* विनम्र व्यक्ति समाज में पूज्य
मनुष्य जीवन में सफलता पाने का सदैव प्रयास करता रहता है और यह अत्यंत आवश्यक भी है क्योंकि सफलता और सार्थकता जीवन के पर्याय जो हैं। मनुष्य मूलता लोभी तथा लालची होकर स्वार्थ से ओतप्रोत भी होता है और इसी कारण स्वार्थ के वश में यदि वह कुछ प्राप्त कर लेता है तो उसमें अहंकार की भावना भी आ जाती है। विनम्रता मनुष्य को समाजिक प्रक्रिया में उसके द्वारा ग्रहण किया गया एक विशेष गुण होता है। मनुष्य जैसे जैसे समाज और संभ्रांत लोगों के संपर्क में आता है उसमें नए गुणों का संचार होता है और अहंकार तथा लालच की भावना का विलोप होता जाता है, समाज में उसकी संरचना को मजबूत करने के लिए सहिष्णुता, सौहाद्र,करुणा और सहयोग की भावना के साथ अन्य सद्गुणों को समाहित कर वह जीवन प्रक्रिया प्रारंभ करता है। मनुष्य की इन्हीं खूबियों के समेकित स्वरूप को विनम्रता तथा सद्गुण के रूप में देखा जाता है। समाज में विनम्र व्यक्ति सदैव अपने व्यवहार के कारण लोकप्रिय, सर्वस्वीकार्य होता है उसकी बातें लोग ध्यान से सुनते भी हैं और उसको यथा योग सम्मान भी दिया जाता है। विनम्रता समाज में स्थापित लोगों द्वारा ग्रहण किया गया एक गुण होता है और यही कारण है कि कुछ व्यक्ति अपनी अज्ञानता के कारण, कुछ ना सीखने की प्रवृत्तिवश विनम्रता ग्रहण नहीं कर पाते हैं और कुएं के कूप मंडूक मेंढक की तरह व्यवहार करते हैं, समाज में स्थापित व्यक्ति अपनी विनम्रता का बखान नहीं करते, विनम्रता उनके व्यक्तित्व से झलकती है ।ज्ञानी ध्यानी लोग सार्वजनिक प्रशंसा को भी साधारण सी बात समझ कर उसे स्वीकार नहीं करते हैं और अपने ज्ञान और कर्तव्य से अपने व्यक्तित्व को और आगे बढ़ाने का प्रयास करते हैं। दार्शनिक सुकरात का ही उदाहरण लें तो वे हमेशा कहते थे कि मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं है यह उनका महान होने का एक साधारण लक्षण था। ऐसा कहा जाता है की ज्ञानी और समृद्ध व्यक्ति अपने ज्ञान तथा समृद्धि का दंभ न भर कर उसका समुचित उपयोग समाज और देश के विकास के लिए करते हैं और मनुष्य के जीवन की आधी जंग विनम्रता और ज्ञान की सदाशयता से विजीत की जा सकती है। ज्ञान और नम्रता उपलब्धि सार्वजनिक हित के बिना निरर्थक है। फलों से लगा हुआ पेड़ जिस तरह झुक जाता है उसी तरह महान ज्ञानी व्यक्ति अपनी विनम्रता से और समाज उपयोगी हो जाता है। कुल मिलाकर विनम्रता मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारती है और उसके व्यवहार में चार चांद लगाने का काम भी करती है। इसके विपरीत अज्ञानी व्यक्ति विचारों की स्वीकार्यता नगण्य होती है वह कुछ सीखता नहीं चाहता और समाज में तिरस्कार खेलने का प्रमुख अवयव बन जाता है। विनम्रता को आत्मसात करने वाला व्यक्ति नए नए विचारों का स्वागत कर उसे सीखने का प्रयास करता है परिणाम स्वरूप उसके आचार व्यवहार में निखार आने लगता है। भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम की विनम्रता ने उन्हें देश में सर्वोपरि व्यक्ति बनाया था। और आपको यह बता दें कि ज्ञान प्राप्त करने वाला व्यक्ति केवल सूचनाओं का भंडार ही नहीं होता