फोर्टिस हेल्थकेयर के प्रमोटर रहे सिंह ब्रदर्स में शुरू हुई कलह अब मारपीट तक पहुंच गई है. मलविंदर ने अपने छोटे भाई शिविंदर पर आरोप लगाया कि उसने मारा है. एक वीडियो में मलविंदर सिंह ने अपनी चोट दिखाई. हालांकि शिविंदर ने इन आरोपों को झूठा बताया है.
आपको बता दें कि किसी दौर में सिंह भाइयों की आपसी साझीदारी के किस्से फेमस थे. दोनों को एक-दूसरे का हमसाया तक कहा जाता था. यही नहीं 2015 में शिविंदर सबकुछ अपने बड़े भाई मलविंदर के हाथों में सौंपकर राधा स्वामी सतसंग ब्यास में संत बन गए थे. यहां तक की उन्होंने फोर्टिस हेल्थकेयर के एग्जीक्यूटिव पद को भी छोड़ दिया था.
शिविंदर के मुताबिक, 2 दशक से लोग मलविंदर और शिविंदर को एक-दूसरे का पर्याय समझते थे. हकीकत यह है कि मैं हमेशा उनका समर्थन करने वाले छोटे भाई की तरह था. मैंने सिर्फ फोर्टिस के लिए काम किया. 2015 में राधास्वामी सत्संग, ब्यास से जुड़ गया. मैं भरोसेमंद हाथों में कंपनी छोड़ गया था. लेकिन दो साल में ही कंपनी की हालत खराब हो गई. परिवार की प्रतिष्ठा के कारण अब तक चुप रहा. ब्यास से लौटने के बाद कई महीनों से कंपनी संभालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन विफल रहा.
शिविंदर अपने बड़े भाई मलविंदर से 3 साल छोटे हैं. दोनों भाइयों के पास फोर्टिस हेल्थकेयर की करीब 70 फीसदी हिस्सेदारी थी. उसके देशभर में 2 दर्जन से भी ज्यादा अस्पताल हैं. ड्यूक यूनिवर्सिटी से बिजनेस ऐडमिनिस्ट्रेशन (MBA) की मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के बाद शिविंदर ने करीब 18 साल पहले कारोबार की दुनिया में एंट्री की थी. सिंह ने मैथमैटिक्स में मास्टर्स की डिग्री भी हासिल की है. वह आंकड़ों में बेहद तेज माने जाते हैं. वह दून स्कूल व स्टीफंस कालेज के छात्र रहे हैं.
शिविंदर सिंह के दादा मोहन सिंह ने 1950 में रैनबैक्सी की कमान संभाली थी, जिसकी विरासत बाद में उनके बेटे परविंदर सिंह को मिली. परविंदर के बेटे मलविंदर और शिविंदर ने रैनबैक्सी को कुछ साल पहले बेचकर हॉस्पिटल्स, टेस्ट लैबोरेटरीज, फाइनैंस और अन्य सेक्टर्स में डायवर्सिफाई किया. बताते हैं कि दोनों भाइयों ने करीब 10 हजार करोड़ में रैनबैक्सी को एक जापानी कंपनी के हाथों बेचा था. आज ग्रुप पर करीब 13 हजार करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ चुका है. कॉरपोरेट जगत के जानकार समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर करीब 23 हजार करोड़ की रकम का सिंह भाइयों ने किया क्या?
शिविंदर सिंह ने एक बयान में कहा था कि उन्होंने मलविंदर और सुनील गोधवानी के खिलाफ एनसीएलटी में मामला दायर किया है. यह मामला आरएचसी होल्डिंग, रेलिगेयर और फोर्टिस में उत्पीड़न और कुप्रबंधन को लेकर दायर किया गया है. शिविंदर के मुताबिक, मलविंदर और गोधवानी के साझा कदमों से समूह की कंपनियों और शेयरधारकों के हितों को नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि वह लंबे समय से यह कार्रवाई करना चाहते थे, लेकिन इस उम्मीद में रुके हुए थे कि उन्हें सद्बुद्धि आएगी और पारिवारिक विवाद का एक नया अध्याय नहीं लिखना पड़ेगा. इस बारे में फिलहाल मलविंदर सिंह की ओर से इस बारे में कोई बयान नहीं आया है.
परिवार का यह झगड़ा रैनबैक्सी कंपनी को जापान की दाइची सांक्यो को बेचे जाने के बाद से शुरू हुआ था. इस कंपनी को एक दशक पहले 4.6 अरब डॉलर (तक करीब 1000 हजार करोड़) में बेचा गया था. इसके बाद दोनों भाइयों ने मिलकर कई कारोबार में हाथ आजमाया, लेकिन ग्रुप भारी घाटे में आ गया और उस पर करीब 13,000 करोड़ रुपए का कर्ज हो गया. समय पर कर्ज नहीं चुका पाने के चलते ग्रुप की कुछ कंपनियों को अटैच कर लिया गया. इसके चलते दोनों भाइयों को फोर्टिस हैल्थकेयर की अपनी हिस्सेदारी बेचनी पड़ी. बिक्री के बाद फोर्टिस के खातों में धांधली के आरोप लगे. कहा गया कि दोनों भाइयों ने फोर्टिस के खातों से करीब 500 करोड़ रुपए ग्रुप की दूसरी कंपनियों में ट्रांसफर किए.