“बनारस शहर में भीड़ भी है,
मगर गंगा किनारे बड़ा सुकून भी है.”
वाराणसी धर्म शिक्षा तथा संगीत का केंद्र होने के कारण यह नगरी आगन्तुकों को एक अति मनमोहनीय अनुभव प्रदान करती हैं, पत्थरो के ऊँची सीढियों से घाटो का नजारा , मंदिर के घंटो निकलती ध्वनि , गंगा घाट पर चमकती वो सूरज की किरणें तथा मंदिरों में होने वाले मंत्र उच्चारण इंसान को न चाहते हुए भी भक्ति के सागर में गोते लगाने को मजबुर कर देती हैं।
इस शहर के नाम में ही प्रेम हैं, संगीत हैं, कविताएं हैं और एक ठहराव हैं
गंगा मां की गोद में विराजित यह दुनिया में भारत की संस्कृति और सभ्यता का अनूठा प्रदर्शन करती है। शिव की नगरी से प्रख्यात शहर वाराणसी हर वर्ष नई ऊंचाइयों को छू रहा है। कहते हैं यहां शिव जी का कण कण में वास है और सभी के दिल में भोले के प्रति अनूठी आस है। इस शहर में बसता इसका खुद का इतिहास भी है। यहाँ की सुबह जितनी खूबसूरत होती हैं उससे कही ज्यादा रंगीन होती हैं, शाम- ए – बनारस। जब गंगा के किनारे हरी- पीली रोशन मे नहाए घटो को देखने का मौका मिले, गंगा के बहते पानी को देखकर सुकून मिले तो ऐसी शाम को कौन नही देखना चाहेगा। बनारस की शाम को देखना वैसे ही है, जैसे किसी से इश्क करना। यहाँ ज्ञान की गंगा बह रही है, चाय चल रही है और पान की गिलौरियां धडाधड मुह में गायब हो रही हैं, कहा भी जाता है बनारस में सब गुरु केहु नही चेला। बनारस जिने का नाम है, अपने भीतर उतरने का मार्ग हैं।
बनारस की संस्कृति का गंगा नदी से अटुट रिश्ता है हैं। ऐसा मना जाता है की गंगा नदी में डुबकी लगाने से आत्मा पवित्र होती हैं और सारे पाप धुल जाते है। यहाँ के घाट पर शाम को होने वाली गंगा आरती का नजारा वाकई अद्भुत होता है।
बनारस कला और शिल्प का केंद्र होने के साथ साथ एक ऐसा स्थान भी है जहाँ मन को शांति तथा परम आनंद की अनुभूति भी होती हैं। यह सिर्फ एक शहर ही नही हैं, ये एक भाव हैं जो हर दिल मे बसता है। यहा अगर गंगा की लहरे जीवन को गतिमान करती हैं तो शिव के दर्शन से जीवन जीवंत रहने की प्रतिज्ञा कर लेता है। ये काशी की पवित्र घाट टुटे हुए दिलों की मरम्मत भी करती हैं और इन्ही घाटो की सिड़ियो के किसी कोने में बैठ कर एक नये इश्क की कहानी भी लिख जाती हैं।
ये बनारस की घाट जिंदगी के हर लम्हें से आपको रूबरू कराते हैं। एक बार घूम कर तो देखिये इन घाटो को ।
इसीलिए ही तो कहा गया है
“उलझ कर तुम्हारी मुस्कुराहट की समंदर मे , मैं भी एक दरिया- ए -नाव हो जाऊ,
तुम मिलो अगर गंगा की तरह तो मैं भी बनारस का एक घाट हो जाऊं। ”
*-नवनीत कुमार, बिहार*