आम सभा, भोपाल : राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित महिला काव्य मंच (रजि.) नई दिल्ली द्वारा मध्यप्रदेष में भोपाल इकाई का गठन किया गया है। आज 20 नवम्बर, बुधवार को आराधना नगर स्थित साहित्यिक कक्ष में भोपाल इकाई की पहली काव्य गोष्ठी ‘काव्य सरिता’ का आयोजन किया गया। भोपाल जिले की समन्वयक डॉ. प्रीति प्रवीण खरे ने जानकारी देते हुए बताया कि यह साहित्य में रुचि रखने वाली गृहणी, उद्यमी एवं विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत् साहित्य में रुचि रखने वाली महिलाओं के लिए साहित्यिक मंच प्रदान करने वाली संस्था है।
गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. प्रभा मिश्रा ने की, मुख्य अतिथि श्रीमती श्यामा गुप्ता ‘दर्षना’ एवं विषिष्ठ अतिथि श्रीमती मधुलिका सक्सेना रहीं। लीना बाजपेयी द्वारा स्वरचित सरस्वती वंदना ‘माँ शारदे को कर लो नमन’ से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। जिसमें शहर की कामकाजी महिलाओं के साथ-साथ महिला साहित्यकारों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ कर वाहवाही लूटी। गोष्ठी का संचालन साधना श्रीवास्तव एवं आभार कीर्ति श्रीवास्तव ने किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. प्रभा मिश्रा ने गज़ल – अपना पानी बचाकर रखे हैं कंवल, और गुलााबों को पानी की दरकार है सुनाई, वहीं मुख्य अतिथि श्यामा गुप्ता दर्शना ने इस तरह के काव्य मंचों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे साहित्य में रुचि रखने वाली कामकाजी महिलाओं को भी मंच मिलेगा। विशिष्ठ अतिथि मधुलिका श्रीवास्तव ने रचनाकारों की रचनाओं की समीक्षा करते हुए सभी की भूरि भूरि प्रशंसा की और गोष्ठी की समन्वयक डॉ. प्रीति प्रवीण खरे को साधुवाद किया।
रचना पाठ करने वालों के नाम एवं पक्तियाँ कुछ इस प्रकार रहीं
कीर्ति श्रीवास्तव -प्रेम से मिलने के व्यवहार गुम हुए, अंजली खेर-हे भारत माँ, तेरे आंचल की छाया, शालिनी खरे- सब कुछ अपना ,कुछ न पराया, नीलू शुक्ला – यकीनन मैं नारी हूँ, डॉ अर्चना निगम-मंजिल दूर थी ,कोई सहारा भी नहीं था, डॉ मौसमी परिहार- देखा है झूला, विद्या श्रीवास्तव- भागदौड़ की इस दुनियाँ में कुछ पल फुरसत के मिल जाते, दुर्गारानी श्रीवास्तव -कुदरत के ऋण को हम कभी चुका ना पाएंगे,श्यामा देवी गुप्ता दर्शना-कविता आज की नारी तुम सही, मधूलिका सक्सेना-’आओ मुंडेर जगाएं, डॉ प्रभा मिश्रा-’अपना पानी बचाकर रखे है कंवल, सुधा दुबे -चिन्गारी, शेफालिका श्रीवास्तव- हम “अंग्रेजी “ भाषा और “विदेशी कपडे “भारत ले आये , प्रतिभा श्रीवास्तव अंश -स्त्री परिधान का अहम हिस्सा,ओढ़नी, डॉ माया दुबे-गिरगिर सा है आदमी, साधना श्रीवास्तव- बीता बचपन आई जवानी, शशि बंसल – जब लौटती हूँ , अपने घर की ओर।