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राज्यसभा में विपक्ष पर बरसे पीएम मोदी, कांग्रेस पर लगाया जनादेश के अपमान का आरोप

नई दिल्ली
लोकसभा में विपक्ष और कांग्रेस पर बरसने के एक दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राज्यसभा में भी कांग्रेस पर तीखे हमले बोले। प्रधानमंत्री ने अपने चिर-परिचित अंदाज में ‘जनादेश पर सवाल उठाने वालों’, हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने वालों पर जमकर हमला बोला। कांग्रेस पर देश की जनता और मतदाता का अपमान का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इतना अहंकार ठीक नहीं कि कांग्रेस जीते तो देश जीता और कांग्रेस हारी तो देश हार गया।

दिवंगत सदस्य मदनलाल सैनी को श्रद्धांजलि
पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में मदनलाल सैनी को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, ‘नए जनादेश के बाद आज पहली बार राज्यसभा के सभी सदस्यों के बीच अपनी बात रखने का मौका मिला है। पहले से अधिक जनसमर्थन और अधिक विश्वास के साथ हमें दोबारा देश की सेवा करने का अवसर देशवासियों ने दिया है। मैं सबका आभार प्रकट करता हूं। लेकिन दूसरे टर्म की शुरुआत में ही हमारे सदन के आदरणीय सदस्य मदनलाल जी हमारे बीच नहीं रहे, मैं उन्हें श्रद्धांजलि देता हूं।’

‘अरुण जेटली को सुनने का फिर सौभाग्य मिलेगा’
राज्यसभा के हर सत्र में अरुणजी (जेटली) की वाकपटुता, उसे सुनने के लिए हर सदस्य उत्सुक रहता है, लेकिन वह स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं। फिर से हमें वह सौभाग्य प्राप्त होगा। इसका हमें विश्वास है।

‘चर्चा में खट्टापन, मीठापन, व्यंग्य, आक्रोश सब कुछ रहा’
पिछले 2 दिन से जो चर्चा चल रही है, उस चर्चा में गुलामनबी आजाद, दिग्विजय सिंह समेत करीब 50 सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया। सबने अपने-अपने तरीके से अपनी बात बताई है। कहीं खट्टापन भी था, कहीं तीखापन भी था। कभी व्यंग्य भी था, कहीं आक्रोश भी था। कहीं पर रचनात्मक सुझाव भी थे, कहीं जनता जनार्दन का अभिवादन भी था। हर तरह के भाव यहां प्रकट हुए हैं। कुछ लोग वो भी थे जिन्हें मैदान में जाने का मौका नहीं मिला तो वहां जो गुस्सा निकालना था, उसे यहां निकाला।

दशकों बाद दोबारा एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी
यह चुनाव बहुत खास रहा। कई दशकों के बाद दोबारा एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनना, भारत के मतदाताओं के मन में राजनीतिक स्थिरता का महत्व क्या है, एक परिपक्व मतदाता की इसमें सुगंध महसूस हो रही है। यह सिर्फ इस चुनाव की बात नहीं है। हालियां कई चुनावों में मतदाताओं ने स्थिरता को तवज्जो दिया।

इस बार का चुनाव खुद जनता लड़ रही थी
बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब चुनाव स्वयं जनता-जनार्दन लड़ती है। 2019 का चुनाव दलों से परे देश की जनता लड़ रही थी। जनता खुद सरकार के कामों की बात लोगों तक पहुंचाती थी। जिसे लाभ नहीं पहुंचा, वह भी इस विश्वास से बात कर रहा था कि उसको मिला है, मुझे भी मिलने वाला है।

