परिचय एवं मुख्य गतिविधियाँ : भेल (Bharat Heavy Electricals Ltd.), भोपाल अपनी स्थापना के शुरुआत से ही यह भारी विद्युत् उपकरणों के उत्पादन के अलावा राष्ट्र के चहुमुखी विकास में अनेको तरह से अपनी भूमिका अदा कर रहा हैं। चूंकि भेल, भोपाल में भारतवर्ष के कोने कोने से आये हुए लोग कार्य करते हैं इस कारण यह स्वंय में लघु भारत का स्वरुप धारण किये हुए है।
विभिन्नताओं में भारत की राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने एवं अनेकोँ संस्कृतियों को सहेजने एवं उसका सतत विकास करने के लिए भेल, भोपाल द्वारा भेकनीस (BHARAT HEAVY ELCTRICALS CULTURAL & NATIONAL INTEGRATION SOCIETY -BHECNIS) का गठन किया गया। इस भेकनिस संस्था के बैनर तले भारतवर्ष के विभिन सांस्कृतिक संस्थानों का निर्माण हुआ एवं भेल, भोपाल में अनेक सांस्कृतिक एवं धार्मिक संस्थानों ने कार्य शुरु किया। इस क्रम मे वर्ष 1960 में बिहार सांस्कृतिक परिषद् भोपाल का उदय हुआ।
बिहार सांस्कृतिक परिषद् पूर्णतः गैर राजनैतिक एवं म.प्र. शासन से पंजीकृत संगठन है जो पूर्णतः सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक रीति रिवाजों को संजोने एवं विकसित करने का महती कार्य कर रही हैं। बिहार एक प्रदेश नहीं अपितु एक संस्कृति का नाम है जो विहार शब्द का अप्भ्रंश हैं जिसकी मूल आत्मा में भोजपुरी, मैथिली, मगही, बज्जिका जैसी भाषाएँ एवं उससे संबंधित संस्कृति का अद्भुत समागम हैं जो इस क्षेत्र के आदर्शों, मूल्यों, परंपराओं, पर्वों, त्योहारों के द्वारा हम सभी को एक अटूट बंधन में बाँधे हुए है। परिषद द्वारा वर्तमान में निर्धन बच्चों क़े लिये दो प्री-प्राइमरी विद्यालय, निःशुल्क होम्योपैथिक डिस्पेंसरी एवं माँ सरस्वती का भव्य मंदिर है जिसके प्रांगण में छठ पुजा के लिये कुंड निर्मित है, का सफल प्रबंधन एवं वर्ष भर रक्तदान, वस्त्रदान, अन्नदान, शिक्षण सामग्री दान, तथा जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रम परिषद् द्वारा किया जाता रहा है।
बिहार सांस्कृतिक परिषद् द्वारा वर्ष भर में छठ पूजा एवं डॉ. राजेंद्र प्रसाद जयंती, मकर संक्रांति, वसंत उत्सव एवं होली मिलन जैसे गरिमामय कार्यक्रमों का सफल आयोजन किया जाता रहा हैं। इसी क्रम में इस वर्ष 05 फरवरी, 2022 शनिवार को सरस्वती पूजनोत्सव का आयोजन कोरोना प्रोटोकॉल के पालनार्थ किया जा रहा है। परिषद के महासचिव सतेन्द्र कुमार ने कहा कि दिनभर के कार्यक्रमों में प्रातः 9 बजे से माँ सरस्वती की पूजन के बाद हवन होगी। प्रातः 11 बजे से महाआरती होने के बाद बच्चों को शिक्षा संस्कार का कार्यक्रम होगी। प्रातः 11:30 बजे से पूर्वांचल के प्रसिद्ध लोकगायक एवं कलाकारों द्वारा भजन कीर्तन गायन की प्रस्तुति होगी। दोपहर 12 बजे से महाप्रसादी वितरण प्रारम्भ होगी। साथ ही निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर लगाया जाएगा जिसमे मेडिकल एवं डेंटल के विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध रहेंगे। जिसमे निःशुल्क