नई दिल्ली
आईसीएमआर-नेशनल सेंटर फॉर डिसीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च (NCDIR) के एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत में हर नौ में से एक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में कैंसर (Cancer) होने का खतरा है। यह देश में रिपोर्ट किए जा रहे बीमारी के नए मामलों की संख्या के सांख्यिकीय विश्लेषण के साथ-साथ आबादी में जोखिम वाले व्यक्तियों की संख्या पर आधारित है।
67 पुरुषों में से एक को फेफड़ों के कैंसर का खतरा
अध्ययन के अनुसार (इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (IJMR) में प्रकाशित हुआ है) प्रत्येक 67 पुरुषों में से एक को फेफड़ों के कैंसर का खतरा होता है और 29 में से एक महिला को अपने जीवनकाल (0- 74 वर्ष) में स्तन कैंसर (breast cancer) का खतरा होता है।
2025 तक कैंसर के मामलों में 13 फीसदी की वृद्धि का अनुमान
यह अनुमान लगाया गया है कि 2022 में भारत में 14.6 लाख लोग कैंसर (Cancer) से प्रभावित थे। फेफड़े और स्तन कैंसर क्रमशः पुरुषों और महिलाओं में कैंसर के प्रमुख स्थान थे। अध्ययन से पता चलता है कि बचपन (0-14 वर्ष) के कैंसर में लिम्फोइड ल्यूकेमिया (लड़के- 29.2 फीसदी और लड़कियां- 24.2 फीसदी) सबसे अधिक थी। वहीं 2020 की तुलना में 2025 में कैंसर के मामलों में 12.8% की वृद्धि का अनुमान है।
शोधकर्ताओं (Researchers) का कहना है कि कैंसर के मामलों में वृद्धि जनसंख्या की गतिशीलता (population dynamics) और इसकी वृद्धि में बदलाव के कारण है। उनका मानना है कि भारत में वृद्धावस्था (60+) की आबादी में वृद्धि होने की उम्मीद है और विशेष रूप से उनका अनुपात 2011 में 8.6% से बढ़कर 2022 में 9.7% होने की उम्मीद है। बता दें कि सर्वाइकल कैंसर को रोकने के लिए हमारे देश में एचपीवी (ह्यूमन पेपिलोमावायरस) वैक्सीन को विकसित किया गया है, जो अगले साल अप्रैल-मई तक उपलब्ध हो जाएगी।
शोधकर्ताओं ने कहा, “अनुमानित कैंसर की घटनाओं में बदलाव होगा, जो जोखिम, मामले के निष्कर्षों में सुधार, स्क्रीनिंग कार्यक्रमों की शुरूआत और कैंसर का पता लगाने और निदान तकनीकों पर निर्भर करता है।” स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया (Health Minister Mansukh Mandaviya) ने मंगलवार को राज्यसभा (Rajya Sabha) को बताया कि देश में 2020 और 2022 के बीच अनुमानित कैंसर के मामले और इसके कारण मृत्यु दर में वृद्धि हुई है।
महिलाएं 5 साल पहले होती हैं फेफड़े के कैंसर का शिकार
सिगरेट व बीड़ी के धूम्रपान के कारण पुरुष भले ही फेफड़े के कैंसर से अधिक पीड़ित होते हैं लेकिन पुरुषों के मुकाबले महिलाएं पांच वर्ष कम उम्र में इस बीमारी से पीड़ित होती हैं। एम्स के कैंसर सेंटर और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान और अनुसंधान केंद्र (एनसीडीआइआर) द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है, जो हाल ही में लंग इंडिया जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
