आम सभा, भोपाल : सत्य, अहिंसा और विष्वास ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है, हिंसा चाहे कितनी भी शक्तिषाली क्यों न हो, अहिंसा से हर बार उसे हारना ही पड़ता है। गांधी ने सत्य और अहिंसा का जो नारा दिया था, उस पर विष्वास करना आवष्यक है।
समाज पर कटाक्ष करता नाटक ‘‘गांधी ने कहा था’’ का मंचन मंगलवार को जवाहर बाल भवन में किया गया। नाटक की पृष्ठभूमि भारत के बंटवारे के समय की है। उन दिनांे उन्माद चरम पर था। दंगे हो रहे थे हिन्दु और मुसलमान दोनों ओर के लोग मारे जा रहे थे। इसी बीच का एक पात्र तारकेष्वर का बेटा भी दंगों में मारा जाता है। वह गांधी जी का समर्थक है और उन्हीं के कहने पर एक मुस्लिम बच्चे को अपने घर ले आता है। हिन्दु नेताओं के विरोध का सामना करता है, यहाँ तक कि अपनी पत्नी का विरोध भी सहता है। अंततः तारकेष्वर का विष्वास तब जीत जाता है, जब उसकी पत्नी सुमित्रा की ममता जाग उठती है। विष्वास, ममता राजनीति, नफरत, सिद्धांतो के ताने-बारे से बुना नाटक है गांधी ने कहा था।
गांधी जी ने दंगों में मारे गए एक हिन्दु बच्चे सूरज के पिता तारकेष्वर पांडे से कहा था, ऐसे बच्चे को पालो जिसके माँ बाप दंगे में मारे गए हों, लेकिन वह मुस्लमान की औलाद हो। एक ओर वह पिता था तो दूसरी ओर वह गांधीजी का अनुयायी था। उसने नफरत और बदले की भावना के स्थान पर सिद्धांतों पर विष्वास जताया। नन्हा सूरज असमय विदा हुआ और नया आफताब उसके घर आ गया। देष के बंटवारे से उपजे साम्प्रदायिक उन्माद मंे गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता को लेकर श्री राजेष कुमार द्वारा नाटक लिखा गया।
राजेष कुमार द्वारा लिखित इस नाटक का मंचन जवाहर बाल भवन के बाल कलाकारों द्वारा श्री के.जी. त्रिवेदी के निर्देषन में किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री प्रभात राज तिवारी निदेषक महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान, डॉ. उमाषंकर नगायच संचालक जवाहर बाल भवन एवं वरिष्ठ संगीत निदेषक श्री आमोद भट्ट उपस्थित रहे।