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सांस की बीमारी से परेशान होते बच्चे

वातावरण से हमारे श्वसन तंत्र का सीधा संबंध होता है। वातावरण में विशेष रूप से आधुनिक शहरी वातावरण में कई तरह के जीवाणु और दूषित तत्व हर वक्त मौजूद रहते हैं। इसी वजह से श्वसन तंत्र में संक्रमण आसानी से और लगातार होते रहते हैं।

बचपन में तो श्वसन तंत्र की समस्या आम होती है। कई बार बचपन और बुढ़ापा दोनों अवस्थाओं में यह बीमारी गंभीर रूप धारण कर लेती है और यही नहीं कई बार यह मौत का कारण भी बन सकती है।

आमतौर पर श्वसन तंत्र का संक्रमण अगर युवा वर्ग के लोगों को होता है तो वे कुछ दिनों में स्वस्थ हो जाते हैं, लेकिन छोटे बच्चों, बूढ़ों में इस रोग के गंभीर रूप धारण करने की आशंका होती है क्योंकि उनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता तो कम होती ही है, साथ ही फेफड़ों की क्षमता भी कम होती है।

श्वसन तंत्र के ऊपर के भाग में जुकाम, गले में खराश, कान में दर्द, मवाद आना, गला खराब होना आदि के रूप में संक्रमण हो सकता है या फिर श्वसन तंत्र के निचले भाग में स्वर तंत्र या श्वसन मार्ग में या फिर फेफड़ों में संक्रमण (न्यूमोनिया) हो सकता है।

आज भी हर साल 40 लाख बच्चों की मृत्यु श्वसन तंत्र के रोग के गंभीर रूप के कारण हो जाती है। छोटे बच्चों में तो औसतन हर साल 5 से 8 बार श्वसन तंत्र में संक्रमण के मामले सामने आ ही जाते हैं। ज्यादातर मामलों में बच्चों को बीमारी मामूली ही होती है और बच्चे जल्दी ठीक हो जाते हैं पर बार−बार बीमार होने से माता−पिता परेशान रहते हैं। श्वसन तंत्र का संक्रमण कान में फैलने से बच्चे बहरे हो सकते हैं। यही नहीं संक्रमण अगर खतरनाक जीवाणु से हुआ हो या इलाज में लापरवाही बरती गई हो तो यह प्राणघातक भी हो सकता है।

श्वसन तंत्र में संक्रमण कई तरह के वायरस की वजह से होता है जैसे बैक्टीरिया, फफूंद। बच्चों में धूल पराग कण, ठंडक, धुंआ, गरमी, खुशबू आदि से यह समस्या शुरू होती है। इसके अलावा बच्चे वायरस बैक्टीरिया के संक्रमण के शिकार भी हो सकते हैं। अगर बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, शरीर कई बीमारियों का घर है, दमा रोग है या फिर फेफड़ों का संक्रमण किसी खतरनाक जीवाणु से हुआ हो तो रोग गंभीर रूप धारण कर सकता है।

अगर घर के अंदर या आसपास का वातावरण अच्छा नहीं प्रदूषित है, घर के आसपास कोई फैक्टरी है, घर में धूम्रपान किया जाता है या जन्म के समय शिशु का वजन कम है, बच्चा निर्धारित समय से पहले पैदा हुआ है तो रोग गंभीर रूप धारण कर सकता है।

गांवों का वातावरण काफी खुला और शहरों की तुलना में काफी कम प्रदूषित होता है। इसलिए शहरी बच्चों खासकर गंदी बस्ती, झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों में श्वसन तंत्र के संक्रमण की ज्यादा संभावना होती है।

इस रोग के लक्षण इसकी गंभीरता पर निर्भर करते हैं। बच्चों में नाक बहने, गले में खराश, बुखार, खांसी, गले या कान में दर्द, कान बहना, सांस लेने में परेशानी, हांफना, शरीर नीला पड़ना, छाती में दर्द जैसी परेशानियां हो सकती हैं।

रोग की शुरुआत में छोटे बच्चे दूध पीना बंद कर देते हैं। कभी−कभी शरीर ठंडा पड़ जाता है वे चिड़चिडे हो जाते हैं। उनकी सांस भी तेजी से चलने लगती है और अगर बच्चा न्यूमोनिया से पीड़ित है तो शरीर नीला पड़ जाता है, सांस लेने पर छाती अंदर धंस जाती है।

श्वसन तंत्र का संक्रमण मामूली भी हो सकता है और गंभीर भी। इसलिए रोग कितना गंभीर है यह जानना बहुत जरूरी होता है। रोग की गंभीरता के अनुसार ही इलाज और देखभाल की आवश्यकता होती है।

इस रोग में बच्चों को तेज बुखार होता है वे ठीक से सो नहीं पाते और वे दूध भी नहीं पी पाते हैं। यहीं नहीं उन्हें झटके भी आ सकते हैं। अगर बच्चे शांत पड़े हैं तो छाती से तेज आवाज आती है। सांस लेते वक्त छाती अंदर को धंस जाती है। सांस काफी तेज गति से चलती है।

ऐसी स्थिति में बच्चों को तुरन्त अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए जहां पर समुचित उपचार आक्सीजन एंटीबायोटिक आदि दवाएं उसे दी जाती हैं। ऐसे में जरा भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि यह स्थिति अत्याधिक गंभीर बीमारी की होती है।

अगर सांस लेते वक्त पसलियां अंदर को धंसती हैं, नथूने फूल जाते हैं, गले से गुर्राहट जैसी आवाज निकलती है, शरीर नीला पड़ जाता है तो समझ लें कि बच्चा गंभीर न्यूमोनिया की चपेट में है। ऐसे बच्चों को फौरन अस्पताल में भरती कराना आवश्यक होता है।

श्वसन तंत्र के संक्रमण के रोग से पीड़ित अधिकतर बच्चे साधारण इलाज से कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं फिर भी बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। अगर रोग गंभीर हों तो लक्षणों को पहचान कर तुरन्त डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

अगर बचपन में खांसी, जुकाम, सांस फूलने की समस्या लगातार एक माह तक रहती है तो उसे टीवी, दमा, काली खांसी होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में उचित जांच द्वारा लक्षणों की वजह जान कर इलाज करवाना चाहिए।

 

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