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सीधी में एक पति बना ‘दशरथ मांझी’ , पत्नी को दिया जिंदगी का अनमोल गिफ्ट कुंआ, राह में आया चट्टान तो काट डाला

सीधी
 आपने अब तक प्यार की कई ऐसी कहानियां सुनी होगी, जिसमें लोग प्यार के चक्कर में किसी भी हद तक गुजरने को तैयार हो जाते हैं. प्यार के चक्कर में कुछ लोग तो इस कदर दीवाने हो जाते हैं कि वो असंभव कार्य को भी संभव कर दिखाते हैं. अपनी पत्नी की प्यार में शाहजहां ने मुमताज की याद में संगमरमर का ताजमहल बनवा दिया तो बिहार के दशरथ मांझी ने पत्नी की याद में पहाड़ खोदकर रास्ता निकाल दिया. ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के सीधी जिले से आया है, जहां हरि सिंह की पत्नी 2 किलोमीटर दूर पानी लाने जाती थी. पत्नी की परेशानी को देख हरि सिंह ने पहाड़ों का सीना चीर कर पानी निकाल दिया. लोग हरि सिंह की तुलना बिहार के दशरथ मांझी से कर रहे हैं.

मध्य प्रदेश के सीधी जिले में रहने वाले 40 वर्षीय हरि सिंह ने इस बात को सच कर दिखाया है. उनकी पत्नी सियावती को हर दिन 2 किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाना पड़ता था. यह दर्द हरि सिंह से देखा नहीं गया. उन्होंने ठान लिया कि इस समस्या का समाधान खुद ही निकालेंगे.

4 साल तक कड़ी मेहनत कर, चट्टानों से भरे पहाड़ में 60 फीट गहरा और 20 फीट चौड़ा कुआं हरि सिंह ने खोद डाला. अब यह कुआं न सिर्फ उनके परिवार बल्कि पूरे गांव के लिए जीवनदायिनी बन चुका है.

पत्नी के संघर्ष ने जगाई चेतना

बरबंधा गांव की सियावती हर रोज दो किलोमीटर दूर जाकर पानी भरकर लाती थी. गर्मी में यह सफर और भी मुश्किल हो जाता था. कई बार वे बीमार भी पड़ जातीं, लेकिन पानी के बिना कोई गुजारा नहीं था. यह पीड़ा देखकर हरि सिंह के मन में सवाल उठता, "क्या हम जिंदगी भर ऐसे ही पानी के लिए भटकते रहेंगे?" फिर एक दिन यही सवाल उनके संकल्प में बदल गया और 2019 के दिसंबर में उन्होंने पहाड़ को काटने का फैसला किया.

संघर्ष, जब पत्थर भी रोड़ा बने

यह आसान नहीं था. जिस पहाड़ को खोदना था, वह पूरी तरह से चट्टानों से भरा था. वहां मिट्टी की परत तक नहीं थी. जिससे खुदाई बेहद मुश्किल हो गई. न कोई मशीन, न सरकार की मदद, न कोई और सहारा बस खुद की इच्छाशक्ति और परिवार का साथ. हरि सिंह दिन-रात हथौड़े और छेनी से चट्टानें तोड़ते रहे. कई बार ऐसा लगता कि यह काम असंभव है, लेकिन उनकी पत्नी और बच्चों ने उनका हौसला बनाए रखा.

वहीं हरि सिंह के इस जज्बे पर पत्नी सियावती कहती हैं, "जब मैं देखती कि मेरे पति पत्थरों को तोड़ते हुए थक जाते हैं, तो मैं खुद भी उनके साथ लग जाती थी. हम सबने इसे अपनी लड़ाई मान लिया था." चार साल की इस कठिन तपस्या के बाद दिसंबर 2023 में आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और कुएं से पानी निकल आया.
गांव की उम्मीद बना 'संकल्प कुआं'

हरि सिंह के इस प्रयास ने पूरे गांव की तकदीर बदल दी. अब यह कुआं पूरे गांव की प्यास बुझा रहा है. जहां पहले लोग पानी के लिए तरसते थे. अब वहां भरपूर पानी उपलब्ध है. गांव के बुजुर्ग रामसिंह कहते हैं, "हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे गांव में खुद का कुआं होगा. यह हरि सिंह की मेहनत का ही नतीजा है कि अब हमें पानी के लिए भटकना नहीं पड़ता."
सरकारी उपेक्षा के बावजूद रचा इतिहास

हरि सिंह ने इस दौरान प्रशासन और पंचायत से कई बार मदद मांगी, लेकिन हर बार उन्हें निराशा हाथ लगी. "मैंने सोचा था कि शायद सरकार कोई योजना देकर मदद करेगी, लेकिन कुछ नहीं मिला. फिर मैंने खुद ही इस समस्या का हल निकालने की ठानी," हरि सिंह बताते हैं "अब पूरा गांव इस कुएं का लाभ उठा रहा है, और हर कोई हरि सिंह को 'सीधी का दशरथ मांझी' कहकर बुलाने लगा है.

प्रेरणा, संकल्प और संघर्ष से हर सपना संभव

हरि सिंह की कहानी यह साबित करती है कि अगर इंसान कुछ ठान ले, तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती. यह सिर्फ एक कुआं नहीं, बल्कि इंसानी हौसले और मेहनत की मिसाल है. "अगर हिम्मत हो, तो पहाड़ भी झुक सकते हैं और प्यासे को पानी भी मिल सकता है." हरि सिंह का यह संघर्ष हर किसी के लिए एक प्रेरणा है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो असंभव भी संभव हो सकता है."

सीधी के माउन्टेन मैन ने कही यह बात..

हरि सिंह का कहना है की इस कुएं को खोदने के बाद थोड़ा बहुत पानी मिल गया है। लेकिन जब तक समुचित उपयोग के लिए पानी नहीं मिल जाता तब तक यह कुआं खोदने का कार्य उनके द्वारा लगातार जारी रहेगा। इसके लिए चाहे कुछ भी करना पड़े। कुआं खोदने का काम विगत 3 वर्ष से उनके द्वारा जारी है। तब जाकर थोड़ा बहुत पानी मिल पाया है।

इस कुएं की खुदाई के कार्य में 3 वर्ष से उनकी पत्नी सियावती व दो बच्चे तथा एक बच्ची उनकी मदद में लगे हुए हैं। उन्होंने अपनी पत्नी की पानी की परेशानी को दूर कर दिया है। शुरू में यह कार्य उन्हे बहुत कठिन लग रहा था क्योंकि पूरा का पूरा पत्थर खोदना था, मिट्टी की परत एक भी नहीं थी।

ऐसे में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन हार मान कर बैठने की बजाए उन्होंने इस कठिन कार्य को करने की ठानी। जिसके बाद उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने पहाड़ खोदकर पानी निकाल दिया।

जाहिर है 40 वर्षीय हरि सिंह की कहानी भी दशरथ मांझी से कम नहीं है। इसीलिए लोग उन्हें सीधी के दशरथ मांझी के नाम से भी पुकारने करने लगे हैं।

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