2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल का जोश इतना हाई था कि वो वाराणसी जाकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ गए. हालांकि, वो चुनाव हार गए लेकिन दिल्ली की जनता का AAP से मोहभंग नहीं हुआ और 2015 के विधानसभा चुनाव में उसे अप्रत्याशित समर्थन दिया. मगर, मोदी लहर (2014) में दिल्ली का सम्मानजनक समर्थन पाने वाली आप को मोदी सुनामी (2019) में जनता ने पूरी तरह से नकार दिया. दिल्ली के दिलों पर राज करने वाली आप का यह हश्र कैसे हो गया, इस पर पार्टी की विधायक अलका लांबा ने तफसील से अपनी राय रखी.
Aajtak.in से खास बातचीत में चांदनी चौक से आम आदमी पार्टी विधायक अलका लांबा ने कहा कि जैसे नतीजे देशभर में आए हैं, उस हालत में किसी की भी हार तय थी, लेकिन इतने बुरे परिणामों से AAP बच सकती थी. लांबा ने कहा कि 2014 के चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने वाली पार्टी, जिसने 2015 में दिल्ली में सरकार बनाई वो कम से कम मौजूदा चुनाव में दूसरी पोजिशन पर तो आ ही सकती थी, लेकिन हालत ये हैं कि प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा पाए.
अलका लांबा ने बताए हार के कारण
AAP की इस हार के अलका लांबा ने कई कारण गिनाए. उन्होंने बताया कि पार्टी ने जितने भी प्रत्याशी उतारे वो अनजान थे. ये ऐसे प्रत्याशी थे, जिनका परिचय कराने में ही प्रचार का काफी वक्त निकल गया. लांबा ने कहा कि आप के प्रत्याशियों में से कुछ जरूर मीडिया में पहचान रखते हैं, लेकिन जनता के बीच उनकी कोई पकड़ नहीं है.
ये कारण बताते हुए अलका लांबा ने टिकट वितरण लोकतांत्रिक तरीके से नहीं होने का भी दावा किया. उन्होंने कहा कि टिकट देते वक्त किसी विधायक से नहीं पूछा गया और बंद कमरों से ही सारे फैसले हो गए. अलका का कहना है कि अगर मौजूदा विधायकों में से भी किसी को टिकट दिए जाते तो नतीजे कुछ और होते.
महागठबंधन के साथ जाने पर बिगड़ी छवि
अलका लांबा ने मोदी के खिलाफ कई मंचों पर एकजुट हुए विपक्षी नेताओं के साथ अरविंद केजरीवाल का जाना भी हार का एक अहम कारण बताया. उन्होंने कहा कि महागठबंधन के साथ जाने से आम आदमी पार्टी की छवि बिगड़ी, लेकिन इससे भी ज्यादा नुकसानदायक दिल्ली में कांग्रेस के सामने गठबंधन के लिए झुकना रहा. लांबा ने कहा कि कांग्रेस से गठबंधन के ऐसे प्रयास से पार्टी की कमजोरी दिखी और जनता के बीच यह संदेश गया कि आप किसी को हरा नहीं पा रही है.
अलका लांबा ने ये बात कहते हुए ओडिशा के क्षेत्रीय दल बीजू जनता दल के अध्यक्ष नवीन पटनायक का भी उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि नवीन पटनायक कहीं भी महागठबंधन के साथ खड़े नजर नहीं आए. यही वजह रही कि आज उन्होंने बेहतर नतीजे पाए. अलका लांबा ने कहा कि केजरीवाल महागठबंधन से दूर रहते तो आज हालात कुछ और होते.
वोट वापस लाना बड़ी चुनौती
अलका लांबा से aajtak.in ने जब यह सवाल पूछा कि क्या अगले साल होने जा दिल्ली विधानसभा चुनाव को भी लोकसभा चुनाव के नतीजे प्रभावित करेंगे तो उन्होंने कहा कि अब AAP के लिए अपना वोट वापस लाना बड़ी चुनौती है. अलका लांबा ने कहा कि 2015 का चुनाव अन्ना आंदोलन के बाद बदलाव का था, लेकिन आज वो छवि खत्म हो गई है और अब सिर्फ मोहल्ला क्लीनिक पर वोट नहीं मिल सकता है.
अलका ने आप को कमजोर स्थिति में बताते हुए कांग्रेस की हालत में सुधार की बात कही. उन्होंने कहा कि वोट प्रतिशत के हिसाब से आज कांग्रेस आगे खड़ी है और आप की हालत 2014 से भी खराब है. यहां तक कि केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की विधानसभा में भी पार्टी को बहुत कम वोट मिला है. केजरीवाल के मुस्लिम वोट न मिलने के बायन की आलोचना करते हुए अलका ने कहा कि इस चुनाव में सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि सभी समाज ने आप को नकार दिया है.
ये तमाम वजह गिनाते हुए अलका लांबा ने दावा किया कि ऐसे परिस्थितियों में विधानसभा की लड़ाई त्रिकोणीय नजर नहीं आ रही है. साथ ही अलका लांबा ने यह भी कहा कि पांच साल तक मोदी सरकार पर काम न करने देने का आरोप लगता रहा, ऐसे में अब जबकि मोदी सरकार फिर से आ गई है तो क्या गारंटी है वो फिर काम करने देंगे. अपनी इस बात को समझाते हुए अलका लांबा ने दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी और कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित की मुलाकात का भी जिक्र किया. अलका लांबा ने कहा कि यह महज एक शिष्टाचार मुलाकात नहीं थी, बल्कि एक संदेश था कि दिल्ली में केजरीवाल रहेगा तो कुछ नहीं होगा.
केजरीवाल दें पार्टी संयोजक पद से इस्तीफा
आम आदमी पार्टी की हार का कारण अरविंद केजरीवाल को बताते हुए अलका लांबा ने उनसे पार्टी संयोजक पद से इस्तीफा देने की भी मांग की. अलका ने कहा कि केजरीवाल मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ पार्टी का काम भी संभाल रहे हैं, ऐसे में अब किसी ऐसे व्यक्ति को पार्टी की जिम्मेदारी मिलनी चाहिए, जिसके पास गवर्नेंस का भार न हो. अलका लांबा ने इसके लिए राज्यसभा सांसद और पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह का नाम आगे किया.
मुझे AAP की नहीं, उन्हें मेरी जरूरत
आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाने के बाद अलका लांबा पार्टी में अपना क्या भविष्य देखती हैं, इस सवाल पर उन्होंने जवाब दिया कि अलका लांबा को AAP की जरूरत नहीं है, बल्कि आप को मेरे जैसे विधायक की आवश्यकता है. हालांक, अलका ने बताया कि वो अनौपचारिक तौर पर पार्टी से अलग हो चुकी हैं, लेकिन अपना कार्यकाल पूरा होने तक इस्तीफा नहीं देंगी.
बता दें कि अन्ना आंदोलन के बाद 2012 में आप का गठन हुआ था. जिसके बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 28 सीटें मिली थीं और कांग्रेस के समर्थन से केजरीवाल ने 49 दिन की सरकार चलाई थी. इसके बाद 2015 में जब दोबारा विधानसभा चुनाव हुए तो आप को 70 में से 67 सीटों पर जीत मिली. वहीं, इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में AAP को हालांकि एक भी सांसद दिल्ली से नहीं मिला, लेकिन पार्टी को करीब 33 प्रतिशत वोट मिला, जो कांग्रेस से दोगुना था. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में AAP का वोट प्रतिशत घटकर 18 प्रतिशत आ गया है, जबकि कांग्रेस बढ़कर 22.5 प्रतिशत पर पहुंच गई है.