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‘एक महानायक- डॉ. बी. आर. आम्बेडकर’ की तैयारी के लिये कानून के औपचारिक लेक्चर लेंगे

प्रसाद जवादे एक अद्भुत अभिनेता हैं, जिन्होंने मराठी टेलीविजन और फिल्म इंडस्ट्री में बार-बार अपने अभिनय का लोहा मनवाया है और इस बार वे &TV के दमदार सामाजिक ड्रामा एक महानायक- डॉ. बी. आर. आम्बेडकर के साथ अपने हिन्दी टेलीविजन पर पदार्पण के लिये तैयार हैं। इस बार वे पूरी तरह नये अवतार में नजर आएंगे और बाबासाहब का शक्तिशाली किरदार अदा करेंगे।

अभिनय के लिये सच्ची लगन रखने वाले प्रसाद की यात्रा की शुरूआत उनके गृहनगर पुणे में एक थियेटर एक्टर के तौर पर हुई थी, जहाँ उन्होंने मण्डली के साथ कई नाटकों में भाग लिया था। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने ड्रामैटिक्स को चुना और थियेटर ग्रुप्स में शामिल हो गये। इंटर-कॉलेज प्रतियोगिताओं के दौरान उनकी मुलाकात अपने मेंटर श्री योगेश सोमण से हुई। प्रसाद ने उनके मार्गदर्शन में करीब 4 वर्ष तक थियेटर का अध्ययन किया और कई नाटकों में भाग लिया। उन्होंने ही प्रसाद को पूर्णकालिक कॅरियर के तौर पर अभिनय चुनने और टेलीविजन शोज तथा फिल्मों में काम करने के लिये कहा।

डॉ. बी. आर. आम्बेडकर एक विश्व-स्तरीय वकील, एक महान राजनेता और भारतीय संविधान के प्रमुख शिल्पकार थे। वे एक मेधावी विद्यार्थी थे और उन्होंने कोलम्बिया यूनिवर्सिटी तथा लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट किया था। कानून, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध के लिये वे एक स्कॉलर के रूप में प्रतिष्ठित हुए। डॉ. आम्बेडकर एक उत्कृष्ट कानूनी और संविधान विशेषज्ञ थे, इसलिये उन्हें भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने का दायित्व दिया गया था।

बाबासाहब के किरदार में खुद को पूरी तरह ढालने के लिये प्रसाद कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ज्ञान के प्रति डॉ. अम्बेडकर की लगन से प्रेरित होकर उन्होंने पुणे के लॉ स्कूल में औपचारिक लेक्चर लेने का निर्णय किया है, ताकि इस विषय पर उनका ज्ञान बढ़े।

इस बारे में समझाते हुए प्रसाद जवादेे ने कहा, ‘‘डॉ. आम्बेडकर निस्संदेह हमारे समय के सबसे बेहतरीन और अनुसरण किये जाने वाले नेताओं में से एक थे। ऐसे महान व्यक्तित्व की भूमिका निभाना सरल नहीं है! ज्ञान के प्रति उनकी लगन ने मुझे कानून के अध्ययन हेतु प्रेरित किया है। एक विषय के तौर पर कानून बहुत व्यापक है और उसे गहराई से समझने के लिये मैं फॉर्मल लेक्चर लूंगा। बाबासाहब की बौद्धिक क्षमता को आत्मसात् करना या उससे ताल-मेल बिठाना असंभव है, लेकिन यदि मैं उनके थोड़ा भी करीब पहुँच सका, तो मेरा सौभाग्य होगा।’

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