बल्कि वह विनयशील भी हो जाता है और उसकी यह विनय शीलता उसे समाज में प्रमुख स्थान दिलवाती है। मनुष्य के जीवन में आती कठिनाइयों तथा विषम परिस्थितियों में मनुष्य की विनम्रता, साहस, उच्च मनोबल और विनय शीलता हमेशा विजयी बनाती है। विनम्रता मनुष्य में किसी भी पद के लिए स्वीकार्यता प्राप्त करने की ऊर्जा शक्ति प्रदान करती है, वह उच्च पद को प्राप्त भी कर लेता है वह समाज में योग्यता हेतु एक स्वीकार्य व्यक्तित्व बन जाता है और लोग उसका अनुकरण अनुसरण करते हैं। विनयशीलता एवं विनम्रता ही व्यक्तित्व को बहुत ऊंचा और ऊंचा करने में सहायक है, विनम्रता से यह बात तो निश्चित है की अहंकार और घमंड बहुत दूर हो जाते हैं और व्यक्ति सरल सीधा और ज्ञान की पराकाष्ठा को प्राप्त कर लेता है, ज्ञानी व्यक्ति समाज में सदैव पूजनीय होते हैं। ज्ञानी और विनम्र व्यक्ति सदैव आत्म संतुष्टि को प्राप्त करता है। विनम्रता मनुष्य के जीवन में उसे सदैव अग्रसर होने के लिए प्रेरित करती है और वज्ञान के प्रति उसकी आकांक्षा प्रबल होती रहती है। यह तो सर्वविदित है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए उम्र कभी बाधा नहीं रही है। ऐसा समाज में अक्सर देखा गया है कि विनम्रता से ओतप्रोत व्यक्तित्व नेतृत्व करने की क्षमता वाला होता है और अपने विचार सुविचार को समाज में जनमानस को जबरिया थोपने की बजाए उन्हें अपने सुझाव से युक्त कर समस्याओं से जूझने के लिए परिपक्व एवं मजबूत बनाता है। महात्मा गांधी जी ने स्वतंत्रता के आंदोलन में सत्य और अहिंसा को अपना साधन घोषित करते हुए जनमानस के साथ इसी अस्त्र को लेकर देश की स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भी सत्य है की सत्य अहिंसा विनम्र तथा विनय शील व्यक्ति के बड़े ही प्रभावी तथा महत्वपूर्ण गुण तथा अंग होते हैं। विनम्र और विनय शील व्यक्ति के साथ व्यक्तित्व को लेकर कोई भ्रम अशांति अथवा संशय नहीं रहता है क्योंकि उनके साथ ना किसी की प्रति श्रद्धा न द्वेष ना ईर्ष्या ही होती है, वह इन सब से दूर रहकर समाज तथा देश के विकास के चिंतन में लगे होते हैं, विनम्रता को कमजोरी समझने का मुगालता नहीं पालना चाहिए क्योंकि विनम्र व्यक्ति कुछ क्षण के लिए कमजोर जरूर हो सकता है पर उसकी मानसिक दृढ़ता और मनोबल के कारण वह व्यापक और कठोर निर्णय लेकर बड़े से बड़े अवरोध को अपने तथा समाज के लिए दूर कर सकता है यही कारण है कि गांधी जी ने विनम्रता सत्य अहिंसा के साथ अंग्रेजों को देश से भगा कर देश को स्वतंत्रता दिलवाई थी।
यह भारतीय संस्कृति तथा भारतीय जनमानस की सहिष्णुता और विनम्रता ही है जिसके फलस्वरूप वह हजारों वर्ष से निरंतर नश्वर बनी हुई है। अहंकार, घमंड, अस्थाई क्षणभंगुर होते हैं और विनम्रता विनय शीलता जीवन में आने वाले विघ्न खुद-ब-खुद खत्म हो जाते हैं। किसी भी राष्ट्र संस्कृति और समाज को शास्वत स्थापित रहने के लिए उसे विनम्र, सहिष्णु और सदाशयी होने की आवश्यकता होती है। कुल मिलाकर व्यक्तित्व समाज तथा देश के लिए विनम्रता सहिष्णुता सदैव महान अवयव होते हैं।
*-संजीव ठाकुर*
स्तंभकार, लेखक, चिंतक, रायपुर छत्तीसगढ़
मो- 9009415415