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नक्सली अटैक : नक्सली तांडव फिर 11 जवानों की हत्या, आखिर कब तक?

विगत दिनों नक्सलियों द्वारा पुलिस वालों की व्यूह रचना तोड़ते हुए नक्सलियों ने एंबुश लगाकर 11जवानों की दंतेवाड़ा जिले में दर्दनाक हत्या कर दी, लगभग और जवान घायल भी हुए हैं, नक्सलियों का दो साल बाद का सबसे बड़ा हमला है। इसके पूर्व 2 वर्ष पहले एक विधायक की हत्या कर दी गई थी। सूत्रों के अनुसार खुफिया तंत्र की असफलता तथा नक्सलियों तक पुलिस की हर गतिविधि की जानकारी पहुंचने के कारण नक्सलियों ने तांडव मचाया है। केंद्रीय गृहमंत्री तथा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री दोनों ने दुख व्यक्त कर पुलिस बल का मनोबल भी बढ़ाया और यह भी कहा कि यह शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी।नक्सलियों ने लगभग दो साल बाद छत्तीसगढ़ के जंगलों में अपनी उपस्थिति फिर से दर्शाइ है। छत्तीसगढ़ में बलरामपुर, जसपुर, बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, कोंटा, नारायणपुर आदि धुर नक्सली क्षेत्र माने जाते हैं और नक्सली अपनी गतिविधि यहां लगातार दर्शाते रहते हैं। लेकिन यह 11 जवानों की हत्या बड़ी ही दर्दनाक हुई और अचानक नक्सलियों द्वारा आक्रमण की रणनीति के कारण अभी तक प्रशासन शासन को समझ नहीं आया है । क्षेत्र की जनता और सरकार दोनों अब हाई अलर्ट पर हैं। खुफिया विभाग अपने असफलता के कारणों की खोज में लगी हुई ईतना बारूद सड़कों में लगाया गया और पुलिस के खुफिया तंत्र को कानो कान खबर नहीं हुई। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्, मध्य प्रदेश, बिहार के जंगलों में नक्सलवादियों ने अपना केंद्र बना कर रखा है, और गाहे-बगाहे पुलिस से मुठभेड़ में पुलिस वालों की अनावश्यक हत्या करते रहते हैं।
विगत दिनों नक्सली नेताओं ने छत्तीसगढ़ सरकार से बातचीत करने का प्रस्ताव रखा था। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ की पुलिस के केंद्रीय बल के सैनिकों पर इतना बड़ा हमला कर दिया । छत्तीसगढ़, झारखंड ,आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र की सरकार को नक्सली समस्या का स्थाई हल खोजना ही होगा अन्यथा इस तरह की नक्सली मुठभेड़ में जवानों की जिंदगी व्यर्थ ही गवानी पड़ जाएगी। नक्सली समस्या मूलत पश्चिम बंगाल की देन है,जहां चारू मजूमदार,कानू सान्याल के नेतृत्व में नक्शलवाड़ी नामक ग्राम में दल का गठन किया गया था। जहां सरकार के विरोध में आदिवासियों के शोषण और सरकारी अधिकारियों तथा कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के विरोध में चारू मजूमदार ने एक अभियान चलाया था। कालांतर में जो नक्सलवादी गतिविधि या वामपंथी गतिविधि के नाम से जानी जाती है।कई वर्षों पहले पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे सिद्धार्थ शंकर रे ने प्रशासनिक कुशलता दिखाते हुए कठोर कदम उठाकर नक्सलवाड़ी को समूल नष्ट करवा दिया था। इसी तरह पंजाब में खालीस्तान समस्या सिर चढ़कर बोलने लगी थी। जिससे पंजाब की जनता अनावश्यक परेशान थी, और खालीस्तान के समर्थक वहां हिंसक गतिविधियों में लिप्त हो कर सरकार को सरकार चलाने में दिक्कत देने लगे थे। ऐसे में पंजाब पुलिस के डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस के,पी,एस गिल ने एक कठोर ऑपरेशन चलाकर खालीस्तान समस्या को नेस्तनाबूद कर दिया था। नक्सली तथा वामपंथी समस्याओं से प्रभावित झारखंड,छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र के पुलिस अधिकारियों को नक्सलियों के विरोध में इसी तरह संयुक्त अभियान चलाकर नक्सली समस्या को कठोरता से खत्म करना चाहिए। या फिर शासन प्रशासन को नक्सली समस्या पैदा होने के मूल कारणों में जाकर वहां की आदिवासी जनता को राशन,दवाएं पानी, शिक्षाऔर सड़क की समस्या को समझ कर उस क्षेत्र को सामाजिक अभियान चलाकर नक्सली मुक्त कराना चाहिए ।क्योंकि नक्सलवादी वामपंथी लोग पुलिस दल से ज्यादा आधुनिक अस्त्र शस्त्र तथा विस्फोटक सामग्री इस्तेमाल कर पुलिस वालों को लगातार मौत के घाट उतार कर शासन का अपनी तरफ ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। अब तक नक्सलवादियों ने हजारों पुलिसकर्मियों की हत्या की है।यह विद्रोही,माओवादी आदिवासियों को राशन पानी स्वास्थ्य शिक्षा सड़क की सुविधाएं न दिए जाने की आड़ में उनसे सहयोग लेकर पुलिस वालों की निरंतर हत्या कर रहे हैं। जिसे तत्काल एक अभियान बनाकर तो रोका जाना चाहिए, इन राज्यों में दूरगामी योजना बनाकर सिद्धार्थ शंकर रे जैसे प्रशासक तथा केपीएस गिल के अधिकारियों की आवश्यकता फिर से होगी।इसके अलावा नक्सलियों को खत्म करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति तथा सशक्त दूरगामी रणनीति तैयार कर इन को घेरकर खत्म किया जाना चाहिए। अन्यथा ऐसे ही मुठभेड़ों में निरीह जवानों की हत्या होती रहेगी और हम हाथ में हाथ धरे बैठे रहेंगे।

*-संजीव ठाकुर*
स्तंभकार, चिंतक, लेखक,रायपुर छत्तीसगढ़,
मो-9009 415 415,

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