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‘विश्व रंग’ के अंतर्गत गीत-गजल का अनूठा आयोजन

गीत-गजल से रौशन हुई ‘विश्व रंग’ की महफिल

आम सभा, भोपाल : भोपाल के पहले टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव ‘विश्वरंग’ के अंतर्गत रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय एवं वनमाली सृजनपोठ, भोपाल द्वारा 22 अक्टूबर 2019 की ढलती शाम को राज्य संग्रहालय, भोपाल के सभागार में गीत-गजल का अनूठा आयोजन ‘विश्व रंग’ के निदेशक एवं वरिष्ठ कवि कथाकार श्री संतोष चौबे के मुख्य आतिथ्य एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री यतीन्द्रनाथ राही की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। इस अनूठे आयोजन में गीत-गजल से रौशन हुई विश्व रंग की शानदार महफिल। इस अवसर पर विश्व रंग के निदेशक एवं वरिष्ठ कवि कथाकार श्री संतोष चौबे ने विश्वरंग के भव्य आयोजन पर प्रकाश डाला एवं सभी को विश्वरंग के लिए आमंत्रित किया।

जगमग रौशनी के त्यौहार दीपावली की दहलीज पर ‘विश्व रंग’ के पर्व रंग की श्रृंखला में आयोजित गीत-गजल के इस अनूठे आयोजन में वरिष्ठ गीतकार शिवकुमार अर्चन ने ओजस्वी आवाज में गीत प्रस्तुत कियाहल निकलेगा, हल निकलेगा/और अगर गहरा खोदोगे जल निकलेगा। उन्होंने प्रेम गीत में कहा कितुमने जो अधर से छुआ/पोर पोर बांसुरी हुआ। शिव कुमार अर्चन ने प्रेम के दर्द को कुछ इस तरह बयां कियाजो ऐसे अनुबंध न होते/दर्द हमारे छन्द न होते। सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. अनु सपन ने अपने गीतों का एक अलग ही समां बाधा। उन्होंने गीत में व्यक्त किया- ये किनारे तो मेरा मुकद्दर नहीं/सिन्धु में इक उफनती लहर तो मिले/चाह ये भी नहीं मैं बनूँ राधिका/जिसमें अमरत्व हो वो जहर तो मिले। उन्होंने अपने अगले गीत में व्यवस्था पर तंज कसते हुए कहाये व्यवस्था कहाँ तक छलेगी मुझे/जानती तो बहुत हूं मगर क्या करूं/चक्रव्यूह में फसी एक अभिमन्यू सी/सोचती तो बहुत हूँ मगर क्या करूं।

वरिष्ठ गीतकार ममता वाजपेयी ने अपनी रचना में कहा- छांव के नजदीक आकर धूप ने कान में कुछ कुनकुनी बातें कहीं/एक कण छू रेत का मैं बूंद जल की पारदर्शी/सृष्टि का सारा सृजन संसार हूँ मैं लोमहर्षी। वरिष्ठ गीतकार मनोज जैन मधुर ने अपना मधुर गीत प्रस्तुत करते हुए कहा कि- जब पीर पिछलती है मन की तब गीत नया मैं गाता हूँ/वैभव दुत्कार गरीबी को पगपग पर नीचा दिखलाये/जुगनू उड़ उड़ कर सूरज का जलने की विद्या सिखलाएं/तब अंतर मन में करूणा की घरघोर घटा गहराता हूँ/मैं छंदों का संजीवन ले मुर्दो को रोज जिलाता हूँ। मशहूर युवा शायर बद्रवास्ती ने गजल पेश करते हुए हालातों को कुछ यूं बयां किया- रंग चेहरे पे मल नहीं सकता/मैं किसी को छल नहीं सकता/आप तैयार हो के ना हो/वक्त आया तो टल नहीं सकता/तुमने रावण से दोस्ती कर ली/इस तरह तो वह जल नहीं सकता। वरिष्ठ गजलकार अनवारे इस्लाम ने अपने शेर पेश करते हुए कहा कि- रोटियाँ सिर्फ दो कमाने में/कट गई उम्र आने-जाने में/जहां भी तुम्हारे दिये जल रहे/उजाले वहीं पर हमें छल रहे हैं/दास्तां दर्द की पुरानी है/मेरे अपनों की महरबानी है/धूप-बारिश में हम सताए हैं/घर तो बस ख्याब में बसाएं हैं।

सुप्रसिद्ध वरिष्ठ गजलकार महेश कटारे ‘सुगम’ ने अपनी चर्चित रचना को अपने ही अंदाज में पेश करते हुए कहा कि- वादा, वफा, इकरार की ऐसो तैसी/जिन्दगी छील ले उस प्यार की ऐसी तैसी। उन्होंने अपनी अगली रचना में गरीबी को व्यक्त करते हुए कहा- उस दम मौत नहीं आती है बाकी सब हा जाता है/रोटी की जिद करते करते जब बच्चा सो जाता है। वरिष्ठ गजलकार महेश अग्रवाल ने अपनी रचना में कहा कि- कभी भी कर नहीं सकती हमें यूं कैद दीवारें। हमार सोच में हर वक्त रौशनदान रहता है/चाहता हूँ मैं करूं कुछ इस तरह की कोशिशें/हो सके मजबूर हर पत्थर पिघलने के लिए। वरिष्ठ कथाकार एवं वनमाली सृजन पीठ के अध्यक्ष श्री मुकेश वर्मा ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का सफल संचालन बद्र वास्ती ने किया।

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