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मध्य प्रदेश में छापेमारी में पकड़ाने वाली सेक्स वर्कर्स अब नहीं कहलाएंगी आरोपी

भोपाल

देह व्यापार में लिप्त महिलाओं को अब पुलिस न तो पकड़ सकेगी न ही आरोपी बना सकेगी। इस संबंध में पुलिस मुख्यालय ने शुक्रवार को नई गाइडलाइन जारी की और भोपाल, इंदौर पुलिस कमिश्नर के साथ ही सभी जिलों के एसपी को भेजी। इसके अनुसार यदि होटल और ढाबों में अनैतिक व्यापार किया जा रहा है तो केवल होटल या ढाबा संचालकों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी न कि वहां काम करने वाली महिलाओं के खिलाफ। विशेष पुलिस महानिदेशक (महिला सुरक्षा) प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव की तरफ से जारी गाइडलाइन में लिखा है कि कुछ जिलों में अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम के तहत पंजीबद्ध अपराध में होटल एवं ढाबों के संचालकों द्वारा पैसा लेकर होटल एवं ढाबों के कमरों को, वेश्यालयों के रूप में चलाया जा रहा है। ऐसे मामलों में पुलिस द्वारा दबिश देने के बाद बरामद की गई महिलाओं को आरोपी बनाया जाता है।  

सुप्रीम कोर्ट दे चुकी है आदेश
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देकर कहा गया है कि यदि होटल और ढाबों में अनैतिक व्यापार किया जा रहा है तो केवल होटल या ढाबा संचालकों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। गाइडलाइन में साफ लिखा है कि वहां काम करने वाली महिलाओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट के बुद्धदेव कर्मास्कर विरुद्ध पश्चिम बंगाल राज्य एवं अन्य में मामले में दिए आदेश का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि वेश्यालयों पर छापों के दौरान यह ध्यान रखा जाए कि स्वेच्छा से लैंगिक कार्य करना अवैध नहीं है। केवल वेश्यालय चलाना अवैध है। ऐसे मामलों में सेक्स वर्कर को गिरफ्तार, दंडित अथवा परेशान नहीं किया जाना चाहिए।

यह कदम तब उठाया गया है जब पुलिस द्वारा बार-बार दबिश के दौरान महिला सेक्स वर्कर्स को आरोपी बना दिया जाता था, जबकि वे कई बार केवल शोषित होती थीं। अब, इस पर स्पेशल डीजी महिला सुरक्षा प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं, जिनके अनुसार पुलिस को इन महिलाओं के साथ पीड़ित और शोषित व्यक्तियों जैसा व्यवहार करना चाहिए, न कि उन्हें दोषी ठहराना।

महिला सेक्स वर्कर्स को आरोपी बनाने की समस्या

वर्षों से, प्रदेश में ढाबों और होटलों में संचालित वेश्यालयों पर जब भी पुलिस कार्रवाई करती, तब उन स्थानों से पकड़ी जाने वाली महिलाएं अक्सर अपराधी करार दी जाती थीं। होटल संचालकों और ढाबा मालिकों द्वारा इन महिलाओं को सेक्स वर्क के लिए काम पर रखा जाता था, लेकिन पुलिस द्वारा की गई कार्रवाइयों में केवल वेश्यालय संचालक ही आरोपित होते थे, जबकि महिला सेक्स वर्कर्स को भी गिरफ्तार कर लिया जाता था और उन्हें आरोपी बना दिया जाता था। इस मामले में पुलिस की कार्यवाही को लेकर कई तरह की आलोचनाएँ भी उठ रही थीं, क्योंकि यह महिलाएँ अक्सर अपने विवशता, गरीबी या अन्य सामाजिक कारणों के चलते इस व्यवसाय में शामिल होती थीं, न कि अपनी इच्छा से।

सर्वोच्च न्यायालय का आदेश और पीएचक्यू के निर्देश

इस संबंध में स्पेशल डीजी महिला सुरक्षा प्रज्ञा ऋचा श्रीवास्तव ने अपने निर्देश में कहा कि कई जिलों में अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड किए गए अपराधों में अक्सर देखा जाता है कि होटल संचालक और ढाबा मालिक पैसा लेकर अपने प्रतिष्ठानों में वेश्यालय चलाते हैं। ऐसे मामलों में महिला सेक्स वर्कर्स को आरोपी बना दिया जाता था, जो कि उचित नहीं था।

साथ ही, उन्होंने 21 सितंबर 2023 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश का हवाला देते हुए कहा कि "वेश्यालयों में दबिश के दौरान स्वैच्छिक लैंगिक कार्य अवैध नहीं है। केवल वेश्यालय चलाना अवैध है, सेक्स वर्कर को गिरफ्तार कर दंडित या परेशान नहीं किया जाना चाहिए।" सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के तहत यह सुनिश्चित किया गया था कि सेक्स वर्कर्स को केवल शोषित और पीड़ित के रूप में देखा जाए, न कि अपराधी के रूप में।

निर्देशों का पालन और प्रभाव

पीएचक्यू ने इस फैसले के आधार पर एक बड़ा कदम उठाते हुए सभी संबंधित पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि अब इन स्थानों से पकड़ी गई महिला सेक्स वर्कर्स को न तो गिरफ्तार किया जाए, न ही किसी प्रकार का शोषण किया जाए। इन महिलाओं के साथ संवेदनशीलता के साथ व्यवहार किया जाएगा और यदि वे किसी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं हैं तो उन्हें बिना किसी आरोप के छोड़ दिया जाएगा।

इस दिशा में पुलिस अधिकारियों को कठोर अनुपालन सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि किसी भी महिला सेक्स वर्कर के अधिकारों का उल्लंघन न हो। साथ ही, पुलिस को यह भी ध्यान रखने को कहा गया है कि महिला सेक्स वर्कर के साथ संवेदनशीलता और सहानुभूति से पेश आया जाए।

सकारात्मक प्रभाव और सामाजिक दृष्टिकोण

यह कदम मध्य प्रदेश में महिला अधिकारों और समाज में सेक्स वर्कर्स के प्रति सम्मान की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव का संकेत है। इस फैसले से जहां एक तरफ महिला सेक्स वर्कर्स को मानसिक और शारीरिक शोषण से बचाया जाएगा, वहीं दूसरी तरफ इस कदम से यह भी संदेश जाएगा कि किसी भी महिला को उसकी इच्छा के बिना अपराधी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, विशेषकर यदि वह किसी सामाजिक, आर्थिक या शोषण के कारण इस व्यवसाय में शामिल हो।

इस बदलाव के बाद, वेश्यावृत्ति से जुड़ी महिलाओं के लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने की दिशा में प्रशासन की ओर से एक बड़ा कदम उठाया गया है, जो समाज में लिंग समानता और महिला अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है।

आगे की राह

इस फैसले के साथ, राज्य पुलिस अब उन महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और सहानुभूतिपूर्ण वातावरण बनाने के लिए तैयार है, जो कभी कानून के शिकंजे में फंस जाती थीं। हालांकि, अब यह जरूरी होगा कि सरकार और समाज मिलकर ऐसी महिलाओं के लिए रोजगार और शिक्षा जैसी योजनाओं का विस्तार करें, ताकि वे शोषण के बजाय अपने जीवन में सशक्तीकरण की दिशा में कदम बढ़ा सकें।

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