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बंद होगी अंग्रेजों के जमाने की यह कंपनी, केंद्र सरकार ने दी मंजूरी

केंद्र सरकार ने कोलकाता की कंपनी बीको लॉरी को बंद करने का ऐलान किया है. लगातार घाटे में चल रही इस कंपनी के लिए कोई खरीदार न मिलने की वजह से केंद्र सरकार ने इसे बंद करने की इजाजत दे दी.

गौरतलब है कि ब्रिटिश काल में शुरू हई कंपनी बीको लॉरी को सरकार सिर्फ 153 करोड़ रुपये में बेचने को तैयार थी. लेकिन सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियां भी इसे खरीदने को तैयार नहीं हुईं.

असल में तेल मार्केटिंग कंपनियां तो पहले से ही कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर परेशान हैं. ऐसे में कोई भी कंपनी बीको लॉरी को खरीदने के लिए तैयार नहीं हुई. तेल कंपनियाें का यह भी कहना था कि बीको लॉरी अब जिस काम में लगी थी, वह उनके कारोबार से मेल नहीं खाता.

सरकार ने जाने-माने कंसल्टेंट केपीएमजी से भी इस बारे में राय ली थी. केपीएमजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि अब इस कंपनी के फिर से उभर सकने की ‘शून्य संभावना’ है. केपीएमजी ने कहा था कि यदि कोई खरीदार नहीं मिलता तो कंपनी को बंद कर देना चाहिए.

कर्मचारियों को मिलेगा VRS

कंपनी में करीब 300 कर्मचारी हैं. कानून एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बुधवार को इस कंपनी को बंद करने का ऐलान करते हुए कहा कि कर्मचारियों को स्वैच्छ‍िक सेवानिवृत्त‍ि (VRS) के द्वारा बाहर जाने का विकल्प दिया जाएगा.

इसके पहले इस बीमार को कंपनी को नवजीवन देने की तमाम कोशिशें की गईं. पेट्रोलियम मंत्रालय इसके पहले इस बात पर भी विचार कर रहा था कि केंद्र सरकार द्वारा ब्याज रहित 153.20 करोड़ रुपये के बजट सपोर्ट से कंपनी को उबारा जाए और इस निवेश के बदले सरकार को इक्विटी मिले.

अब पेट्रोलियम मंत्रालय कंपनी की तमाम परिसंपत्त‍ियों को बेचेगी जिससे मिली रकम सरकार और ओआईडीबी को जाएगी. बीको लॉरी की 99 फीसदी हिस्सेदारी इन्हीं के  पास है.

कंपनी 1919 में ब्रिटिश काल में ‘ब्रिटिश इंडिया इलेक्ट्रिक कंस्ट्रक्शन कंपनी या BIECCO के नाम से शुरू हुई थी और इसका काम चाय बगानों के लिए मशीनरी का निर्माण करना था. बाद में कंपनी ने ब्रिटेन सेना की मदद के लिए शेल केस और कैमफ्लाश इक्विपमेंट भी बनाए. 1932 में कंपनी ने बीको ब्रैंड नाम से इलेक्ट्रिक फैन बनाना शुरू किया.

1939 तक यह भारत में इलेक्ट्रिक मोटर बनाने वाली प्रमुख कंपनी बन गई. 1970 में कंपनी का नाम बदलकर बीको लॉरी किया गया और 1972 में सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया. 1979 में यह पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत आने वाली पूर्ण सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी बन गई.

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