पटना।
लोकसभा चुनाव के बाद गुरुवार को केंद्र में मोदी सरकार का शपथ ग्रहण संपन्न हो गया। दूसरी तरफ बिहार में हार के बाद महागठबंधन का भविष्य अधर में लटकता दिख रहा है। कांग्रेस अब राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से पिंड छुड़ाने के मूड में दिख रही है। हार की समीक्षा को ले महागठबंधन की बैठक में कांग्रेस के शामिल नहीं होने से यह आशंका और गहरा गई है। इसके पहले भी पार्टी के नेता आजेडी के खिलाफ बयान दे चुके हैं। उधर, कांग्रेस व आरजेडी, दोनों में फूट के संकेत मिले हैं।
चुनावी हार के बाद अब समीक्षा का दौर
विदित हो कि हालिया लोकसभा चुनाव में बिहार में महागठबंधन की करारी हार हुई है। महागठबंधन को प्रदेश की 40 लोकसभा सीटों में केवल एक मिली, जो कांग्रेस के खाते में गई। शेष 39 सीटों पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के प्रत्याशी विजयी रहे। इसके बाद से महागठबंधन में बयानबाजी व समीक्षा का दौर चल रहा है। साथ ही फूट की आशंका भी गहरा गई है।
बिहार में हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर हुई बैठक में पहली बार महागठबंधन के सारे प्रमुख नेता एक साथ थे। बैठक में हार के कारणों की समीक्षा की गई। साथ ही विधानसभा चुनाव 2020 के लिए एकजुटता दिखाने की कोशिश की गई। बैठक में तेजस्वी यादव (RJD), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) सुप्रीमो जीतनराम मांझी के बेटे संतोष मांझी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा, लोकतांत्रिक जनता दल (LJD) के शरद यादव, विकाशील इंसान पार्टी (VIP) के मुकेश सहनी शामिल हुए। लेकिन कांग्रेस का कोई प्रतिनिधि बैठक में नहीं पहुंचा। इसे कांग्रेस की आगामी रणनीति से जोड़ा जा रहा है।
सदानंद कर रहे आरजेडी हटाकर गठबंधन की बात
सवाल यह है कि आखिर कांग्रेस ने महागठबंधन की इस अहम बैठक से किनारा क्यों किया? क्या यह पार्टी का आरजेडी से दूरी बनाने की रणनीति है? बिहार कांग्रेस के बड़े नेता सदानंद सिंह दो फ्रंट पर काम करने पर बल देते हैं। वे बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने के साथ-साथ आरजेडी को हटाकर गठबंधन की बात कहते हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौड़ भी बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने की बात करते हैं। स्पष्ट है कि कांग्रेस में आरजेडी से अलग होने के विकल्प पर बात उठने लगी है। माना जा रहा है कि कांग्रेस अब आरजेडी से अलग हाेते वोट बैंक पर मजबूत पकड़ बना विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटना चाहती है।
हार को ले आरजेडी व तेज प्रताप को मानते जिम्मेदार
सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस के नेताओं में हार के कारणों को लेकर मतभेद है। कई बड़े कांग्रेस नेता इसके लिए आरजेडी व उसके सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव की गतिविधियों एवं आपसी समन्वय के अभाव को जिम्मेदार मान रहे हैं। कुछ नेताओं की सोच यह भी है कि बिहार में महागठबंधन की बैठक की मेजबानी अब कांग्रेस को करनी चाहिए, क्योंकि कांग्रेस की राष्ट्रीय पहचान है। तेजस्वी यादव के इस बयान को भी अहंकारी बताया जा रहा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि वे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से बात करेंगे। कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष मिन्नत रहमानी ने तेजस्वी की बात पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि उन्हें प्रदेश कांग्रेस को विश्वास में लेकर चलना होगा। माना जा रहा है कि इन कारणों से कांग्रेस ने बैठक से किनारा कर लिया।
तेजस्वी का महागठबंधन में फूट से इनकार
कांग्रेस की रणनीति पर आधिकारिक बयानबाजी भले ही न हो, लेकिन कुछ आरजेडी नेता मानते ही हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की योजना 2020 में अपनी जमीन तैयार करने की है। दूसरी ओर तेजस्वी यादव ने किसी तरह की फूट से इनकार किया है। उन्होंने कहा है कि जल्दी ही कांग्रेस के नेतृत्व में दिल्ली में होनेवाली बैठक में आरजेडी शामिल होगा। हालांकि, पटना की बैठक में कांग्रेस के शामिल नहीं होने पर वे कुछ नहीं बोले।
इस बाबत पूछने पर लोकतांत्रिक जनता दल (एलजेडी) के नेता शरद यादव टाल गए। स्पष्ट है, हार के बाद महागठबंधन एकजुटता पर संदेह पैदा हो गया है।
नीतीश संग दिखे कांग्रेस विधायक, पार्टी में टूट की आशंका
महागठबंधन की एकजुटता के अलावा घटक दलों में फूूट की आशंका भी गहराती दिख रही है। कांग्रेस की बात करें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन की बैठक के दिन ही आयोजित इफ्तार पार्टी में कांग्रेस विधायक डॉ. शकील अहमद खान भी शामिल हुए। शकील अहमद के इफ्तार पार्टी में शामिल होने के बाद बिहार कांग्रेस में टूट की आशंका बढ़ गई है।
लालू के लालों के प्रति आरजेडी में असंतोष गहराया
उधर, हार की समीक्षा के लिए आयोजित आरजेडी की बैठक में पार्टी के एक दर्जन से अधिक विधायक शामिल नहीं हुए। समीक्षा बैठक के पहले पार्टी के एक विधायक ने हार के लिए तेजस्वी यादव को जिम्मेदार ठहराते हुए उनसे नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफे की मांग की। जहानाबाद से पार्टी प्रत्याशी रहे सुरेंद यादव ने कहा कि उनकी हार तेज प्रताप यादव के कारण हुई। अगर तेज प्रताप ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर जहानाबाद में उनके खिलाफ प्रत्याशी नहीं उतारा होता तो वे जीत जाते। आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रधुवंश प्रसाद सिंह ने भी मुंह खोला। उन्होंने हार के लिए तेजस्वी व तेज प्रताप के झगड़ें को जिम्मेदार ठहराया तथा तेज प्रताप पर कार्रवाई की मांग की।
अब आगे-आगे देख्रिए, होता है क्या
आरजेडी नेताओं के आक्रोश को बैठक में बखूबी दबा दिया गया। पार्टी ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आस्था व्यक्त की। लेकिन बैठक के पहले नेताओं की नेतृत्व के खिलाफ बयानबाजी तथा बैठक में एक दर्जन से अध्रिक विधायकों की अनुपस्थिति के मायने निकाले जा रहे हैं। इसे जनता दल यूनाइटेड (JDU) के एक नेता के उस बयान से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मानसून सत्र के पहले तक विपक्ष के कई नेता पाला-बदल करेंगे। आरएलएसपी के सभी विधायकों के पाला बदल कर जेडीयू में शामिल होने के बाद यह दावा निराधार भी नहीं लगता। अब आगे-आगे देखिए, होता है क्या।