नई दिल्ली
भारत के पूर्व जजों और पूर्व नौकरशाहों ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी पर निशाना साधा है। 200 से ज्यादा सदस्यों वाले इस समूह ने कांग्रेस सांसद की तरफ से भारत निर्वाचन आयोग पर लगाए जा रहे आरोपों पर नाराजगी जाहिर की है। पत्र में कहा गया है कि राजनीतिक हताशा को छिपाने के लिए संस्थाओं को निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर काम करने के आरोप लगाए थे।
पत्र में कहा गया है, 'हम समाज के वरिष्ठ नागरिक हैं और इस बात पर चिंता जाहिर करते हैं कि भारत का लोकतंत्र पर हमला किया जा रहा है। ये हमला बल से नहीं, बल्कि इसकी संस्थाओं पर जहरीली बयानबाजी के जरिए किया जा रहा है। कुछ राजनेता कोई वास्तविक नीति विकल्प पेश किए बगैर अपनी नाटकीय राजनीतिक रणनीति में उकसावे और निराधार आरोपों का सहारा ले रहे हैं।' 272 लोगों ने इस पत्र पर दस्तखत किए हैं, जिनमें 16 रिटायर्ड जज, 123 पूर्व नौकरशाह, 133 रिटायर्ड सैन्य अधिकारी और 14 पूर्व राजदूत शामिल हैं। इस पत्र में कहा गया है, 'भारतीय सशस्त्र बलों के साहस और उपलब्धियों पर सवाल उठाकर छवि खराब करने, न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाने, संसद और इसके पदाधिकारियों पर सवाल उठाने के बाद अब प्रतिष्ठा और ईमानदारी पर षड्यंत्रकारी हमले झेलने की बारी भारत के निर्वाचन आयोग की है।'
पत्र में राहुल गांधी को लेकर कहा गया है कि उन्होंने लगातार चुनाव आयोग पर हमला किया है और कहा है कि उनके पास आयोग के वोट चोरी में शामिल होने के सबूत हैं। समूह ने लिखा, 'आरोपों के बाद भी उनकी तरफ से कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई गई है…।' इसमें कहा गया है, 'कांग्रेस और अन्य दलों के कई वरिष्ठ नेताओं ने, वामपंथी एनजीओ, ध्यान आकर्षित कराने वाले कुछ लोगों ने SIR के खिलाफ इस बयानबाजी में साथ दिया है।'
आगे लिखा है, 'यह तक घोषणा कर दी गई है कि आयोग बेशर्मी के साथ भाजपा की बी टीम के तौर पर काम क रहा है। ऐसी बयानबाजी भावनात्मक रूप से ताकतवर हो सकती है, लेकिन जांच में यह नहीं टिकेगी, क्योंकि चुनाव आयोग ने सार्वजनिक रूप से SIR का तरीका साझा किया है, इसकी निगरानी अदालत के बताए तरीकों से की गई है, अपात्र नामों हटाया गया है और नए पात्रों मतदाताओं को शामिल किया गया है। इससे पता चलता है कि ये आरोप संस्थागत संकट की आड़ में राजनीतिक हताशा छिपाने के लिए हैं।'
पत्र में कहा गया है कि कांग्रेस नेता जैसा बर्ताव कर रहे हैं, उसे बार-बार चुनावी असफलता और हताशा से पैदा हुआ गुस्सा कहा जा सकता है। इसमें कहा गया है, 'जब राजनेता आम नागरिकों की महत्वाकांक्षाओं से दूर हो जाते हैं, तो वो अपनी विश्वसनीयता दोबारा बनाने के बजाए संस्थाओं पर भड़ास निकालते हैं। विश्लेषण की जगह नौटंकी ले लेती है। जनसेवा की जगह तमाशा होने लगता है। विडंबना यह है कि जिन कुछ राज्यों में विपक्ष की अगुवाई वाले दल सरकार बना लेते हैं, वहां चुनाव आयोग की आलोचना खत्म हो जाती है। जब कुछ राज्यों में उनके पक्ष में नहीं आता, तो आयोग विलेन हो जाता है।'
Dainik Aam Sabha