‘आप चुनाव जीत गए लेकिन देश हार गया’ कहना जनता का अपमान
मेरा सौभाग्य है कि मुझे देश के कोने-कोने में जनता जनार्दन का दर्शन करने का मौका मिला। लेकिन भारत का एक परिपक्व लोकतंत्र हो, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हो, चुनाव की ग्लोबल वैल्यू होती है। उस समय अपनी सोच की मर्यादाओं के कारण, विचारों में पनपी हुई विकृति के कारण इतने बड़े जनादेश को हम यह कह दे कि आप तो चुनाव जीत गए लेकिन देश चुनाव हार गया। मैं समझता हूं कि इससे बड़ा भारत के लोकतंत्र का अपमान नहीं हो सकता। इससे बड़ा जनता-जनार्दन का अपमान नहीं हो सकता।

कांग्रेस मतलब देश और देश मतलब कांग्रेस? इतना अहंकार ठीक नहीं 
जब यह बात कही जाती है कि लोकतंत्र हार गया, देश हार गया तो मैं जरूर पूछना चाहूंगा कि क्या वायनाड में हिंदुस्तान हार गया क्या? क्या रायबरेली, बहरामपुर, तिरुवनंतपुरम में हिंदुस्तान हार गया क्या? यह कौन सा तर्क है? यानी कांग्रेस हारी तो देश हार गया? मतलब कांग्रेस मतलब देश और देश मतलब कांग्रेस? अहंकार की एक सीमा होती है। 55-60 सालों तक देश पर राज करने वाला दल 17 राज्यों में एक सीट भी नहीं जीत पाया। मैं समझता हूं कि इस प्रकार की भाषा बोलकर हमने मतदाता के विवेक पर ठेस पहुंचाई है। हमारी आलोचना समझ सकता हूं, लेकिन देश के मतदाताओं के ऐसा अपमान बहुत पीड़ा देता है। हो सकता है कि मेरी वाणी में कोई आक्रोश भरे शब्द भी हो, लेकिन वे मेरे दल के लिए नहीं हैं, इस देश के परिपक्व लोकतंत्र के लिए है, संविधाननिर्माताओं की समझदारी के लिए है।

देश का किसान बिकाऊ नहीं है
40-45 डिग्री टेम्परेचर में लोग वोट डालने जा रहे थे। कितने-कितने लोगों की तपस्या के बाद चुनाव होता है। और हम मतदाताओं का अपमान कर दिया। यह तक कह दिया कि इस देश का किसान बिकाऊ है, 2-2 हजार रुपये की स्कीम पर बिक गया। मेरे देश का किसान बिकाऊ नहीं है, जो सबका पेट भरता है उस किसान के लिए ऐसे शब्दों के इस्तेमाल से अपमानित किया गया।

मीडिया को भी गाली दी गई। मीडिया के कारण भी चुनाव जीते जाते हैं। मीडिया बिकाऊ है क्या? मीडिया को कोई खरीद लेता है क्या? हम कुछ भी कहते रहते हैं। सदन में कही गई बातों का महत्व होता है।

हमें गर्व होना चाहिए कि भारत की चुनाव प्रक्रिया विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला अवसर होता है, इसे खोना नहीं चाहिए।…पहली बार पुरुषों के बराबर ही महिलाओं ने भी वोटिंग में हिस्सा लिया। इस बार 78 महिला सांसद जीतकर आई हैं। देश के सभी कोनों में बहुमत जीतकर बीजेपी आई है, एनडीए आया है। जो लोग हार गए हैं, जिनके सपने चूर-चूर हो गए हैं, जिनका अहंकार टूट चुका है, वे जनता का धन्यवाद नहीं पाएंगे लेकिन मैं जनता-जनार्दन का अभिनंदन करता हूं।

