– दुर्लभ प्रजातियों के जीव-जंतुओं को चुन-चुन कर किया जा रहा है नष्ट
– सौंद्रर्य प्रसाधन एवं कामोत्तेजक दवाओं में किया जाता है इनका इस्तेमाल
मुकेश तिवारी
सौंदर्य सामग्री या प्रसाधन सामग्री के विकास और उत्पादन के लिए अनेक मासूम प्राणियों की बेरहमी से जान ले ली जाती है। तमाम सारे कामोत्तेजक परफ्यूम के निर्माण में कुछ प्राणियों की यौनग्रंथियों का स्त्राव इस्तेमाल किया जाता है। बिज्जू के नाम चिरपरिचित प्राणी की यौनग्रंथि का स्त्राव प्राप्त करने के लिए पहले इस प्राणी को बड़ी बेरहमी से पीटा जाता है। जिससे वह क्रोधित होकर ज्यादा से ज्यादा स्त्राव पैदा करे। फिर इस स्त्राव को किसी तेज धार वाले चाकू से खरोंच लिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान बिज्जू को कठोर यातना सहने के साथ-साथ कभी-कभी अपने प्राणों की कुर्बानी तक देनी पड़ती है।
काबिलेगौर है कि इस तरह हर साल काफी बड़ी संख्या में बिज्जू सिर्फ कामोत्तेजक परफ्यूम बनाने के लिए मार दिए जाते हैं। बिज्जू जैसी ही दर्दनाक कहानी बिल्ली के परिवार के सिवेट नामक प्राणी की भी है। इस प्राणी से कस्तूरी जैसी सुंगधित ग्रंथि निकाली जाती है। यह ग्रंथि इसके पेट में मौजूद होती है। इसलिए इसका पेट काटकर ग्रंथि को निकाला जाता है। गं्रथि निकालने से पहले एक पखबाड़े तक सिवेज को लकड़ी कौंच-कौंच कर उत्त्ेजित किया जाता है, ताकि उसकी ग्रंथि में अधिक से अधिक सुगंध बन सके।
प्रकृति का इंजीनियर कहलाने वाले बीवर नामक प्राणी के शरीर से प्राप्त होने वाले तेल सौंद्रर्य प्रसाधन बनाने के काम आता है। इसकी रोहेदार खाल से चमड़े के स्टाइलिश कोट बनाए जाते हैं। गौरतलब है कि एक स्टाइलिश कोट के निर्माण के लिए चार दर्जन से अधिक बीवरों की जान ले ली जाती है। बीवर के तेल से दवाओं का निर्माण किया जाता है। इसे मादक द्रव्य की तरह भी उपयोग में लिया जाता है। कस्तूरी मृग की नाभि में छिपी अत्यंत सुगंधित कस्तूरी से तो सभी चिरपरिचित हैं। इसे निकालने के लिए मृग की नाभि काट दी जाती है। इस प्रक्रिया में भी कभी-कभी मृग की मौत हो जाती है। कराकुल नस्ल की भेड़ों की खाल बेहर कोमल व महीन रोहेदार बाल होते हैं।
इस वजह से यह काफी ऊंचे दामों पर बिचती है। प्रौढ़ भेंडों़ के अलावा इनके मेमनों यहां तक कि कोख में पनप रहे भ्रूण की भी खाल उतारी जाती है। भ्रूण प्राप्त करने के लिए गर्भित भेंड़ों को कठोर यातनाएं तक दी जाती हैं। जिससे उसे गर्भपात हो जाए। भ्रूणों की खाल बाजार में बेहद ऊंचे दामों पर बिकती है। इसी तरह सील मछली की खाल की भी बाजार में खासी मांग रहती है। सील के नवजात बच्चों की खाल से बना कोट काफी ऊंचे दामों पर बिकता है। सील के नवजात बच्चों की खाल प्राप्त करने के लिए उन्हें बड़ी ही बेरहमी से मार दिया जाता है। लोहे की नोंकदार सलाई तक सिर में घौंप दी जाती है। जिससे खाल खराब न हो। एक कोट बनाने के लिए तकरीबन नौ से 10 सील शिशुओं की जान ले जाती है। कछुओं के अंगों से प्राप्त चर्बी से तेल बनाया जाता है।
जिसका उपयोग सौंद्रर्य प्रसाधन सामग्री के निर्माण में होता है। वहीं सॉंप की खाल निकालने के लिए अमानवीय तरीके इस्तेमाल में किये जाते हैं। सॉंप को वृक्ष के तने पर कीले से ठोक दिया जाता है और फिर तेज धार वाले चाकुओं से चीरा जाता है। इतना ही काफी नहीं सॉंप के घोर शत्रु नेवले की खाल से भी फैशनेवल बस्तुएं बनाईं जाती हैं। फर के लिए मिंक नामक एक अन्य रोहेदार प्राणी की जान भी बड़ी बेरहमी से ले ली जाती है। यूरोप और अमेरिका की धनकुबेर महिलाएं मिंक के फर के कोट बड़ी शान से पहनती हैं। दिलचस्प बात है कि यह विश्व का सबसे मंहगा कोट माना जाता है। भांति-भांति के शेंपुओं को बाजार में उतारने से पहले शेंपू को खरगोश की ऑंख में डालकर जांचा परखा जात है। ऐसा करने से पूर्व उसे बांध दिया जाता है।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
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