परीक्षण, उपचार के पश्चात औषधि वितरित किया जाएगा। परिषद के संरक्षक एवं क्षेत्रीय विधायक श्रीमती कृष्णा गौर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होंगे। बैठक में परिषद के सतेन्द्र कुमार, सुनील सिंहा, अरुण विश्वकर्मा, अनंत साहू, सीताराम साह, रामनंदन सिंह, एस बी सिंह, अनिल कुमार, सूर्य कुमार सिंह, अमित शर्मा, राहुल रंजन, संजीव कुमार, हरि शंकर प्रसाद, संतोष यादव, मनोज पाठक एवं कार्यकर्तागण मुख्य रूप से उपस्थित थे।
माँ सरस्वती देवी मंदिर की स्थापना 62 वर्ष पहले 1960 में की गई थी l उसी समय से माँ सरस्वती की पूजा एवं बसंतोत्सव त्योहार मनाया जा रहा है l इस दिन विद्या आरंभ संस्कार किया जाता है। इस मंदिर में भगवान सूर्य नारायण, देवी दुर्गा जी, हनुमान जी एवं शिव लिंग, गणेश, पार्वती के साथ स्थापित हैं। मुख्य अवसरो पर भव्य रूप से पूजन एवं कार्यक्रम आयोजित की जाती है।
संपूर्ण भोपाल वासी एवं आसपास के लोग यहां आकर पूजन करते हैंl विगत 9 वर्षों से इस प्रांगण में अखंड ज्योत जलाया जा रहा हैl भक्त गण सहयोग देकर अखंड ज्योत जलाने का संकल्प लेते हैं.
यहाँ आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उनका कष्ट, रोग भी दूर होता है। इस मूर्ति की महिमा अपरंपार (अवर्णनीय) है दिनानुदिन मंदिर का विकास हो रहा है। सभी की आस्था एवं विश्वास इस मंदिर जुड़ा है।
माँ सरस्वती पूजनोत्सव
माँ सरस्वती को समस्त ज्ञान, विद्या, कला, साहित्य, सृजनशीलता एवं प्रवाह के निरंतरता की देवी हैं जिनकी पूजा माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को किया जाता है जिसे वसंत पंचमी” के रूप में भी जाना जाता है। श्रृष्टि के प्रारंभ से वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा करने की परंपरा प्राचीन ग्रंथों से प्राप्त होती है। पुराणों में वर्णन है कि इस दिन माँ सरस्वती का जन्म हुआ था और इस दिन सृष्टि के रचनात्मक एवं सृजनशीलता की सारी शक्ति मनुष्य की नियति में आ गयी थी। माँ सरस्वती वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं जिन्हें विद्यादायिनी, हंसवासिनी, वाग्देवी, वागेश्वरी, शारदा, भारती, गिरा, महाश्वेता और विंध्यवासिनी जैसे पावन नामों से भी जाना जाता है. यह शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं। इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है।
अन्धकार से प्रकाश अर्थात असभ्य से सभ्य, अज्ञान से ज्ञान हेतु माँ सरस्वती की पूजा किये जाने की परम्परा है। यह एक सांस्कृतिक पर्व है जिसमे माँ सरस्वती सत्यम, शिवम एवं सुन्दरम के विश्व में सुख, शांति और सौंदर्य का सतत सृजन करती है और यही कारण है कि विद्या, कला एवं ज्ञान के उपासक अपनी साधना की अनवरतता के लिए माँ सरस्वती की पूजा करते हैं। यह पर्व समृद्धि, प्रकाश, ऊर्जा, सृजनशीलता और आशावाद का प्रतीक है।
