भोपाल
सुप्रीम कोर्ट ने बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान के के पूर्वजों से जुड़े संपत्ति विवाद में शुक्रवार को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की शाही संपत्ति से जुड़े दशकों पुराने संपत्ति विवाद को नए सिरे से सुनवाई के लिए निचली अदालत को वापस भेज दिया था।
जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अतुल चंदुरकर की बेंच ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया। बेंच ने नवाब हमीदुल्ला खान के बड़े भाई के वंशजों उमर फारुक अली और राशिद अली की याचिका पर नोटिस जारी किया, जो हाईकोर्ट के 30 जून के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें 14 फरवरी, 2000 के निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया गया था, जिसमें नवाब की बेटी साजिदा सुल्तान, उनके बेटे मंसूर अली खान (पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान) और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों, अभिनेता सैफ अली खान, सोहा अली खान, सबा सुल्तान और अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के संपत्ति पर विशेष अधिकार बरकरार रखे गए थे।
हाईकोर्ट ने कहा था कि निचली अदालत का फैसला 1997 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले पर आधारित था, जिसे बाद में 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था। हालांकि, 2019 के उदाहरण को लागू करने और मामले का निर्णायक रूप से फैसला करने के बजाय, हाईकोर्ट ने मामले को पुनर्मूल्यांकन के लिए वापस भेज दिया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत ने कहा कि हाईकोर्ट का आदेश दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के तहत उल्लिखित प्रक्रियात्मक मानदंडों के विपरीत है।
यह मामला 1999 में नवाब के विस्तारित परिवार के सदस्यों द्वारा दायर दीवानी मुकदमों से जुड़ा है, जिनमें दिवंगत बेगम सुरैया राशिद और उनके बच्चे, महाबानो (अब दिवंगत), नीलोफर, नादिर और यावर के साथ ही नवाब की एक और बेटी नवाबजादी कमर ताज रबिया सुल्तान शामिल हैं।
वादियों ने नवाब की निजी संपत्ति के बंटवारे, कब्जे और न्यायसंगत निपटान की मांग की थी।
निचली अदालत ने साजिदा सुल्तान के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि संपत्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ के अधीन नहीं है और संवैधानिक प्रावधानों के तहत उन्हें हस्तांतरित की गई थी।
सन 1960 में नवाब की मृत्यु के बाद, भारत सरकार ने 1962 का एक प्रमाण पत्र जारी किया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 366(22) के तहत साजिदा सुल्तान को शासक और निजी संपत्ति की वास्तविक उत्तराधिकारी दोनों के रूप में मान्यता दी गई।
हालांकि, वादी पक्ष ने तर्क दिया कि नवाब की निजी संपत्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत सभी कानूनी उत्तराधिकारियों में बांटी जानी चाहिए।
उन्होंने यह भी बताया कि 1962 के प्रमाण पत्र पर औपचारिक रूप से कोई विवाद नहीं था, लेकिन दावा किया कि यह न्यायसंगत विभाजन को नहीं रोकता।
अभिनेता सैफ अली खान और उनके परिवार सहित प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि उत्तराधिकार में ज्येष्ठाधिकार के नियम का पालन किया गया और साजिदा सुल्तान को शाही गद्दी और निजी संपत्ति, दोनों का वंशानुगत उत्तराधिकार प्राप्त हुआ था।
निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए, हाईकोर्ट ने मामले को वापस भेज दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने मामले को वापस भेजने के आदेश को पलटने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया।