आजमगढ़ लोकसभा सीट पर छठे चरण के तहत रविवार को वोट डाले गए. इस सीट पर सुबह 9 बजे तक 9.07 फीसदी, दोपहर 1 बजे तक 34.89 फीसदी, 3 बजे तक 45.25 फीसदी और शाम 6 बजे तक 54.06 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई. यहां पर 2014 में कुल 56.15 फीसदी वोटिंग हुई थी, जबकि 2009 के चुनाव में इस सीट पर 44.68 फीसद वोट पड़े थे.
सात चरणों में संपन्न किए जा रहे 2019 के लोकसभा चुनावों के इस छठवें चरण में उत्तर प्रदेश की 14 सीटें शामिल हैं. इन 14 लोकसभा सीटों पर सुबह 9 बजे तक औसत मतदान 9.28 प्रतिशत, 11 बजे तक 21.56 प्रतिशत, दोपहर 1 बजे तक 34.30% और 3 बजे तक 43% और शाम 6 बजे तक 50.82 फीसदी दर्ज किया गया.
इस सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मैदान में हैं, जबकि बीजेपी ने यहां से भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को उतारा है. इस सीट पर कुल 15 उम्मीदवार मैदान में हैं.
बता दें, 2014 में इस सीट से सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव मैदान में उतरे थे. उन्हें उनके ही शागिर्द रहे रमाकांत यादव ने कड़ी टक्कर दी थी. मुलायम को 3.40 लाख और रमाकांत को 2.77 लाख वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर बीएसपी के गुड्डू जमाली 2.66 लाख वोट पाकर रहे थे. इस बार रमाकांत यादव के साथ मुलायम सिंह यादव भी मैदान में नहीं हैं. इस बार आजमगढ़ से खुद अखिलेश यादव ने उतरने का फैसला लिया है.
आजमगढ़ को उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में गिना जाता है. आजमगढ़ संसदीय सीट प्रदेश के 80 संसदीय सीटों में से एक है और 59वें नंबर की सीट है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
आजमगढ़ संसदीय सीट पर पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ, उस समय यहां पर दो सदस्यीय सीट हुआ करती थी आजमगढ़ (वेस्ट) और आजमगढ़ (ईस्ट और बलिया जिला वेस्ट) जिसमें क्रमशः सीताराम और अलगु राय पहले सांसद बने. 1957 में विश्वनाथ प्रसाद ने जीत हासिल की. यहां से सबसे बड़ी जीत 1977 में मिली जब इस सीट पर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव ने जनता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की.
यहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रजीत यादव ने 4 बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की. इसके अलावा रमाकांत यादव भी 4 बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं. रमाकांत यादव 4 में से 2 बार सपा और 1-1 बार बसपा और बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल की. रमाकांत यादव 2009 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े और संसद पहुंचे, लेकिन 2014 के चुनाव में वह मुलायम सिंह यादव के हाथों हार गए.
सामाजिक ताना-बाना
2011 की जनगणना के बाद आजमगढ़ जिले की आबादी 46.1 लाख है जिसमें 22.9 लाख पुरुषों की और 23.3 लाख महिलाओं की आबादी है. इसमें 74% आबादी सामान्य वर्ग की और 25% आबादी अनुसूचित जाति की है. धर्म आधारित आबादी के आधार पर 84% लोग हिंदू समाज के हैं जबकि 16% मुस्लिम समाज के हैं. लिंगानुपात के मामले में प्रति हजार पुरुषों में 1019 महिलाएं हैं. वहीं साक्षरता दर के आधार पर देखा जाए तो यहां की 71% आबादी शिक्षित है जिसमें 81% पुरुष और 61% महिलाएं साक्षर हैं.
आजमगढ़ संसदीय सीट के तहत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ़ और मेहनगर शामिल है और यहां से बीजेपी के खाते में एक भी विधानसभा सीट नहीं है.
2014 का जनादेश
5 साल पहले आजमगढ़ लोकसभा में हुए चुनाव के दौरान 17,03,222 मतदाता हैं जिसमें 9,41,548 पुरुष और 7,61,674 महिला मतदाता शामिल थे. इन मतदाताओं में से 9,60,218 (56.4%) मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. इनमें से 5,660 (0.3%) लोगों ने नोटा के पक्ष में मतदान किया. आजमगढ़ के इतिहास में 2014 में पहली बार किसी पार्टी (मुलायम) के अध्यक्ष ने इस सीट से चुनाव लड़ा था.
2014 के लोकसभा चुनाव में यहां मुकाबला समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह यादव और बीजेपी के रमाकांत यादव के बीच हुआ था. मुलायम को 3,40,306 (35.4%) मिले जबकि रमाकांत को 277,102 (28.9%) के पक्ष में वोट आए. बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली 266,528 (27.8%) मत हासिल कर तीसरे और कांग्रेस के अरविंद कुमार जयसवाल 17,950 (1.9 फीसदी) वोट पाकर चौथे स्थान पर रहे.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
आजमगढ़ के सांसद मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम हैं और वह छठी बार लोकसभा में पहुंचे. राजनीति विज्ञान में परास्नातक करने वाले मुलायम ने 2 शादी की जिसमें साधना यादव ने उनके बेटे अखिलेश यादव हुए जो बाद में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री भी बने.
जहां तक 79 साल के इस बुजुर्ग नेता की लोकसभा में उपस्थिति का सवाल है तो उनकी उपस्थिति 81 फीसदी (राष्ट्रीय औसत 80%) है. जहां तक बहस का सवाल है तो उन्होंने 43 बहस में हिस्सा लिया. वहीं सवाल पूछने के मामले में वह पूरी तरह से फिसड्डी साबित हुए. उन्होंने एक भी सवाल नहीं पूछे. वहीं एक भी प्राइवेट मेंबर्स बिल भी पेश नहीं किया.
आजमगढ़ यूं तो आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े जिलों में गिना जाता है, लेकिन पिछले चुनाव में यादव बहुल इस क्षेत्र में मुलायम सिंह ने जीत हासिल कर सपा के पक्ष में यह गिनी-चुनी लोकसभा सीट डलवाया था, लेकिन गुजरे 5 साल में उनकी अपनी पार्टी पर पकड़ ढीली हुई है, हालांकि सपा-बसपा के बीच गठबंधन और कांग्रेस में प्रियंका गांधी की राजनीति में एंट्री के बाद अब प्रदेश की राजनीति में नया बदलाव आ गया है, अब देखना होगा कि यहां पर जीत किसके हिस्से आती है.