वसंत पंचमी मनाने का पौराणिक कारण प्रचलित मान्यता के अनुसार, इस त्योहार की उत्पत्ति आर्यकाल में हुई। आर्य लोग कई अन्य लोगों के बीच सरस्वती नदी को पार करते हुए खैबर दर्रे से होकर भारत में आकर बस गए। एक आदिम सभ्यता होने के नाते, उनका अधिकांश विकास सरस्वती नदी के किनारे हुआ। इस प्रकार, सरस्वती नदी को उर्वरता और ज्ञान के साथ जोड़ा जाने लगा और तब से यह दिन पवित्रता एवं धूमधाम से मनाया जाने लगा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन से जुड़ा एक लोकप्रिय कालिदास कवि के साथ जुड़ा हुआ है। छल के माध्यम से एक सुंदर राजकुमारी से शादी करने के बाद, राजकुमारी ने उसे अपने बिस्तर से बाहर निकाल दिया क्योंकि उसे पता चला कि वह मूर्ख था। इसके बाद, कालिदास आत्महत्या करने के लिए चले गए, जिस पर सरस्वती पानी से बाहर निकलीं और उन्हें वहां स्नान करने के लिए कहा। पवित्र जल में डुबकी लगाने के बाद, कालिदास ज्ञानी हो गए और उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया। इस प्रकार, वसंत पंचमी को शिक्षा और शिक्षा की देवी माँ सरस्वती की वंदना करने के लिए मनाया जाता है।
वसंत पंचमी के सुअवसर पर प्रकृति में सृजन के मोहक स्वरूपों का साक्षात दर्शन होता है, लता-वल्लरियों में नयी कोपलें आने लगती है, आम्र वाटिकाओं में कोयल की कूक एवं भंवरों के गुंजन से सारा वातावरण विहंस हो उठता है। ऐसे पलों में माँ शारदा अपनी वीणा की मोहक तान प्रारम्भ कर अपने साधकों को सृजनशीलता, नवीनता एवं उत्कृष्टता के अभिप्रेरित करने लगती हैं, वीणा की मधुर रागिनी के श्रवण से पूरी श्रृष्टि विकास के नये आयामों की ओर अग्रसर होती है और यही इस माँ सरस्वती पूजा का महामात्य है।
“या देवी सर्वभूतेषु, विद्या रुपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”
माँ सरस्वती पूजा के पर्व को मूल रूप से शिक्षार्थी, कलासाधक एवं ज्ञानपिपासु बड़ी धूमधाम एवं उल्लास से मनाते हैं। पूरे रीति-रीवाज से शिक्षण-संस्थानों में विधिवत पूजा-अर्चना सम्पन्न कराई जाती है। बच्चे इस दिन बहुत ही उत्साहित रहते है। इसके अलावा, जगह-जगह पर पंडाल बनाकर भी पूजा होती है एवं पंडालो में बड़ी-बड़ी मूर्तियां बिठायी जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे माँ सच में धरती पर उतर आयीं हों और अपने आशीष की वर्षा कर रही हों। छोटे बच्चे अक्सर इस दिन से लिखना सीखना शुरू करते हैं, जिसका कारण यह माना जाता है कि मार्च के महीने में स्कूल सत्र शुरू होते हैं। इस त्योहार पर लोग आमतौर पर पीले वस्त्र पहनते हैं एवं पीले पकवानों, मिठाई एवं फलों से माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पीले रंग की मिठाई भी वितरित की जाती है और लोगों को गरीबों को किताबें और अन्य साहित्यिक सामग्री दान करते हुए भी देखा जा सकता है। हिन्दू रीति में ऐसी मान्यता है कि इस दिन सुबह-सुबह बेसन के उबटन के स्नान करना चाहिए, तत्पश्चात पीले वस्त्र धारण कर माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और पीले व्यंजनों का भोग लगाना चाहिए। चूंकि पीला रंग वसंत ऋतु का प्रतीक है और माता सरस्वती को पसंद भी है, ऐसा कहा जाता है।