नई दिल्ली
बिहार के सीएम और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार खुद को असहज क्यों महसूस कर रहे हैं? क्या बिहार में उनकी सियासी प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे हैं। ये सवाल तब उठे हैं, जब केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में जेडीयू को अपने हिसाब से मंत्री पद नहीं मिला। जेडीयू ने 2 पद मांगे थे, लेकिन मिल रहा था एक। ऐसे में पार्टी ने कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया और कहा कि एनडीए में रहते हुए वह केंद्र में कभी भी मंत्री पद नहीं लेगी।
कैबिनेट विस्तार में नीतीश ने की बीजेपी की अनदेखी
इसके अगले ही दिन नीतीश ने बिहार में 8 नए मंत्री बनाए और इसमें बीजेपी का कोई चेहरा नहीं था। दोनों तरफ से सफाई आई कि ये पद जेडीयू कोटे के थे। बीजेपी अपना कोटा बाद में भरेगी। दोनों दलों के नेता गठबंधन को मजबूत और स्थिर बता रहे हैं। हालांकि बिहार में हालात जिस तरह से बदल रहे हैं, उससे यही संकेत जा रहा है कि नीतीश पूरी तरह से सहज नहीं हैं।
बिग ब्रदर की भूमिका ताक पर
2005 में बीजेपी के साथ गठबंधन बनाकर सत्ता में आने वाले नीतीश कुमार तब से लेकर अब तक लगातार राज्य में बिग ब्रदर बने हुए हैं। 2015 में जब आरजेडी से दोस्ती हुई, तब भी नीतीश ही आगे थे। इन वर्षों में कम से कम इस मोर्चे पर कभी चुनौती नहीं मिली, लेकिन इस बार आम चुनाव में जिस तरह नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट पड़े और जेडीयू उम्मीदवारों को जितवाने में भी मोदी फैक्टर ही अधिक काम आया उसे नीतीश कुमार ने सियासी संदेश और चुनौती माना। राज्य में 2020 के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले वह अपने दम पर बिग ब्रदर की भूमिका में आना चाहते हैं।
नीतीश संभलकर उठा रहे हर कदम?
जेडीयू सूत्रों के अनुसार नीतीश हड़बड़ी में नहीं हैं। राज्य में अपने हिसाब से कैबिनेट विस्तार करके उन्होंने बिहार में अपनी बॉस वाली स्थिति फिर से स्थापित कर दी है। अब वह बीजेपी के रुख का इंतजार करेंगे। नीतीश ने विचारधारा के साथ समझौता नहीं करने की बात भी कही है। धारा 370, राम मंदिर और नागरिकता कानून जैसे मुद्दों पर उनके बीजेपी के साथ बुनियादी मतभेद रहे हैं। बीजेपी इन मुद्दों पर जब आक्रामक होगी, तब नीतीश के सामने असहज स्थिति पैदा हो सकती है।