विश्वकर्मा पूजा सिर्फ़ औपचारिक पूजा नहीं है बल्कि घर, कार्यस्थल, कारख़ाना, दुकान और औज़ारों में सकारात्मक ऊर्जा व सफलता लाने का एक माध्यम मानी जाती है। इस दिन वास्तु नियमों का ध्यान रखने से पूजा का प्रभाव और भी बढ़ जाता है। ईशान कोण में पूजा, पूर्व या उत्तर मुखी स्थापना, औज़ार व मशीनों को शुद्ध कर स्वस्तिक बनाना, दीपक अग्नि कोण में रखना और उत्तर-पूर्व की स्वच्छता। ये विश्वकर्मा पूजा के प्रमुख वास्तु नियम हैं। आइए, विस्तार से जानें:
पूजा का स्थान
ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा): वास्तु में इसे सबसे शुभ और पवित्र दिशा माना गया है। यहीं पूजा करना श्रेष्ठ है। यदि घर या कार्यस्थल में यह संभव न हो तो पूर्व या उत्तर दिशा का चयन करें। कभी भी पूजा दक्षिण-पश्चिम कोने में न करें, इससे कार्यक्षेत्र में रुकावटें आती हैं।
मूर्ति / चित्र की स्थापना
भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके रखें। पूजक को पश्चिम या दक्षिण की ओर मुख करके बैठना चाहिए। मूर्ति को ज़मीन पर सीधे न रखें, उसके नीचे लकड़ी या स्वच्छ चौकी हो।
औजार और मशीनें
मशीनें, औज़ार, वाहन, कंप्यूटर आदि को पहले अच्छे से साफ़ करें। इन्हें पूजा के समय पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। पूजा के बाद उन पर स्वस्तिक का चिह्न बनाकर रोली या हल्दी से तिलक करें।
रंग और सजावट
वास्तु के अनुसार पीला, लाल और हरा रंग शुभ ऊर्जा को आकर्षित करते हैं। पूजा स्थल पर इनका प्रयोग करें। पूजा स्थान पर प्रकाश की व्यवस्था पूर्व और उत्तर दिशा में अधिक होनी चाहिए।
दीपक और धूप
दीपक को पूजा स्थल के दक्षिण-पूर्व कोने (अग्नि कोण) में रखें। धूपबत्ती या अगरबत्ती भी इसी कोने में जलाएं।
बैठने की दिशा
पूजा करने वाले व्यक्ति का मुख पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए। यदि कई लोग एक साथ पूजा कर रहे हों तो सभी का मुख एक ही दिशा में रहे।
स्वच्छता और शुद्धता
पूजा से पहले घर/कारख़ाना विशेषकर उत्तर-पूर्व दिशा को अच्छे से साफ करें। गंदगी या अव्यवस्था वास्तु दोष बनाती है और पूजा का प्रभाव घटाती है।