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प्रदेश के वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद मोहन माथुर का निधन, लंबे समय से बीमार थे, सीएम मोहन यादव ने जताया दुख

इंदौर

इंदौर के वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवी आनंद मोहन माथुर का 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 95 वर्ष की आयु तक वे सामाजिक आयोजनों और आंदोलनों में सक्रिय थे और वकालत भी करते थे। इसके बाद से वे बीमार हो गए थे। लंबी बीमारी के चलते ही उनका निधन हो गया। आनंद मोहन माथुर ने इंदौर के लिए कई उल्लेखनीय काम किए हैं। खुद के खर्च पर उन्होंने शहर में एक सभागृह, झूला ब्रिज और ओपीडी सहित अन्य काम कराए थे। वे कई संगठनों से भी जुड़े थे। उनके निधन पर कई संगठनों और नागरिकों ने शोक व्यक्त किया है।

मिल में मजदूरी भी की
वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवी माथुर ने आजादी आंदोलनों में भी भाग लिया था। किशोरावस्था में वे अंग्रेजों के खिलाफ हो रहे आंदोलनों में हिस्सेदारी करने लगे थे। इसका खामियाजा उनके परिवार को भुगतना पड़ा। साथ ही उन्हें अपने परिवार का साथ भी छोड़ना पड़ा था। इसके बाद वे गांव से इंदौर आ गए। उन्होंने मालवा मिल में बदली मजदूर के रूप में काम किया। इसके अलावा उन्होंने काॅलेज में अध्यापन कार्य भी किया। उनका सपना डाॅक्टर बनने का था, लेकिन फिर बाद में उन्होंने वकील बनने का निर्णय लिया। वकील बनकर उन्होंने अपने पेशे को बड़ी निष्ठा से निभाया। वकालत कर उन्हें जो भी फीस मिलती थी, उसका बड़ा हिस्सा वे समाजसेवा से जुड़े कामों में खर्च करते थे।

देश का प्रतिनिधित्व भी किया
माथुर ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कानून विशेषज्ञों के रूप में देश का प्रतिनिधित्व भी किया है। उन्होंने इंदौर की कान्ह नदी पर एक झूला ब्रिज बनवाया। इसके अलावा आनंद मोहन माथुर सभागृह का निर्माण भी कराया। बाइपास पर उन्होंने बेशकीमती जमीन समाज से जुड़े कामों के लिए दे दी। समाजसेवा से जुड़े कई ट्रस्टों में वे ट्रस्टी की भूमिका में लंबे समय तक रहे।

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जताया दुख
सीएम ने ट्वीट करते हुए लिखा, 'वरिष्ठ अधिवक्ता और समाजसेवी श्री आनंद मोहन माथुर जी के निधन का दुखद समाचार प्राप्त हुआ। आपका सम्पूर्ण जीवन सामाजिक आंदोलनों एवं जनसेवा के लिए समर्पित रहा। इंदौर शहर के लिए किए गए आपके उल्लेखनीय कार्य हम सभी के लिए प्रेरणादायक हैं। बाबा महाकाल से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में विश्रांति दें एवं शोकाकुल परिजनों को इस कठिन घड़ी में संबल प्रदान करें।'

उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया था और आपातकाल (Emergency) के दौरान जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। इसके अलावा, वे मालवा-निमाड़ सहित पूरे मध्य प्रदेश में आंदोलनकारियों के लिए कानूनी सलाहकार और मेंटर रहे। उनकी सामाजिक चेतना और निष्पक्ष जांच की मांग को लेकर वे हमेशा मुखर रहे, जैसे कि भोपाल एनकाउंटर (2016) और विकास दुबे एनकाउंटर (2020) जैसे मामलों में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से जांच की मांग की थी।

गरीब के कारण डॉक्टर नहीं बन पाए :

आनंद मोहन माथुर शुरुआत से कानून नहीं बल्कि मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते थे। उनका परिवार गरीब था। स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते पिता की नौकरी भी चली गई थी। इसके बाद पैसों की तंगी हुई और आनंद मोहन माथुर का डॉक्टर बनने का सपना अधूरा रह गया।

पढ़ाई पूरी करने के लिए मजदूरी की :

आनंद मोहन माथुर सामान्य व्यक्तित्व के व्यक्ति नहीं थे। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन उनके हौसले बुलंद थे। उन्होंने अपने संघर्ष के शुरुआती दिनों में इंदौर की मालवा मिल में बदली मजदूर के रूप में काम किया। इसके बाद मेहनत करके उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान उन्होंने कॉलेज में शिक्षक के रूप में भी सेवाएं दीं।

बेटी को बनाया डॉक्टर :

खुद डॉक्टर नहीं बन सके इसलिए अपनी बेटी को उन्होंने डॉक्टर बनाने का निर्णय लिया। मेहनत और लगन से उन्होंने अपनी बेटी को मेडिकल की पढाई करवाई। इस समय आनंद मोहन माथुर की बेटी डॉक्टर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहीं हैं।

भोपाल गैस कांड का केस भी लड़ा :

आनंद मोहन माथुर की कहानी का एक अहम हिस्सा भोपाल गैस कांड से जुड़ा है। जिस दिन उनकी बेटी की शादी थी उसी दिन भोपाल में गैस कांड हुआ। बेटी को विदा कर वे तुरंत भोपाल के लिए रवाना हो गए। उन्होंने भोपाल गैस कांड मामले से जुड़ी याचिका कोर्ट में दायर की। उनके द्वारा डाउ केमिकल फैक्ट्री से पीड़ितों के लिए मुआवजे की मांग को भी प्रमुखता से उठाया गया।

समाजसेवा से जुड़े काम :

आनंद मोहन माथुर जितने बड़े कानूनविद थे उतने ही बड़े समाजसेवी थे। अधिवक्ता के नाते मिली फीस का बड़ा हिस्सा वे दान कर देते थे। उन्होंने अपनी जमीन भी समाजसेवा से जुड़े कामों में दी। अपने खर्च पर कान्हा नदी पर ब्रिज बनवाया और आनंद मोहन माथुर सभागृह का निर्माण भी किया।

संगीत प्रेम भी थे आनंद मोहन माथुर :

कानून के जानकर होने के साथ – साथ आनंद मोहन माथुर संगीत प्रेमी भी थे। उन्होंने अपने इसी प्रेम के चलते 94 साल की उम्र में हारमोनियम बजाना सीखा।

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