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MP निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, फाइल कीजिए केस, अनुमति की जरूरत नहीं…

नई दिल्ली

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे के सुप्रीम कोर्ट पर दिए बयान से बवाल मचा है. सोमवार को दुबे के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान वकील ने कहा, इस कोर्ट के बारे में और CJI के खिलाफ बयान दिए गए हैं.

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष निशिकांत दुबे के बयानों का भी उल्लेख किया गया. इस पर जस्टिस बीआर गवई ने पूछा कि आप क्या चाहते हैं? इस पर वकील ने कहा, मैं अवमानना ​​का केस दर्ज करवाना चाहता हूं. जस्टिस गवई ने दोटूक जवाब दिया और कहा, तो आप इसे दाखिल कीजिए. आपको हमारी अनुमति की जरूरत नहीं है. आपको अटॉर्नी जनरल से मंजूरी लेनी होगी.

इससे पहले अधिवक्ता नरेंद्र मिश्रा की तरफ से CJI और सुप्रीम कोर्ट के जजों को पत्र लिखा गया था. इस याचिका में निशिकांत के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग की गई थी. पत्र में कहा गया था कि दुबे द्वारा देश के सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ दिए गए सार्वजनिक बयान अपमानजनक और भड़काऊ हैं. ये बयान झूठे, लापरवाह और दुर्भावनापूर्ण हैं, और ये आपराधिक अवमानना ​​के बराबर हैं. ये बयान न्यायपालिका को डराने, सार्वजनिक अव्यवस्था को भड़काने और संविधान की रक्षा करने वाली संस्था को बदनाम करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है.

दुबे ने शीर्ष अदालत को निशाना बनाते हुए कहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो संसद एवं विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उन्होंने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना पर निशाना साधते हुए उन्हें देश में ‘सिविल वॉर’ के लिए जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि बीजेपी ने दुबे के बयान से खुद को अलग कर लिया। लेकिन कानून के जानकार इसे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के तौर देख रहे हैं। बहरहाल, इस मामले में सुप्रीम का रुख चाहे जो भी हो, लेकिन शीर्ष कोर्ट के अवमानना के मामले पहले भी सामने आए हैं जिसमें कोर्ट ने एक्शन लिया। आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के पांच हाई प्रोफाइल मामले कौन से हैं?

1. बाबा रामदेव मामला (2024)
बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद ने एलोपैथी और आधुनिक चिकित्सा के खिलाफ कई विवादित विज्ञापन दिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें विज्ञापन और बयान रोकने का आदेश दिया। रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया और निगेटिव विज्ञापन देना जारी रखा। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अवमानना का नोटिस जारी किया। रामदेव और बालकृष्ण ने अदालत में बिना शर्त माफी मांगने का हलफनामा दाखिल किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

2. प्रशांत भूषण मामला (2020)
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील और सोशल एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण ने जुलाई 2020 में ट्विटर पर दो ट्वीट किए। एक में उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को बिना हेलमेट और मास्क के हार्ले डेविडसन बाइक पर बैठे हुए दिखाया और लिखा कि जब देश में लॉकडाउन था, तब CJI छुट्टी पर हैं। दूसरे ट्वीट में उन्होंने कहा कि पिछले 6 वर्षों में भारत की शीर्ष कोर्ट ने लोकतंत्र को कमजोर करने में भूमिका निभाई है। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और प्रशांत भूषण के खिलाफ क्रिमिनल कंटेम्प्ट की कार्यवाही शुरू की। प्रशांत भूषण ने माफी मांगने से इनकार कर दिया और कहा कि यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका की गरिमा और विश्वास बनाए रखना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को दोषी पाया और ₹1 जुर्माना लगाया। प्रशांत भूषण ने बाद में जुर्माना भर दिया।

3. विजय माल्या मामला (2017)
विजय माल्या किंगफिशर एयरलाइंस और कई बैंकों से लिए गए हजारों करोड़ रुपये के कर्ज़ विवाद के बाद भारत से भाग गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि माल्या किसी भी तरह की संपत्ति का हस्तांतरण नहीं करेंगे। इसके बावजूद, माल्या ने अपने बच्चों के बैंक अकाउंट में 40 मिलियन डॉलर ट्रांसफर कर दिए। सुप्रीम कोर्ट ने विजय माल्या को जानबूझकर आदेश की अवहेलना करने का दोषी माना। कोर्ट ने माल्या को अवमानना का अपराधी करार दिया था।

4. जस्टिस सी. एस. कर्णन मामला (2017)
कलकत्ता हाई कोर्ट के तत्कालीन जज सी.एस. कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के 20 जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करते हुए सार्वजनिक रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाए और अदालत के समन को नज़रअंदाज़ किया। सुप्रीम कोर्ट ने सात सीनियर जजों की बेंच गठित कर कर्णन के खिलाफ अवमानना की सुनवाई की। कर्णन लगातार कोर्ट में पेश नहीं हुए और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बयान देते रहे। सुप्रीम कोर्ट ने 6 महीने जेल की सजासुनाई।

5. अरुंधति रॉय मामला (2002)
प्रसिद्ध लेखिका और सोशल एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय ने नर्मदा बचाओ आंदोलन के समर्थन में बयान देते हुए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की आलोचना की, जिसमें नर्मदा डैम परियोजना को हरी झंडी दी गई थी। उन्होंने एक लेख और प्रेस वक्तव्य में कहा कि कोर्ट ने गरीबों के अधिकारों की अनदेखी की है। सुप्रीम कोर्ट ने अरुंधति रॉय के बयान को 'न्यायपालिका की अवमानना' माना और उन्हें तलब किया। रॉय ने अपने बयान पर खेद नहीं जताया और अपने विचारों को सही बताया। कोर्ट ने अरुंधति रॉय को एक दिन जेल और ₹2000 जुर्माना की सजा दी।

पत्र में CJI से बयानों का स्वतः संज्ञान लेने और आपराधिक अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया गया था.

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