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साल के अंत तक गांधीसागर अभयारण्य में आ सकते हैं चीते, तैयारी हुई तेज

मंदसौर
 अब सबकुछ ठीक रहा तो साल के अंत में गांधीसागर अभयारण्य में चीते आ जाएंगे। इसके साथ ही देश में कूनो के बाद गांधीसागर अभयारण्य चीतों के दूसरे घर के रूप में पहचाना जाएगा। यहां बड़े घास के मैदान, पानी, कंदराएं सभी कुछ चीतों के लिए मुफीद हैं।

अभयारण्य भी उनके स्वागत के लिए तैयार है। अभी चीतों के लिए हिरण, चीतल को यहां लाने का काम भी फिर से शुरू हो गया है। 1250 हिरण-चीतल लाने हैं और अभी तक 434 ही पहुंचे हैं।अभयारण्य में 6400 हेक्टेयर में चीतों के लिए बड़े बाड़े बनकर तैयार हैं। इनमें आठ क्वारंटाइन बाड़े भी हैं, जहां शुरुआत में आठ चीतों को क्वारंटाइन बाड़ों में रखा जाएगा।

चीतों के भोजन को लेकर भी हुई चर्चा

केंद्र सरकार की तरफ से जो संकेत मिले हैं, उसके अनुसार साल के आखिर तक चीते गांधीसागर में आ सकते हैं। ये अफ्रीका से लाए जाएंगे या केन्या से यह अभी तय नहीं है। दक्षिण अफ्रीका व फिर केन्या से आए दल ने गांधीसागर अभयारण्य में चीतों को बसाने के लिए की गई सभी तैयारी का निरीक्षण किया है।

गांधीसागर अभयारण्‍य में हिंगलाजगढ़ किले के आस-पास घना जंगल वन्‍य प्राण‍ियों के लिए काफी अच्‍छा है।

विशेषज्ञों ने बाड़े, क्वारंटाइन बाड़ों, हाईमास्ट कैमरा, जलस्रोत मॉनिटरिंग के लिए बनाए गए स्थल और उपचार केंद्र सहित सभी तैयारी देखी है। चीतों के भोजन को लेकर भी उनकी चर्चा हो चुकी है।

बड़े जानवरों का शिकार नहीं कर सकता चीता

चीता बड़े जंगली जानवरों का शिकार नहीं कर सकता हैं। इसके लिए हिरण, खरगोश, जंगली श्वान जैसे छोटे जानवर ही उपयुक्त रहते हैं। चीते के भोजन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए गांधी सागर अभयारण्य क्षेत्र में 1250 चीतल और हिरणों को बीते वर्ष ही छोड़ा जाना था लेकिन अभी तक करीब 434 ही छोड़े गए हैं।

शाजापुर जिले के साथ ही भोपाल के वन विहार, नरसिंहगढ़ सेंचुरी और कान्हा टाइगर सफारी आदि स्थानों से हिरण व चीतल को पकड़कर यहां छोड़ने के लिए अफ्रीकी वाइल्ड लाइफ एंड साल्यूशन कंपनी को अनुबंधित किया गया है।

केन्या से आए दल ने देखी व्यवस्था

    गांधीसागर अभयारण्य में चीतों को लाने की तैयारी हमारी तरफ से पूरी हो गई है। अफ्रीका, केन्या से आए दल ने भी सारी व्यवस्था देख कर संतुष्टि जताई है। अब सरकार की हरी झंडी का इंतजार है। साल के अंत में आते हैं या बाद में यह हम भी आदेश का ही इंतजार कर रहे हैं। – संजय रायखेरे, डीएफओ, मंदसौर