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पत्रकार रामचंद्र के बेटे अंशुल बोले : गुरमीत राम रहीम को कोर्ट के फ़ैसले से लगा झटका

पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या 2002 में हुई थी. रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने इस मामले में न्याय पाने के लिए क़रीब 16 साल इंतज़ार किया है.

कोर्ट के फ़ैसले के बाद अंशुल छत्रपति ने बीबीसी से कहा, ”मैं माननीय अदालत और जज जगदीप सिंह का धन्यवाद करना चाहूंगा कि आज इतने सालों के इंतज़ार के बाद मेरे पिता की हत्या के मामले में फ़ैसला सुनाया है. ये एक लंबी लड़ाई थी जिसमें हम लगातार कह रहे थे कि गुरमीत सिंह मेरे पिता की हत्या का मुख्य साजिशकर्ता है. पुलिस ने अपनी जांच में उसका नाम दबा दिया और केस में भी नाम दर्ज़ नहीं किया गया. सीबीआई हमारी उम्मीद पर खरी उतरी. सीबीआई के उन अधिकारियों को सलाम. मैं सीबीआई की टीम को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने इस केस को इतना आगे पहुंचाया.”

पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने अपने अख़बार ‘पूरा सच’ में वो गुमनाम चिट्ठी छापी थी जिसमें गुरमीत राम रहीम पर एक महिला ने रेप का आरोप लगाया था. इसके बाद रामचंद्र छत्रपति पर साल 2002 में हमला हुआ. अस्पताल में ज़िंदगी के लिए संघर्ष करने के बाद उनकी मौत हो गई.

अंशुल छत्रपति ने शुक्रवार के घटनाक्रम पर कहा, ”डेरा प्रमुख वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई में मौजूद था, जैसे ही फ़ैसला आया ये उसके लिए झटके जैसा था और मेरे लिए खुशी का पल. मैं फ़ैसला सुनकर भावुक हो गया. मैं कोर्ट को धन्यवाद देता हूं.”

पत्रकार रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल ने उस दिन की कहानी भी साझा की, जब उनके पिता की हत्या की गई थी. महीना था अक्तूबर का और साल था 2002.

उन्होंने बताया, “उस दिन करवाचौथ का दिन था. मेरी मां को अचानक अपने मायके जाना पड़ा था. वहां किसी की मौत हो गई थी.”

“मेरे पिता रामचंद्र छत्रपति अक्सर अख़बार का काम करने के बाद घर लेट आते थे. मेरी मां के घर से जाने के कारण उस दिन मेरी छोटी बहन और भाई ने मुझे घर जल्दी आने के लिए कहा. इसलिए मैं घर पर था. मेरे पिता भी उस दिन करवाचौथ का दिन होने के कारण जल्दी घर आ गए थे.”

अंशुल ने बताया, “मेरे पिता मोटर साइकिल आंगन में खड़ा करके अंदर आए ही थे कि किसी ने आवाज़ देकर उन्हें बाहर आने को कहा. जैसे ही वो बाहर गए, अचनाक स्कूटर पर आए दो नौजवानों में से एक ने दूसरे को कहा, ‘मार गोली’. और उसने मेरे पिता पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दीं.”

“हम तीनों बहन भाई जितनी देर में यह समझ पाते कि हुआ क्या है, वो नौजवान भाग चुके थे. “

क्या है पूरा मामला?

सिरसा के स्थानीय पत्रकार प्रभु दयाल के मुताबिक, ‘साल 2000 में सिरसा में रामचंद्र छत्रपति ने वक़ालत छोड़कर “पूरा सच” के नाम से अख़बार शुरू किया था.’

प्रभु दयाल आगे बताते हैं, ‘2002 में उन्हें एक गुमनाम चिट्ठी हाथ लगी जिसमें डेरे में साध्वियों के यौन शोषण की बात थी. उन्होंने उस चिट्ठी को छाप दिया जिसके बाद उनको जान से मारने की धमकियां दी गईं.’

’19 अक्तूबर की रात हमलावरों ने छत्रपति को उनके घर के आगे गोली मार दी. इसके बाद 21 अक्टूबर को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में उनकी मौत हो गई.’

प्रभु दयाल बताते हैं कि अस्पताल में इलाज के दौरान वो होश में आए लेकिन राजनीतिक दबाव कारण छत्रपति का बयान तक दर्ज नहीं किया गया.

बाद में रामचंद्र छत्रपति के बेटे अंशुल छत्रपति ने कोर्ट में याचिका दायर कर सीबीआई जांच की मांग की.

साल 2003 में इस संबंध में मामला दर्ज़ किया गया था. इस मामले को 2006 में सीबीआई को सौंप दिया गया था.

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