बालोतरा
बालोतरा शहर में शुक्रवार का दिन आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। जैन समाज के विख्यात संत शालीभद्र महाराज ने 16 दिन की संथारा साधना पूर्ण करते हुए शांतचित्त मन से देह त्याग दी। स्थानक भवन परिसर में पिछले दिनों से उनके दर्शन करने और साधना का साक्षी बनने के लिए प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु पहुंच रहे थे। शुक्रवार को निकली उनकी बैकुंठ यात्रा में जिस तरह से सभी समाजों के लोगों का सैलाब उमड़ा, वह बालोतरा शहर ने पहले कभी नहीं देखा था।
शालीभद्र महाराज का जीवन एक विलक्षण यात्रा रहा। 12 अक्टूबर 1947 को अलवर में जन्मे प्रकाश संचेती (सांसारिक नाम) बचपन से ही धार्मिक और अनुशासित वातावरण में पले-बढ़े थे। युवा अवस्था में उन्होंने जयपुर में रत्नों का व्यवसाय शुरू किया, और जल्द ही उनका व्यापार अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों तक फैल गया। अंतरराष्ट्रीय पहचान के बावजूद उनके भीतर आध्यात्मिकता का बीज लगातार बढ़ता रहा।
उनकी मां की प्रेरणा ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। इसी प्रेरणा से उन्होंने 12 वर्षों तक गहन मौन और वैराग्य का जीवन जिया। अंततः 8 सितंबर 1994 को उन्होंने दीक्षा लेकर सभी सांसारिक मोह छोड़ दिए और ‘शालीभद्र जी’ के रूप में जैन समाज के प्रतिष्ठित संत बन गए।
साल 2018 में बालोतरा उनका प्रमुख प्रवास स्थान बना, जहां उन्होंने प्रवचन, साधना और सेवा के माध्यम से हजारों लोगों के जीवन को प्रभावित किया। 5 नवंबर 2025 को उन्होंने पूर्ण प्रसन्नता और आत्मिक तृप्ति के साथ संथारा साधना का संकल्प लिया। 16 दिनों तक उन्होंने अन्न-जल का त्याग कर ध्यान, जप और आत्मचिंतन में स्वयं को समर्पित कर दिया। उनके दर्शन के लिए लगातार श्रद्धालु आते रहे और उनके शांत, तेजस्वी चेहरे को देख भाव-विह्वल होते रहे। जैन धर्म में संथारा को मृत्यु नहीं, बल्कि आत्मा की अंतिम साधना माना जाता है, जहां व्यक्ति पूर्ण क्षमा, शांति और निर्मलता के साथ जीवन की यात्रा को विराम देता है।
शुक्रवार की सुबह उन्होंने समाधि अवस्था में देह त्याग दी। दोपहर में निकली बैकुंठ यात्रा के दौरान शहर जैसे ठहर गया। सड़कों पर लोगों का जनसैलाब उमड़ आया, दुकानों पर शटर बंद रहे, जगह-जगह पुष्पवृष्टि हुई और वातावरण “शालीभद्र महाराज अमर रहें” के जयघोष से गूंज उठा। लोग घरों और छतों से फूल बरसाते रहे और पूरे शहर में श्रद्धा, शांति और भावुकता का अद्भुत माहौल रहा। बालोतरा के धार्मिक इतिहास में यह दिन एक अविस्मरणीय अध्याय की तरह दर्ज हो गया।
Dainik Aam Sabha