नई दिल्ली
यौन उत्पीड़न के संगीन आरोपों की वजह से विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ सकता है। अकबर अभी विदेश दौरे पर हैं और उनके रविवार तक स्वदेश लौटने का कार्यक्रम है। कांग्रेस और वामदल उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।
गुरुवार को केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने अकबर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा रही महिलाओं के लिए न्याय की मांग कर दी। जाहिर है कि जिस तरह अकबर पर एक के बाद एक कई महिलाओं ने आरोप लगाए हैं, उससे भाजपा भी असहज है। ऐसे में उनका बचना मुश्किल है। माना जा रहा है कि उन्हें जल्द ही मंत्री पद छोड़ना पड़ेगा।
मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान ईरानी से जब अकबर के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था कि जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया गया है, वही इसका सही जवाब दे सकता है। लेकिन, जो महिलाएं आवाज उठा रही हैं, उनका समर्थन किया जाना चाहिए। उन महिलाओं की आवाज को बंद नहीं किया जाना चाहिए। उनका मजाक नहीं उड़ाया जाना चाहिए। इससे पहले केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी भी इन आरोपों की जांच की इच्छा जता चुकी हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कोलकाता कहा था कि अकबर के बारे में फैसला सरकार को करना है।
दूसरी तरफ अब राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया आने लगी है। कांग्रेस के जयपाल रेड्डी ने कहा कि अकबर को या तो स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए या फिर इस्तीफा देना चाहिए। माकपा ने भी बयान जारी कर इस्तीफे की मांग कर दी है। एमजे अकबर पर अभी तक उनके सात पुरानी सहयोगी महिला पत्रकारों ने यौन शोषण के आरोप लगाये हैं। ये सारे आरोप सोशल मीडिया साइट फेसबुक या ट्विटर पर लगाए गए हैं।
संगठन और सरकार दोनों असहज
अकबर पर यौन उत्पीड़न के जितने भी आरोप लगे हैं, वह मंत्री बनने से पूर्व संपादक होने के दौरान के हैं। लेकिन ऐसे व्यक्ति के मंत्री बने रहने को लेकर सरकार और संगठन दोनों के अंदर असहजता है। भाजपा महिला मोर्चा सरकार की ओर से उठाए गए कदमों के प्रचार प्रसार के लिए मैराथन दौड़ करने वाली है। ऐसे में अकबर के मंत्री बने रहने का अर्थ होगा सरकार द्वारा महिलाओं के लिए किए काम पर पानी फेरना।
जनता को संदेश देने की कोशिश
एक विचार यह है कि पहले उन्हें सफाई का मौका दिया जाए और उसके बाद उनसे इस्तीफा लिया जाए। जबकि सरकार से जुड़े कुछ लोग यह मान रहे हैं कि उनसे अब बगैर किसी देरी के इस्तीफा ले लेना चाहिए। जांच-पड़ताल बाद में होनी चाहिए। इससे जनता को सही संदेश जाएगा। खास तौर पर तब जब देश के पांच राज्यों में चुनाव का बिगुल बज चुका है।