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जवानों के एक्शन से कांपा जंगल! ये हैं वो 5 कारण, जिनसे नक्सली हुए हथियार छोड़ने को मजबूर

रायपुर
 छत्तीसगढ़ का बस्तर इलाका कभी नक्सलियों का गढ़ माना जाता था लेकिन अब यहां फोर्स की गतिविधियां बढ़ गई हैं। फोर्स नक्सलियों के उन ठिकानों में पहुंच गई है जिसे सबसे सुरक्षित माना जाता था। जिसके बाद माओवादी संगठन बैकफुट पर हैं।  नक्सलियों की केंद्रीय कमेटी ने सरकार के सामने सरेंडर करने और हथियार डालने को लेकर लेटर लिखा है। यह लेटर CPI (माओवादी) के द्वारा जारी किया गया है। जो लेटर सामने आया है उस लेटर के सत्यता की जांच की जा रही है। आइए जानते हैं वो पांच कारण जिस कारण से नक्सलियों ने हथियार छोड़ने का फैसला किया है।

ताबड़तोड़ एनकाउंटर से टूटी कमर
छत्तीसगढ़ में बीते डेढ़ सालों में सुरक्षाबल के जवानों की गतिविधियां बढ़ गई हैं। सुरक्षाबल के जवानों बस्तर और नक्सल प्रभावित जिलों में लगातार एनकाउंटर कर रहे हैं। एनकाउंटर के कारण नक्सलियों की रीढ़ टूट गई है। सुरक्षाबल के जवान केवल बस्तर ही नहीं उस सभी जिलों में कार्रवाई कर रहे हैं जहां नक्सली गतिविधियों की जानकारी मिल रही हैं। छत्तीसगढ़ में इस साल अलग-अलग मुठभेड़ों में 244 नक्सली मारे जा चुके हैं। इनमें से 215 नक्सली बस्तर संभाग में मारे गए। जबकि 27 गरियाबंद जिले में मारे गए। इसके अलावा दुर्ग संभाग के मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले में दो नक्सली मारे गए हैं।

आपूर्ति को किया प्रभावित
छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबल के जवानों ने नक्सलियों के उन ठिकानों पर भी धावा बोला जो उनके लिए सुरक्षित माने जाते हैं। सुरक्षाबल के जवानों ने नक्सलियों की आपूर्ति को प्रभावित किया है। जिस कारण से नक्सली संगठनों तक हथियार और राशन नहीं पहुंच पा रहा है। सुरक्षाबलों ने माओवादियों द्वारा छिपाए गए भारी मात्रा में हथियार और गोला बारूद बरामद किया है। हथियारों की बरामदगी माओवादियों के खिलाफ बड़ा झटका मानी जा रही है। जवानों ने माओवादियों द्वारा छिपाए गए हथियारों, विस्फोटक सामग्री और रसद के बड़े डंप का पता लगाकर उन्हें जब्त किया है। जवानों ने नक्सलियों के ठिकानों से बीजीएल लांचर, मजल लोडिंग बंदूक, बीजीएल सेल, बैरल पाइप, बैटरी, इलेक्ट्रिक डेटोनेटर, डायरेक्शनल माइंस, पिठ्ठू बैग, बीजीएल पोच, माओवादी वर्दी, केरिपु पैटर्न की कॉम्बैट ड्रेस, बेल्ट, बेडशीट, माओवादी साहित्य, पटाखे और राशन सामग्री बरामद की है।

नियद नेल्लानार योजना का प्रभाव
छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ जहां सुरक्षाबल के जवान नक्सलियों के साथ सीधे तौर पर मुकाबला कर रहे हैं वहीं, सरकार भी रणनीति तौर पर बड़ी तैयारी कर रही है। नक्सल प्रभावित गांवों में विकास पहुंचाने के लिए सरकार ने नियद नेल्लानार योजना की शुरुआत की है। इस योजना का लाभ बस्तर जिले के नक्सल प्रभावित लोगों को मिल रहा है। जिस कारण से ग्रामीणों ने नक्सलियों के खिलाफ आवाज उठाई है। जिन इलाकों में विकास नहीं पहुंचा था वहां जिला प्रशासन, सुरक्षाबल के जवान के माध्यम से सरकार योजनाएं तेजी से पहुंच रही हैं। लोगों के आधारकार्ड बनाए जा रहे हैं। उनको अलग-अलग योजनाओं का लाभ मिल रहा है जिससे नक्सलवाद के खिलाफ उनका मोहभंग हुआ है और सुरक्षाबल के जवानों को सहयोग दे रहे हैं।

बड़े लीडरों के मारे जाने से संगठन कमजोर
छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबल के जवानों ने रणनीति बदली है। जवानों ने नक्सलियों के टॉप लीडरों को टारगेट करते हुए ऑपरेशन शुरु किए हैं। सुरक्षाबल के जवानों ने नक्सलियों के कई टॉप लीडरों को मार गिराया है। जिन लीडरों को मारा गया है उनमें माओवादी संगठन का महासचिव भी शामिल है। सुरक्षाबल के जवानों ने सेंट्रल कमेटी मेंबर मोडेम बालकृष्ण, डेढ़ करोड़ के इनामी बसवाराजू, सेंट्रल कमेटी मेंबर जयराम उर्फ चलपति, सेंट्रल रीजनल ब्यूरो रेणुका जैसे नक्सलियों का एनकाउंटर किया है। नक्सली संगठनों को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब पालित ब्यूरो का मेंबर और डेढ़ करोड़ रुपये का इनामी बसवाराजू मारा गया है।

माओवादी विचारधारा छोड़ रहे हैं नक्सली
एक तरफ जहां नक्सलियों के खिलाफ जवान सैन्य कार्रवाई कर रहे हैं वहीं, दूसरी तरफ बड़ी संख्या में माओवादी सरेंडर भी कर रहे हैं। सरेंडर करने वाले नक्सलियों को नई सरेंडर पॉलिसी के तहत नई शुरुआत करने का मौका दिया जा रहा है। जिसके बाद बस्तर इलाके में बड़े पैमाने पर नक्सली सरेंडर कर रहे हैं। नक्सलियों के सरेंडर और नए कैडरों की भर्ती में कमी के कारण भी नक्सली संगठन कमजोर हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 2023 में नई सरकार के गठन के बाद से अभी तक 1704 माओवादी आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा से जुड़ चुके हैं।