

•? धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।

•? तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।एवं बाधा शान्ति होती है।

?• इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है ।

•? पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्रा रुद्राभिषेक करें।

•? रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।

•? ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।

•? सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।

•? प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जातीहै।

•? शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।

•? सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है। एवं उसका मारण होता है।

• ?शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है। लक्ष्मी प्रप्ति होती है।

•? पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।

•? गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।

•? पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है।

परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है।

विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत सेभी अभिषेक किया जाता है।

तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।

इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत हीउत्तम फल देता है।

किन्तु यदि पारद के शिवलिंग काअभिषेक किया जाय तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है। रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है। विद्वानों ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है। पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था। जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।

भष्मासुर ने शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।

रुद्राभिषेक करने की विशेष तिथियां-*

कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।

कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।

किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।

प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।

कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।

कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।

ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।

वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं।

रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम

अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है।

संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नही है जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो सकता है ।। कुंडली ग्रह प्रभावित करने वाले
महाकाल महाकाली की जय कुछ जानकारी माइंड मन्थन भूत,प्रेत,चुड़ैल,डाकिनी,शाकिनी सब, बुरी शक्ति लगे व्यक्ति की पहिचान

?जब किसी व्यक्ति को भूत,जिन्न जिन्नात लग जाता है तो वह बहुत ही ज्ञान वाली बातें करता है,उस व्यक्ति के अन्दर इतनी शक्ति आजाती है कि दस दस आदमी अगर उसे संभालने की कोशिश करते है तो भी नही संभाल पाते हैं।

?प्रेत लगे की पहचान

प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है।

?देवता लगे व्यक्ति की पहिचान
जब लोगों के अन्दर देवता लग जाते है तो वह व्यक्ति सदा पवित्र रहने की कोशिश करता है,उसे किसी से छू तक जाने में दिक्कत हो जाती है वह बार बार नहाता है,पूजा करता है आरती भजन में मन लगाता रहता है,भोजन भी कम हो जाता है नींद भी नही आती है,खुशी होता है तो लोगों को वरदान देने लगता है गुस्सा होता है तो चुपचाप हो जाता है,धूपबत्ती आदि जलाकर रखना और दीपक आदि जलाकर रखना उसकी आदत होती है,संस्कृत का उच्चारण बहुत अच्छी तरह से करता है चाहे उसने कभी संस्कृत पढी भी नही होती है।

?देवशत्रु लगना
देव शत्रु लगने पर व्यक्ति को पसीना बहुत आता है,वह देवताओं की पूजा पाठ में विरोध करता है,किसी भी धर्म की आलोचना करना और अपने द्वारा किये गये काम का बखान करना उसकी आदत होती है,इस प्रकार के व्यक्ति को भूख बहुत लगती है। उसकी भूख कम नही होती है,चाहे उसे कितना ही खिला दिया जाये,देव गुरु शास्त्र धर्म परमात्मा में वह दोष ही निकाला करता है। कसाई वाले काम करने के बाद ऐसा व्यक्ति बहुत खुश होता है।

?गंधर्व लगना
जब व्यक्ति के अन्दर गन्धर्व लगते है तो उसके अन्दर गाने बजाने की चाहत होती है,वह हंसी मजाक वाली बातें अचानक करने लगता है,सजने संवरने में उसकी रुचिया बढ जाती है,अक्सर इस प्रकार के लोग बहुत ही मोहक हंसी हंसते है और भोजन तथा रहन सहन में खुशबू को मान्यता देने लगते है,हल्की आवाज मे बोलने लगते है बोलने से अधिक इशारे करने की आदत हो जाती है.

?यक्ष लगना
यक्ष लगने पर व्यक्ति शरीर से कमजोर होने लगता है,लाल रंग की तरफ़ अधिक ध्यान जाने लगता है,चाल में तेजी आजाती है,बात करने में हकलाने लगता है,आदि बातें देखी जाती है,

?पित्र प्रभाव माइंड रीडर
पितर दोष लगता है तो घर का बडा बूडा या जिम्मेदार व्यक्ति एक दम शांत हो जाता है उसका दिमाग भारी हो जाता है,उसे किसी जडी बूटी वाले या अन्य प्रकार के नशे की लग लग जाती है, इस प्रकार के व्यक्ति की एक पहिचान और की जाती है कि वह जब भी कोई कपडा पहिनेगा तो पहले बायां हिस्सा ही अपने शरीर में डालेगा,अक्सर इस प्रकार के व्यक्ति के भोजन का प्रभाव बदल जाता है वह गुड या तिल अथवा नानवेज की तरफ़ अधिक ध्यान देने लगता है। अक्सर ऐसे लोगों को खीर खाने की भी आदत हो जाती है,और खीर को बहुत ही पसंद करने लगते हैं।

??नाग दोष
नाग दोष लगने पर लोग पेट के बल सोना शुरु कर देते है, अक्सर वह किसी भी चीज को खाते समय सूंघ कर खाना शुरु भी करता है,
दूध पीने की आदत अधिक होती है, एकान्त जगह में पडे रहना और सोने में अधिक मन लगता है, आंख के पलक को झपकाने में देरी करता है, सांस के अन्दर गर्मी अधिक बढ जाती है,बार बार जीभ से होंठों को चाटने लगता है ,होंठ अधिक फ़टने लगते है।