जिन्हें खुद पर यकीन नहीं होता, सामर्थ्य नहीं तो वे खोजते हैं EVM जैसे बहाने
यहां पर ईवीएम की चर्चा भी काफी हो रही है। एक नई बीमारी भी शुरू हुई है। ईवीएम को लेकर सवाल उठाए जाते हैं, बहाने बनाए जाते हैं। कभी हम भी सदन में सिर्फ 2 रह गए थे। हमारा मजाक उड़ाया गया था। मगर हमें अपनी विचारधारा और अपने कार्यकर्ताओं पर भरोसा था। हमने उस समय पोलिंग बूथ पर यह हुआ, वह हुआ, इस तरह की बहानेबाजी नहीं की। लेकिन जब स्वयं पर भरोसा नहीं होता है, सामर्थ्य का अभाव होता है तब फिर बहाने खोजे जाते हैं। आत्मचिंतन, दोष स्वीकारने की जिनकी तैयारी नहीं होती है, वे फिर ईवीएम को ढूढ़ते हैं ठीकरा फोड़ने के लिए। ताकि अपने साथियों को बता सकें कि हमने तो बहुत मेहनत की लेकिन ईवीएम की वजह से हार गए।

चुनाव प्रक्रिया में सुधार होता गया है। शुरुआत में महीनों-महीनों तक चुनाव चलते थे। चुनाव सुधार की एक निरंतर प्रक्रिया चलती रही। चुनाव बाद अखबारों की हेडलाइन होती थी कि कितनी हिंसा हुई, कितने लोग मारे गए और कितने बूथ कैप्चर हुए। लेकिन आज ईवीएम के जमाने में हेडलाइन होती है कि पहले के मुकाबले मतदान कितना बढ़ा।… जबसे सही अर्थ में लोकतंत्र की प्रक्रिया आई है, ऐसे लोगों के हारने का क्रम भी तभी शुरू हुआ है। इसलिए उनको वापस उसी जगह पर जाना है। देश लोकतंत्र को इस प्रकार से दबोचने की प्रक्रिया में मदद नहीं कर सकता है।

ईवीएम पर चुनाव आयोग ने चैलेंज दिया तो आज रोना रोने वाले नहीं गए थे
ईवीएमपर सबसे पहले 1977 में चर्चा शुरू हुई। 1982 में पहली बार इसका प्रयोग किया गया। 1988 में कानूनन इस व्यवस्था को स्वीकृति दी। इतना ही नहीं, 1992 में कांग्रेस के नेतृत्व में ही इस ईवीएम को लेकर सारे रूल बनाए गए थे। अब हार गए हो तो रो रहे हो। ईवीएम से देश में अबतक 113 विधानसभा चुनाव हुए हैं। यहां उपस्थित करीब-करीब सभी दलों को उसी ईवीएम से चुनाव जीतकर सत्ता में आने या उसमें भागीदार बनने का मौका मिला है। 4 लोकसभा के चुनाव हुए हैं। उसमें भी दल बदले हैं, अलग-अलग लोग जीतकर आए हैं। 2001 के बाद विभिन्न हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी ईवीएम को लेकर मसले उठाए गए हैं, लेकिन सारे मामलों में न्यायपालिका ने सकारात्मक निर्णय दिया। चुनाव आयोग ने ईवीएम से छेड़छाड़ का चैलेंज भी दिया था, लेकिन यहां जो ईवीएम का रोना रो रहे हैं, उनमें से कोई दल नहीं गया। सिर्फ 2 दल सीपीआई और एनसीपी गए वह भी प्रक्रिया समझने के लिए।

चुनाव सुधार होते रहना चाहिए
मैं हैरान हूं। कांग्रेस पार्टी के लिए कहना चाहता हूं कि इतने सालों तक आपने देश पर शासन किया है। आप विजय भी नहीं पचा पाते और 2014 से मैं लगातार देख रहा हूं कि आप पराजय को स्वीकार भी नहीं कर पाते हैं। एक देश, एक चुनाव पर चर्चा तो कीजिए। जितने भी बड़े नेताओं से मिला हूं तो व्यक्तिगत तौर पर सबने कहा कि यार इससे मुक्ति मिलनी चाहिए। क्या यह समय की मांग नहीं है कि कम से कम मतदातासूची तो एक हो।

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