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सुकमा हमला: फरवरी से जून तक जवानों को TCOC के जाल में फंसाने के लिए ये चाल चलते हैं नक्सली

नई दिल्ली
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके सुकमा में बीते दिनों सुरक्षाबल के 17 जवान शहीद हो गए. नक्सली हमले में इतनी बड़ी संख्या में जवानों की मौत को पीछे की वजह हैरान कर देने वाली है. जानकार बताते हैं कि इस हमले में भी नक्सलियों ने उसी तकनीक का इस्तेमाल किया, जिसका सहारा वह पहले भी ले चुके हैं. टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन (TCOC) के तहत हमला कर एक बार फिर नक्सलियों ने सुरक्षाबल के जवानों को सुकमा में बड़ा नुकसान पहुंचाया है. फरवरी से जून के महीने में खासतौर से नक्सली टीसीओसी हमले करते हैं.

अब तक का सबसे बड़ा हमला भी इसी TCOC के तहत हुआ था, जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे. नक्सलियों का नेता हिडमा इस तरह के हमले का मास्टरमाइंड बताया जाता है. इसी साल जनवरी में यह बड़ा नेता बना है. 1.5 करोड़ के इनामी रमन्ना के मारे जाने के बाद हिडमा को नेता चुना गया था.

यह होता है टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन

बीएसएफ के रिटायर्ड कमांडेंट लईक अहमद सिद्दीकी बताते हैं कि फरवरी के बाद मौसम में बदलाव होता है. पतझड़ के मौसम के चलते जंगल में बड़े बदलाव आते हैं. पेड़ों पर पत्ते नहीं रहते, जिसके कारण दूर ऊंचाई पर बैठे नक्सली, जवानों के मूवमेंट को आसानी से देखते रहते हैं. यही वजह है कि पूरे साल बड़े हमलों का इंतजार करने वाले नक्सली इस वक्त टीसीओसी को फरवरी-जून में अंजाम देते हैं.

नक्सली टीसीओसी के लिए ऐसे बिछाते हैं जाल

नक्सल प्रभावित इलाका हो या फिर आतंकवाद से ग्रस्त कश्मीर और नॉर्थ-ईस्ट, हर जगह सुरक्षाबल रूटीन गश्त करते हैं. नक्सली इलाकों में ये जवान टीसीओसी के तहत जाल में फंसाए जाते हैं. इसके लिए नक्सली अपने लोगों के जरिए सुरक्षाबलों तक कई तरह की झूठी सूचनाएं पहुंचवाते हैं, जैसे नक्सलियों के बड़े नेता एक जगह मीटिंग के लिए जमा होने वाले हैं. नक्सली बड़ी संख्या में जमा हो रहे हैं और किसी बड़े हमले को अंजाम दे सकते हैं. इन झूठी सूचनाओं की पुष्टि करने निकले जवान जाल में फंस जाते हैं.

टीसीओसी के तहत हुए कुछ बड़े हमले

नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच हुईं अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ सुकमा की ही बताई जाती है. 6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने टीसीओसी का फायदा उठाते हुए हमला किया था. नक्सलियों के इस हमले में 76 जवान शहीद हो गए थे. अप्रैल 2017 बुर्कापाल हमले में भी 25 जवान शहीद हुए थे. इसी तरह मार्च 2018 में पलोड़ी के हमले में 9 जवान शहीद हुए थे. सुकमा के ही भेज्जी इलाके में 11 मार्च 2017 को हुए हमले में 12 जवान शहीद हुए थे. जानकार बताते हैं कि ज़्यादार बड़े हमले इसी मौसम का फायदा उठाते हुए किए गए हैं.

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