भोपाल। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे संजय गांधी के सखा कमलनाथ कार्यशैली के बारे में समय-समय पर सवाल उठते रहते हैं उनकी कार्यशैली का नमूना मध्यप्रदेश की जनता ही नहीं बल्कि कांग्रेस के नेतृत्व ने उनके 15 महीनों के शासनकाल के दौरान देखने को मिली जिसमें वह हमेशा गरीबों, पीडि़तों और आदिवासियों के शुभचिंतक होने का दावा करते हैं मगर व्यवहारिक रूप से वह कितने सक्रिय हैं इसका एक उदाहरण उनके ही जिले छिंदवाड़ा जिसमें वह 40 सालों से अधिक समय से राजनीति कर रहे हैं और उस जिले को मॉडल बनाकर पिछले विधानसभा चुनाव में इसका बड़ा ढिंढोरा पीटा था लेकिन उन्होंने इस जिले का कितना भला किया इसका एक नमूना आदिवासियों के वन अधिकार कानून एवं दस अगस्त 2020 को भारत सरकार के निर्णय पर क्रियान्वयन की शैली को लेकर उनपर कई सवाल उठ रहे हैं।
केंद्रीय वन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर एवं अर्जुन मुंडा जनजातीय मंत्री के द्वारा दस अगस्त 2020 को एक बैठक ली गई जिसमें वन अधिकार कानून 2006 से संबंधित कई निर्णय लिये लेकिन उन निर्णयों से संबंधित कानूनों पर कमलनाथ ने अपने शासनकाल के दौरान छिंदवाड़ा में कितना क्रियान्वयन किया इसको लेकर सवाल उठ ही रहे हैं तो वहीं आदिवासी समुदाय में कमलनाथ के प्रति रोष व्याप्त है और यह रोष कभी भी आक्रोश बन सकता है। मजे की बात तो यह है कि इस संबंध में बुनियाद संस्था के अनिल अग्रवाल ने उनको 21 जनवरी 2021 को एक पत्र लिखकर उन्हें स्मरण कराया है कि जनवरी 2008 से लागू वन अधिकार कानून के संबंध में आपने अपने छिंदवाड़ा क्षेत्र में क्या किया यह बताया और साथ ही वन अधिकार कानून 2006 की असफलता का आरोप भी अनिल गर्ग द्वारा लगाया गया है।
अनिल गर्ग द्वारा कमलनाथ जिनके बारे में अब लोगों की आम राय है कि कमलनाथ केवल शोपीस नेता है तभी तो उनके 15 महीने के कार्यकाल में जिस छिंदवाड़ा को वह मॉडल जिला बनाकर ढिंढोरा पीट रहे थे उसी छिंदवाड़ा के विकास के लिये अपने शासनकाल में करोड़ों रुपये अनेकों योजनाओं पर खर्च किये जबकि मध्यप्रदेश में कोई भी विकास कार्य नहीं किया गया मजे की बात तो यह है कि अब सत्ता से बेदखल होने के बाद कमलनाथ अपने आपको कभी किसानों का हमदर्द तो कभी जिस मीडिया से अपने शासनकाल के दौरान दूरी बनाई रखी थी आज उसी मीडिया के हमदर्द होने का भी ढिंढोरा पीट रहे हैं, मजे की बात तो यह है कि जिस छिंदवाड़ा में वह 40 सालों से राजनीति कर रहे हैं उसी छिंदवाड़ा में उनकी कार्यशैली के चलते वन अधिकार कानून की कितनी असफलताओं के मामले रहे हैं बुनियाद संस्था के अनिल गर्ग ने अपने 21 जनवरी 2021 के पत्र में लिखा कि वन अधिकार कानून असफलता का अरोप लगाते हुए अनिल गर्ग ने 28 बिन्दुओं का एक आरोप पत्र भी प्रेषित किया है जिसमें कमलनाथ के निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में अदालत से आदेशित गैर वन भूमि को वन भूमि माना जाकर दावे अमान्य करना, दूसरा आरोप लगाते हुए अनिल गर्ग ने अपने पत्र में लिखा कि राजपत्र में डीनोटिफाइट भूमियों को वन भूमि माना जाकर दावे अमान्य करना, तीसरे आरोप पत्र में वन ग्राम और असर्वेक्षित बस्तियों के दावे को अमान्य करना, चौथा आरोप गैर आदिवासियों से तीन पीढ़ी का कब्जा प्रमाण मानकर दावे अमान्य करना।
अनिल गर्ग ने अपने पत्र में ऐसे 18 बिन्दुओं का आरोप पत्र में उल्लेख करते हुए कमलनाथ की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि आपकी सरकार और सरकार का वन विभाग एवं आदिवासी विकास ने अपनी प्राथमिकता सूची में वन अधिकार कानून 2006 की असफलताओं को शामिल ही नहीं किया बल्कि दोनों ही विभाग कानून को अधिक असफल बनाने की कार्यवाही करते रहे। इन सब मुद्दों को लेकर आगामी दिनों में कमलनाथ के निर्वाचन क्षेत्र छिंदवाड़ा में आदिवासियों के बीच जनजागरण आंदोलन चलाकर उन्हें यह बताया जायेगा कि 40 वर्ष तक छिंदवाड़ा से राजनीति करने वाले अपने निर्वाचन क्षेत्र की जनता को गुमराह कर अपने राजनीति की स्वार्थपूर्ति की इसका जीता जागता उदाहरण उनके 15 महीनों के शासनकाल का भी है जिसमें उन्होंने प्रदेश के हर वर्ग को गुमराह करने का काम किया और इसी तरह का कार्य वह वर्षों से छिंदवाड़ा की जनता के साथ कर रहे हैं।