पैसिव स्मोकिंग, रसोई का धुआं, ग्रामीण और दूर दराज के क्षेत्रों में खाना बनाने में उपले, लकड़ी, कोयले जैसे बायोमास ईंधन के धुएं का दुष्प्रभाव को महिलाओं में फेफड़े के कैंसर का बड़ा कारण बताया गया है।
एम्स कैंसर सेंटर के डाक्टरों ने वर्ष 2012-19 के बीच देश भर के 96 अस्पतालों में फेफड़े के कैंसर से पीड़ित होकर इलाज के लिए पहुंचे 45,228 मरीजों पर यह अध्ययन किया है, जिसमें 34,395 पुरुष व 10,833 महिला मरीज शामिल थीं।
पुरुषों में फेफड़े के कैंसर का सबसे बड़ा कारण धुम्रपान
अध्ययन में पाया गया कि तीन चौथाई पुरुष मरीज 50-74 वर्ष की उम्र में व 69.4 प्रतिशत महिला मरीज 45-69 वर्ष की उम्र में फेफड़े के कैंसर से पीड़ित हुईं। जबकि पुरुषों के मुकाबले बहुत कम महिलाएं धूमपान करती हैं। राष्ट्रीय गैर संचारी रोग निगरानी सर्वे के अनुसार देश में 23 प्रतिशत पुरुष धूमपान करते हैं। बीड़ी के सेवन से कैंसर होने का जोखिम 2.64 गुना और सिगरेट से 2.23 गुना बढ़ जाता है। इससे धूमपान पुरुषों में फेफड़े के कैंसर का सबसे बड़ा कारण है। औसतन 21 वर्ष की उम्र में वे धूमपान शुरू कर देते हैं। यह आदत वर्षों बाद कई लोगों में यह कैंसर कारण बनता है।
देश में सिर्फ 1.3 प्रतिशत महिलाएं धूपमान करती हैं लेकिन पति या परिवार के पुरुष सदस्यों द्वारा धूपमान करने के कारण 37.5 प्रतिशत महिलाएं पैसिव स्मोकिंग की शिकार हैं। पैसिव स्मोकिंग का अर्थ धूमपान करने वालों के नजदीक खड़े लोगों के फेफड़े में सांस के जरिये धुआं पहुंचना।
इस अध्ययन में कहा गया है कि कई शोधों में रसोई के धुएं से महिलाओं के कैंसर होने के जोखिम की बात सामने आ चुकी है। वहीं बायोमास ईंधन के दहन से 1,3-ब्यूटाडीन, साइक्लोपेंटेन, पायरीन व एन्थ्रासीन जैसे कैंसर कारक रसायन निकलते हैं। बहरहाल, उज्ज्वला योजना के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में खाना बनाने में बायोमास ईंधन का इस्तेमाल बहुत कम हो गया है।
बहुत कम मरीजों की हो पाती है सर्जरी
अध्ययन में पाया गया कि इलाज में देरी एक बड़ी समस्या है। दूसरे अस्पतालों में जांच कराने वाले एक तिहाई मरीज जांच के सात से 30 दिन बाद कैंसर अस्पतालों में पहुंचे। 50.7 प्रतिशत मरीजों की बीमारी शरीर एडवांस स्टेज में पहुंच चुकी थी। शुरुआती स्टेज के भी बहुत कम मरीजों की सर्जरी हो पाती है। शुरुआती स्टेज के 5.9 प्रतिशत पुरुष और 8.4 प्रतिशत महिला मरीजों की सिर्फ सर्जरी हुई।
वहीं 4.2 प्रतिशत पुरुष व 4.7 प्रतिशत महिला मरीजों की सर्जरी, कीमो व रेडियोथेरेपी तीनों हुई थी। जिन मरीजों में ट्यूमर फेफड़े के आसपास फैला हुआ था उनमें से सिर्फ 2.22 प्रतिशत पुरुष व 2.52 प्रतिशत महिला मरीजों की ही सर्जरी, कीमा व रेडियोथेरेपी तीनों हुई।
स्वास्थ्य मंत्रालय राज्यों को देता है Financial Support
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग (Department of health and family welfare) राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक (NPCDCS) की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
Dainik Aam Sabha