? राक्षस लगना

राक्षस लगने पर भी व्यक्ति को नानवेज खाने की अधिक इच्छा होती है, उसे नानवेज खाने के पहले मदिरा की भी जरूरत पडती है, अक्सर इस प्रकार के लोग जानवर का खून भी पी सकते है, जितना अधिक किसी भी काम को रोकने की कोशिश की जाती है उतना ही अधिक वह गुस्सा होकर काम को करने की कोशिश करता है, अगर इस प्रकार के व्यक्ति को जंजीर से भी बांध दिया जाये तो वह जंजीरों को तोडने की कोशिश भी करता है अपने शरीर को लोहू लुहान करने में उसे जरा भी देर नही लगती है। वह निर्लज्ज हो जाता है, उसे ध्यान नही रहता है कि वह अपने को माता बहिन या किस प्रकार की स्त्री के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये. अक्सर इस प्रकार के लोग अचानक बार करते है और अपने कपडे तक फ़ाडने में उनको कोई दिक्कत नही होती है, आंखे जरा सी देर में लाल हो जाती है अथवा हमेशा आंखे लाल ही रहती है, हूँ हूँ की आवाज निकालती रहती है।

?पिशाच लगना

पिशाच लगने के समय भी व्यक्ति नंगा हो जाता है अपने मल को लोगों पर फ़ेंकना चालू कर देता है, उसे मल को खाते तक देखा गया है, वह अधिकतर एकान्त मे रहना पसंद करता है, शरीर से बहुत ही बुरी दुर्गंध आने लगती है, स्वभाव में काफ़ी चंचलता आजाती है, एकान्त में घूमने में उसे अच्छा लगता है, अक्सर इस प्रकार के लोग घर से भाग जाते है और बियावान स्थानों में पडे रहते है, वे लोग अपने साथ पता नही कितने कपडे लाद कर चलते है ,सोने का रहने का स्थान कोई पता नही होता है। इस प्रकार के व्यक्ति को भी भूख बहुत लगती है, खाने से कभी मना नही करता है।

?सती लगना
सती लगने वाला व्यक्ति अक्सर स्त्री जातक ही होता है, उसे श्रंगार करने में बहुत आनन्द आता है ,मेंहदी लगाना,पैरों को सजाना,आदि काम उसे बहुत भाते है, सती लगने के समय अगर पेट में गर्भ होता है तो गिर जाता है,और सन्तान उत्पत्ति में हमेशा बाधा आती रहती है, आग और आग वाले कारणों से उसे डर नही लगता है, अक्सर इस प्रकार की महिलायें जल कर मर जाती है।

?कामण लगना

कामण लगने पर उस स्त्री का कंधा माथा और सिर भारी हो जाता है, मन भी स्थिर नही रहता है, शरीर दुर्बल हो जाता है, गाल धंस जाते है, स्तन और नितम्ब भी बिलकुल समाप्त से हो जाते है, नाक हाथ तथा आंखों में हमेशा जलन हुआ करती है।

?शाकिनी लगना

डाकिनी या शाकिनी लगने पर उस स्त्री के पूरे शरीर में दर्द रहता है, आंखो में भारी दर्द रहता है, कभी कभी बेहोसी के दौरे भी पडने लगते है, खडे होने पर शरीर कंपने लगता है, रोना और चिल्लाना अधिकतर सुना जा सकता है, भोजन से बिलकुल जी हट जाता है।

?क्षेत्रपाल दोष

क्षेत्रपाल दोष लगने पर व्यक्ति को राख का तिलक लगाने की आदत हो जाती है, उसे बेकार से स्वपन आने लगते है, पेट में दर्द होता रहता है, जोडों के दर्द की दवाइयां चलती रहती है लेकिन वह ठीक नही होता है

?ब्रह्म राक्षस लगना

ब्रह्मराक्षस का प्रभाव भी व्यक्ति को अथाह पीडा देता है,| जो लोग पवित्र कार्य को करते है उनके बारे में गलत बोला करता है, अपने को बहुत ऊंचा समझता है, उसे टोने टोटके करने बहुत अच्छे लगते है, अक्सर इस प्रकार के लोग अपनी संतान के भी भले नही होते है, रोजाना मरने की कहते है लेकिन कई उपाय करने के बावजूद भी नही मरते है, डाक्टरों की कोई दवाई उनके लिये बेकार ही साबित होती है। माइंड रीडर

?चुड़ैल लगना

चुडैल अधिकतर स्त्री जातकों को ही लगती है, नानवेज खाने की आदत लग जाती है, अधिक से अधिक सम्भोग करने की आदत पड जाती है ,गर्भ को टिकने नही देती है, उसे दवाइयों या बेकार के कार्यों से गिरा देती है।चुडैल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है। माइंड रीडर

?कच्चे कलवे

कच्चे कलवे भी व्यक्तियों को परेशान करते हैं अक्सर भूत प्रेत पिशाच योनि में जाने वाली आत्मायें अपना परिवार बसाने के लिये किसी जिन्दा व्यक्ति की स्त्री और और पुरुष देह को चुनती है,फ़िर उन देहों में जाकर सम्भोगात्मक तरीके से नये जीव की उत्पत्ति करती है,उस व्यक्ति से जो सन्तान पैदा होती है उसे किसी न किसी प्रकार के रोग या कारण को पैदा करने के बाद खत्म कर देती है और अपने पास आत्मा के रूप में ले जाकर पालती है,जो बच्चे अकाल मौत मरते है और उनकी मौत अचानक या बिना किसी कारण के होती है अक्सर वे ही कच्चे कलवे कहलाते है।

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