मुंबई
रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के अचानक इस्तीफा + देने से शेयर, बॉन्ड और करंसी मार्केट में मंगलवार को खलबली मच सकती है। बाजार पहले ही अमेरिका और चीन के खराब ट्रेड रिलेशंस और विधानसभा चुनावों में बीजेपी के कमजोर प्रदर्शन से आशंकित है। फंड मैनेजरों, ब्रोकरेज हाउसों और ऐनालिस्टों का कहना है कि अगले गवर्नर पर निवेशकों की सोच से मार्केट की चाल तय होगी।
कोटक महिंद्रा ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर नीलेश शाह ने कहा, ‘आरबीआई गवर्नर का इस्तीफा अप्रत्याशित है। इससे मार्केट कमजोर खुलेंगे।’ भारतीय शेयर बाजार में सोमवार को ग्लोबल मार्केट्स में बिकवाली और एग्जिट पोल में बीजेपी के कमजोर प्रदर्शन दिखाए जाने से 2 पर्सेंट की गिरावट आई। वहीं, बेंचमार्क बॉन्ड यील्ड 0.12 पर्सेंट मजबूत होकर 7.59 पर्सेंट पर बंद हुआ।
मोतीलाल ओसवाल म्यूचुअल फंड के सीनियर फंड मैनेजर गौतम सिन्हा रॉय ने कहा कि पटेल के इस्तीफे से अनिश्चितता बढ़ गई है। आरबीआई और सरकार के रिश्ते कुछ महीनों से एनबीएफसी लिक्विडिटी क्राइसिस सहित कुछ अन्य मुद्दों को लेकर खराब चल चल रहे थे। हालांकि, 19 नवंबर को आरबीआई बोर्ड की मैराथन मीटिंग के बाद इसे लेकर आशंकाएं कम हुई थीं। इसमें रिजर्व बैंक ने बैंकों के कैपिटल एडिक्वेसी नॉर्म्स पर सरकार की बात मानते हुए कुछ छूट दी थी। सरप्लस रिजर्व के ट्रांसफर को लेकर भी उसका रुख नरम पड़ा था। वहीं, कमजोर सरकारी बैंकों के लिए कैपिटल नॉर्म्स में ढील देने पर विचार करने के लिए उसने एक समिति बनाने की बात कही थी। डीएसपी म्यूचुअल फंड के
इक्विटीज हेड विनीत सांबरे ने कहा, ‘सरकार और रिजर्व बैंक के बीच सुलह की खबरें आई थीं। अब उनके अचानक इस्तीफा देने से मार्केट में वोलैटिलिटी बढ़ेगी।’ उन्होंने कहा कि इस मामले से विदेशी निवेशकों के बीच देश की छवि बिगड़ेगी। फॉरन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स ने दिसंबर महीने में अब तक 4,600 करोड़ के शेयर खरीदे हैं। इससे पहले नवंबर में उन्होंने 6,000 करोड़ का निवेश किया था। विदेशी निवेशक खासतौर पर सरकारी खजाने की हालत बिगड़ने को लेकर चिंतित हैं। लंदन बेस्ड ऐशमोर ग्रुप के रिसर्च हेड जे डेन ने कहा, ‘भारत में वित्तीय अनुशासन की कमी है। ऐसे में रिजर्व बैंक की तरफ से अनुशासन की कोशिश सही थी। पटेल के जाने से आरबीआई के कमजोर पड़ने की आशंका बढ़ी है। हो सकता है कि सरकार आगे खर्च बढ़ाए, जो नेगेटिव होगा।’
सरकार के खर्च बढ़ाने से अगर राजकोषीय घाटा बढ़ता है तो उससे महंगाई दर बढ़ने की आशंका सिर उठाएगी। चालू खाता घाटा बढ़ेगा और जीडीपी ग्रोथ कम पड़ सकती है। डेन का कहना है कि इससे भारत पर विदेशी निवेशकों का भरोसा कमजोर होगा।