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मध्य प्रदेश बार एसोसिएशन ने पराली जलाने के आरोप में पकड़े गए किसानों का केस नहीं लड़ने का फैसला लिया

जबलपुर
मध्य प्रदेश में पराली जलाने (Stubble Burning) के आंकड़े चिंताजनक हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार देश में 15 सितंबर से 18 नवंबर 2024 के बीच लगभग 27 हजार 319 मामले पराली जलाने के सामने आए हैं. इसमें बताया गया है कि सबसे ज्यादा पराली के मामले मध्य प्रदेश के श्योपुर में रिकॉर्ड किए गए हैं. MP में 15 सितंबर से 14 नवंबर 2024 के बीच पराली जलाने की जो घटनाएं सामने आईं, उनमें सर्वाधिक 489 श्योपुर में दर्ज की गईं. जबलपुर में 275 घटनाएं हुईं तो ग्वालियर, नर्मदापुरम्, सतना, दतिया जैसे जिलों में लगभग 150-150 घटनाएं दर्ज की गईं. यह आंकड़ें पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान प्रदेशों से भी अधिक हैं. वहीं अब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन (MP High Court Bar Association) ने पराली जलाने के मामलों में कड़ा रुख अपनाते हुए यह निर्णय लिया है कि इस आरोप में फंसे किसानों की ओर से अधिवक्ता पैरवी नहीं करेंगे. यह निर्णय एसोसिएशन की कार्यकारिणी सभा की बैठक में लिया गया.

वकीलों का क्या कहना है?

एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता डीके जैन ने बताया कि बैठक में पराली जलाने के कारण होने वाले गंभीर पर्यावरणीय खतरों और जनजीवन पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा की गई. पराली जलाने से खेतों की उर्वरता प्रभावित होती है, जीव-जंतुओं की मौत होती है, वायुमंडल जहरीला बनता है और लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.
इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर हुआ विमर्श

    पराली जलाने से खेतों की उर्वरक क्षमता घटती है, जिससे अधिक रासायनिक खाद का उपयोग करना पड़ता है.
    देश भर में पराली जलाने से वायु प्रदूषण गंभीर समस्या बन गया है, खासकर हरियाणा, पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों में.
    मध्य प्रदेश में पलारी (फसल अवशेष) जलाने पर पर्यावरण संरक्षण कानूनों के तहत कार्रवाई की जाती है. इस पर विभिन्न कानूनों के तहत अपराध दर्ज किया जा सकता है, जैसे वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 जिसके तहत पलारी जलाना वायु प्रदूषण फैलाने का अपराध माना जाता है. इसमें दोषी पाए जाने पर जुर्माना या कारावास हो सकता है.

ये अधिनियम भी हैं

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 : इस अधिनियम के तहत पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कार्यों पर रोक लगाई गई है. धारा 15 के तहत दोषी पाए जाने पर 5 साल तक की जेल या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं.

भारतीय दंड संहिता (IPC) : धारा 188 (सरकारी आदेश की अवहेलना) अगर प्रशासन ने फसल जलाने पर प्रतिबंध लगाया हो और फिर भी कोई इसका उल्लंघन करे, तो यह अपराध दर्ज हो सकता है. धारा 269/270: जीवन के लिए खतरनाक लापरवाही या जानबूझकर बीमारी फैलाने का प्रयास.

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के निर्देश : NGT ने पराली जलाने पर कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं.

जिला प्रशासन और संबंधित विभाग दोषियों पर जुर्माना लगाते हैं. जुर्माने की राशि भूमि क्षेत्र के हिसाब से तय होती है. जैसे  2 एकड़ तक: ₹2,500 वहीं 2-5 एकड़ पर ₹5,000 जबकि 5 एकड़ से अधिक पर ₹15,000 जुर्माना हो सकता है.

स्थानीय प्रशासनिक नियम : जिला कलेक्टर और प्रशासनिक अधिकारी संबंधित क्षेत्र में विशेष आदेश जारी कर सकते हैं. किसानों को अवगत कराने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाए जाते हैं.
समाधान और प्रोत्साहन

पराली प्रबंधन मशीनरी की व्यवस्था के लिए किसानों को अनुदान मिलता है. वहीं जागरूकता अभियान के जरिए वैकल्पिक विधियों (जैसे मल्चिंग, खाद बनाना) को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है. यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है, तो उस पर संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की जाती है.
एसोसिएशन ने बताया क्या है समस्या का प्रमुख कारण?

एसोसिएशन ने निर्णय लिया है कि देशहित में पराली जलाने पर प्रतिबंध का समर्थन करते हुए इससे जुड़े अपराधियों की पैरवी नहीं की जाएगी. साथ ही, जागरूकता की कमी और प्रशासनिक उदासीनता को भी इस समस्या का प्रमुख कारण बताया गया. यह कदम पर्यावरण संरक्षण और जनस्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है. एसोसिएशन ने सरकार और न्यायालय द्वारा पराली जलाने पर जारी निर्देशों के पालन का आह्वान भी किया.

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